जैन संत ने पूछा-आपने अपने लिए क्या किया
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 19 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि व्यक्ति अपना जीवन धन कमाने में खपा देता है। वस्तुतः वह अपनी कमाई का केवल 5 फ़ीसदी हिस्सा ही उपयोग में ला पाता है। उसके विचार अपने परिवार और रिश्तेदारों व मित्रों के बीच घूमते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी व्यक्ति मन से रिटायर नहीं होता और रिटायर्ड होने के बाद वह अस्त-व्यस्त हो जाता है। साधक निवृत्ति चाहता ही नहीं है। निवृत्त होने का मन उसका नहीं होता फिर भी निवृत होना पड़ता है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन के दौरान संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमने अपने लिए कितना समय निकाला, अपने लिए क्या किया? जो हमारे साथ जाएगा, उसके लिए हमने कितना समय दिया? उन्होंने कहा कि अपने कर्तव्य को पहचानना चाहिए और अपने लिए भी समय निकालना चाहिए। यदि अभी अपने लिए थोड़ा सा समय नहीं निकाले तो फिर कभी नहीं निकाल पाएंगे। आप ऐसे निवृत हो कि पहले जितना व्यस्त थे उससे दोगुना व्यस्त हो जाएं। तनाव हो पर अधिक या कम ना हो। निवृत्ति के बाद हमारे पास काम नहीं है, यह सोचना गलत है। हमारे पास दोगुना काम है। उन्होंने कहा कि आपको धन कमाने की पड़ी है और स्वयं के लिए माला फेरने की नहीं! आपने सबके लिए सब कर दिया लेकिन अपने लिए कुछ नहीं किया। जीवन के 40 बसंत परिवार के लिए और बाकी के 10 – 20 बसंत अपने स्वास्थ्य के लिए खपा दिया। आपका अपने लिए समय कब गया? प्रतिदिन आप अपने लिए कुछ समय निकालिए।
संत श्री ने कहा कि हम काया से किसी और के भरोसे हैं, वह तो समझ में आता है, वह हमारी लाचारी हो सकती है लेकिन मन से तो हम किसी के भरोसे नहीं है। हमारी जो – जो इच्छाएं दबी पड़ी थी, वह निवृत्ति के बाद बाहर निकलती है। अच्छा कार्य मन के अंदर दबा रहा तो प्रकृति उसे समय अवश्य देती है कि वह उसे बाहर निकालें। निवृत्ति में जीवन का आनंद जरूर लेना चाहिए और कुछ समय अपने लिए अवश्य निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम निवृत्त होने का अपना मन बनाएं और निवृत्ति में “स्व” के लिए कुछ करें तथा जीवन का आनंद ले। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।