धर्म जीवन में निराशा के अंधकार से निकाल उम्मीदों का चिराग जलाता-मुकेशमुनिजी मसा…. उत्तम ध्येय की प्राप्ति के लिए आचार-विचारों में पवित्रता आवश्यक- नानेश मुनिजी मसा….अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

धर्म जीवन में निराशा के अंधकार से निकाल उम्मीदों का चिराग जलाता-मुकेशमुनिजी मसा…. उत्तम ध्येय की प्राप्ति के लिए आचार-विचारों में पवित्रता आवश्यक- नानेश मुनिजी मसा….अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 31 जुलाई। हमारी अपने धर्म के प्रति श्रद्धा होना जरूरी है। धर्म के बिना मानव पशु के समान है। धर्म ही होता है जो मानव को पशु से अलग करता है। धर्म हमे राग द्धेष से मुक्त करने के साथ हमारे जीवन की समस्याओं का भी समाधान करता है। गृहस्थ का आगार धर्म हो साधु का अणगार धर्म उसकी मर्यादा तय होती है। जो उस मर्यादा में नहीं जी सकता उसका कोई धर्म नहीं हो सकता।

ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने बुधवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आगार धर्म से अणगार धर्म की आराधना कर जीवन सफल बना सकते है। जिस तरह सूर्य की एक किरण इस धरा के अंधकार को समाप्त कर देती है उसी तरह धर्म हमारे जीवन को निराशा के अंधकार से निकाल उम्मीदों का चिराग जलाने का कार्य करता है।

हमारा आचरण हमेशा धर्म के अनुरूप होना चाहिए। प्रेम, करूणा,सद्भावना, दया यह सभी धर्म के ही अंग है। इनका अपना जीवन में अवश्य समावेश होना चाहिए। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि परमात्मा महावीर के अनुसार जिसके जीवन में विनय का गुण होता है वह सफल होता है। ज्ञान की प्राप्ति हो या कला कौशल सीखना हो हर जगह विनयवान होना जरूरी है।

शिष्य विनयवान हो तो स्वयं के साथ गुरू का भी कल्याण कर देता है वहीं शिष्य अविनित भाव रखने वाला होने पर वह खुद का नुकसान करने के साथ गुरू की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि जो विनय ओर गंभीर होगा वह हमेशा विनम्रता का गुण लिए हुए होगा। झुकना कमजोरी की नहीं महानता की पहचान होती है। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों का भी वर्णन किया। धर्मसभा में युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि आत्मकल्याण के लिए पवित्र उत्तम आचरण जरूरी है।

किसी भी उत्तम ध्येय की प्राप्ति के लिए आचार-विचारों में पवित्रता आवश्यक है। निर्मल विचार ओर उत्तम आचरण ही धर्म है। उन्होंने कहा कि हमारे तन में जितने रोग नहीं उससे कहीं अधिक रोग अपने मन में पाल रखे है। हमारा चिंतन सकारात्मक कम नकारात्मक अधिक हो गया है। अब भी हम अपना आलास्य ओर प्रमाद त्याग जीवन को धर्म साधना से संवारने का प्रयास करें।

आत्मजागृत होने पर हमारा कल्याण भी होगा। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि भगवान हर उस जगह प्रकट हो सकते है जहां भक्त उसे सच्चे मन से सुमिरन करे चाहे वह जगह महल हो या कुटिया। भगवान जगह नहीं भक्त की भावना देखते है। भक्त समर्पित भाव से भगवान की भक्ति करे तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

उन्होंने सुखविपाक सूत्र के द्वितीय अध्ययन भद्रनंदी कुमार का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह सुपात्र दान देने से उनको रिद्धी सिद्धी की प्राप्ति होती है ओर उनकी आत्मा सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाती है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।

द्धय गुरूदेव जयंति समारोह के उपलक्ष्य में होगा सामूहिक तेला तप

चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627

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