सूरत(अमर छत्तीसगढ), 31 जुलाई। हम जीवन का कल्याण करना है तो आश्रव से संवर की ओर बढ़ना है। जहां स्वार्थ होता है वहां महाभारत होती है ओर जहां सब एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते है वहां रामायण जैसा माहौल होता है। जप ओर तप का फल तत्काल मिल जाता है ओर हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस होते है।
ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने बुधवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमे अनंत पुण्यवानी से जैन धर्म की प्राप्ति हुई है। जैन कुल मिलने के बाद अब हमे तप,त्याग व साधना से स्वयं को जैनत्व के अनुरूप बनाना है। हम नाम से ही नहीं कर्म से भी जैनी बनना होगा।
रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि आत्मा को सद्गुणों से सजाया जाता है। हमे जिनशासन का महत्व समझने के लिए इन तीन शब्दों को जानना होगा नमामि, खमामि,वोसरामि। इन शब्दों की आराधना से हमारी आत्मा का बोझ कम होता है ओर मुक्ति की राह आसान होती है। जो अंगुलियां मोबाइल पर धुमा कम पाप कर्म को बढ़ाती है वहीं यदि नवकार महामंत्र गिनने के कार्य में आएगी तो असीम पुण्यार्जन होगा। हमे अपने शरीर से किस तरह कार्य लेना है यह स्वयं तय करना होगा।
उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में कितनी भी समस्याएं आए लेकिन हमे अपने धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म पर अडिग रहने वाले का जीवन सार्थक बन जाता है। पांच सामायिक एक आसन पर करते है तो एक उपवास का फल मिलता है। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र वाचन करते हुए कहा कि हम जब इस धरा से जाएंगे तो अपने कर्मो के साथ जाएंगे।
कर्म कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ते है। हमे अपने कर्म ओर धर्म दोनों का ध्यान रखना चाहिए। कर्म अशुभ नहीं होने चाहिए ओर हमारा आचरण धर्म के अनुरूप होना चाहिए। आत्मा का कल्याण करना है तो स्वयं को धर्म से जोड़े। साधु-संतो के दर्शन करने से कर्म कटते है। उन्होंने सुबाहुकुमार चरित्र की चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में 5 अणुव्रत, 3 गुणव्रत व 4 शिक्षाव्रत सहित कुल 12 व्रत होते है। सूजता आहार बहराने से भी कर्मो की निर्जरा होती है। सुबाहुकुमार 12 व्रत ग्रहण करने के साथ श्रमणोपसाक बन जाते है।
साध्वीश्री ने कहा कि जीवन में 18 पापस्थान से भी बचना चाहिए। हमे मिथ्या दर्शन में विश्वास रखने की बजाय सबसे पहले घर परिवार की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने 12 व्रत में से पहले स्थूल अहिंसा व्रत की चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थिति आए कभी आत्महत्या का विचार मन में नहीं लाना चाहिए। हर समस्या का समाधान संभव है यदि हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा। सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने भजन की प्रस्तुति दी।
धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। दो श्राविकाओं शिमला सांखला व नविता ढाबरिया ने 7-7 उपवास के प्रत्याख्यान लिए तो प्रवचन हॉल अनुमोदना में हर्ष-हर्ष जय-जय से गूंजायमान हो उठा। कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। जिनवाणी श्रवण करने के लिए सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे थे।
बच्चों ने उत्साह से शुरू की चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप आराधना
चातुर्मास में बच्चों के लिए 15 दिवसीय चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप की आराधना बुधवार से शुरू हो गई। इसमें 47 बच्चें उत्साह के साथ भाग ले रहे है। चन्द्रकला तप करने वाले बच्चों की अनुमोदना करते हुए जयकारे भी धर्मसभा में लगाए गए। इस तप में बच्चों के लिए खाने-पीने में द्रव्य मर्यादा तय है।
पहले दिन पूरे दिन खान-पान में अधिकतम 15 द्रव्य का उपयोग कर सकंेंगे इसके बाद प्रतिदिन एक-एक द्रव्य मात्रा कम होते हुए अंतिम दिवस 14 अगस्त को मात्र एक द्रव्य का ही उपयोग करना होगा। पानी,दूध,पेस्ट व दवा द्रव्य सीमा में शामिल नहीं है।
चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है। हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे तक युवाओं के लिए एवं हर शनिवार रात 8 से 9 बजे तक बालिकाओं के लिए क्लास हो रही है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627