चावल का दाना फैलाना आसान किंतु सकेलना मुश्किल – हर्षित मुनि

चावल का दाना फैलाना आसान किंतु सकेलना मुश्किल – हर्षित मुनि

जैन संत ने मौन साधना पर दिया जोर

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 21 सितंबर। जैन संत हर्षित मुनि ने कहा कि कोई भी कार्य करना है, ऐसी रुचि जगती है तभी कोई काम होता है। उन्होंने कहा कि अगर निवृत्ति का श्रीगणेश करना है तो ऐसा कोई भी व्यापार नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से हम निवृत्ति नहीं ले सकते। उन्होंने स्पष्ट किया कि हम व्यापार तो फैला लेते हैं किंतु उसे संभालना बड़ा मुश्किल होता है।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज समता भवन में अपने नियमित प्रवचन में कहा कि व्यापार बढ़ाने के लिए हमने ब्रांच तो डाल दिए किंतु पैर तो दो ही होते हैं, आखिर हम कहां-कहां पैर रखेंगे, इसे संभालेंगे कैसे? उन्होंने कहा कि चावल का दाना बिखेरना आसान है किंतु उसे सकेलना बड़ा मुश्किल होता है। आप रोबोटिक लाइफ मत जियो। बोर हो गए तो आप बाहर चले जाते हो किंतु आकर तो वही काम करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि जीवन जीने के लिए है, इसका आनंद लो। हम इतना काम बढ़ा लिए हैं कि अपने परिवार को, अपने शुभचिंतकों को, संघ को, यहां तक कि स्वयं को ही समय नहीं दे पाते। समाज आपको भले ही बड़ा काम वाला कहे किंतु इसका क्या फायदा!
संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि इसी तरह अगर निवृत्ति का श्रीगणेश करना है तो मौन की साधना करो। संत श्री ने कहा कि हम इसलिए बोलते हैं कि हम चुप नहीं रह सकते। कहीं – कहीं बोलना आवश्यक होता है तो ही बोलिए। हमारी प्रवृत्ति मौन की होगी तो ही निवृत्ति आएगी। आप मन से भी मौन हो। आप साधु नहीं बन पाए तो साधक तो बन ही सकते हैं। एक बार मौन रहने का रसास्वादन करके देखें, मौन की आराधना करें। वचन का मौन धीरे-धीरे मन तक चला जाता है। मुनिश्री ने कहा कि मौन की साधना करेंगे तो निवृत्ति का श्रीगणेश होगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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