जिन साधनों का आप आज उपयोग कर रहे, वह आपका कभी नहीं हो सकता: जैन संत साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

जिन साधनों का आप आज उपयोग कर रहे, वह आपका कभी नहीं हो सकता: जैन संत साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। हमारे पास सब कुछ हो कर भी कुछ भी नहीं है। हमारा घर गाड़ी और जितने भी सुख साधन का सामान हम उपयोग करते हैं, इसमें से कोई भी चीज हमारी नहीं है। हमारा यह शरीर जिसे हमेशा हम सजाने-संवारने में लगे रहते है, वह भी हमारा नहीं है। एक दिन हमें इन सभी चीजों को छोड़कर जाना ही है, तो ये अपने कैसे हुए। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान शनिवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

साध्वीजी कहती है कि आपके घर में जो बाई आती है, उसे आप महीने के कुछ पैसे लेते हो जिसके बदले में वह आपके घर पर सारा काम करती है। साथ ही साथ वह आपके घर के सभी सुख साधनों का उतना ही उपयोग करती है जितना कि आप। घर में से चलती है उसकी हवा वह भी लेती है। आप कहीं सामान लेने जाते हो तो बाई को भी साथ ले जाते हो, वह कार में बैठकर आपके साथ जाती है। उसे कार में घूमने का भी सुख मिलता है। आजकल तो लोग बच्चे को पकड़ने के लिए भी एक बाई रखते है। लोग कही घूमने भी जाए उसे साथ में लेकर जाते हैं। इतने सुख साधनों के बीच रहकर, हर दिन उसका उपभोग करने वाली बाई भी शाम को अपने घर चली जाती है क्योंकि उसे यह पता होता है कि जिस घर में वह दिनभर रहती है वह उसका नहीं है।

परमात्मा से मिलोगे तो दुनिया भूल जाओगे

साध्वीजी कहती है कि सांसारिक दुनिया को देखने हैं लोगों के एक चश्मा लगाते हैं। लेकिन जब अंदर की रोशनी ही बुझ जाए तो बाहर से चश्मा लगाने का कोई मतलब नहीं होगा। यह अंदर की रोशनी बुझाने के बाद भी आप परमात्मा को देख सकते हैं। जिस दिन आपने परमात्मा को देख लिया उस दिन आपको बाहरी दुनिया काम खत्म हो जाएगा। हम एक चिड़िया की तरह है जो पिंजरे में कैद हैं। जिस दिन का दरवाजा खुल जाएगा, चिड़िया उड़ जाएगी और पिंजरा किसी काम का नहीं रहेगा। वह चिड़िया हमारी आत्मा और पिंजरा हमारा शरीर है। जिस दिन आत्मा यह शरीर छोड़ देगी उस दिन लोग उस शरीर को जला देंगे। साध्वीजी कहती है कि एक बच्चा अपने पिता से कहता है कि मैं स्कूल नहीं जाऊंगा। पिता पूछते हैं क्यों नहीं जाएगा। वह कहता है कि स्कूल में मेरे साथ पढ़ने वाले दोस्त बड़ी-बड़ी कारों में आते हैं। उनकी कारें 5-10 लाख की है, इसीलिए मुझे अच्छा नहीं लगता है। कुछ देर सोचने के बाद पिता अपने जेब से 10 रुपये का नोट निकालते हैं और कहते हैं की अब से तुम सबसे महंगी गाड़ी में स्कूल जाने वाले हो। वह कहता है कि 10 रुपये में कौन सी महंगी कार आती है। पिता ने कहा ये 10 रुपये लेकर रेलवे स्टेशन जाना और टिकट खरीदना, उसके बाद प्लेटफार्म पर खड़ा होना फिर तुम्हें लेने 1 करोड़ की ट्रेन आएगी उसमें बैठकर स्कूल जाना। ऐसे में तुम सबसे महंगी गाड़ी में स्कूल पहुंचोगे। साध्वीजी कहती है कि लोग सिर्फ शरीर को सुखी रखने महंगी कारें खरीदते हैं और उसमें सफर करते हैं। ज्यादा सुख भी व्यक्ति को अलाल बना देता है। ज्यादा लाली करोगे तो अगले जन्म में आपको किसी ऐसे जानवर के रूप में जन्म मिलेगा जो दिनभर आराम से सोया रहता हो।

Chhattisgarh