जैन संत ने कहा कृतज्ञता, गुरु व गुण को कभी नहीं भूलना चाहिए

जैन संत ने कहा कृतज्ञता, गुरु व गुण को कभी नहीं भूलना चाहिए

कार्य वक्ता नहीं कार्यकर्ता बनो-हर्षित मुनि

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 27 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमें कार्य वक्ता नहीं कार्यकर्ता बनना चाहिए। अगर किसी को काम दिया जाता है तो वह दूसरे के जिम्मे में उस कार्य को छोड़ देता है। उन्होंने कहा कि हम कार्यकर्ता बने और सौपे गए काम को पूरी जिम्मेदारी से करें।कृतज्ञता, गुरु व गुण को कभी नहीं भूलना चाहिए।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज समता भवन में अपने नियमित प्रवचन में कहा कि हमें कार्यकर्ता बनकर संघ का काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ का हम पर ऋण हैं, उस ऋण को हमें उतारना चाहिए। हम सुख सुविधा भोगी जीव बन चुके हैं। हमें सुख सुविधा पर ज्यादा ध्यान ना देकर अपने कर्मों की ओर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने भगवान श्री राम का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि जिस दिन राजतिलक होना था उस दिन भगवान श्रीराम को वनवास जाना पड़ा। उन्होंने सुख सुविधा का त्याग किया और वनवास गए और लोकहित के काम किए। यही कारण है कि आज हम उन्हें याद करते हैं। उन्होंने मर्यादा का पालन किया और हमारे लिए आदर्श बने। संत श्री ने कहा कि जब तक बड़े मर्यादा में रहते हैं तब तक छोटे भी विनम्र रहते हैं। हम खाए बिना तो रह सकते हैं किंतु बोले बिना नहीं रह सकते। छोटी-छोटी बातों को निभाने के लिए हम तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता को वक्ता न बनकर सौपे गए काम को जिम्मेदारीपूर्वक करना चाहिए।
जैन संत ने फरमाया कि जिन शासन में दान, शील ,तप ,भाव कुछ भी पकड़कर आगे बढ़ सकते हैं। आचार्य श्री गणेशलाल जी को चार वर्ष उदयपुर में व्याधि की वजह से विराजना पढ़ा। इस दौरान आचार्य नानेश को उन्होंने देखा और परखा। आचार्य नानेश अद्भुत और अलग थे। उनका जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा किंतु वे विचलित ना होकर आगे बढ़ते रहे। संत श्री ने कहा कि आप भी कार्यकर्ता बनकर संघ के ऋण को उतारने का प्रयास करें। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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