रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। एक बच्चा मैदान में खेल रहा था। वहां से बिहार करते हुए गुरु भगवान जा रहे थे। उन्होंने बच्चे को देखा और उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। बच्चा उन्हें पहचान नहीं पाया और वह भी उनके साथ खेलने लगा। थोड़ी देर बाद उसे अहसास हुआ कि वे गुरु भगवंत है। वह उन्हें अपने घर चलने का आग्रह करने लगा और गुरु तैयार हो गए। जबकि आज के बच्चे मोबाइल से बाहर नहीं निकलते हैं। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान बुधवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
साध्वीजी ने कहा कि वह घर के सामने पहुंचा और अपनी मां को आवाज दिया। उसने कहा कि मां देखो कौन आया है जल्दी बाहर आओ। मां ने सोचा कि कोई दोस्त होगा। वह जब नीचे आई तो गुरु भगवंत को देखकर वह आनंदित हो गई। वह गुरु भगवान कोई और नहीं गौतम स्वामी थे। आहार लेकर गौतम स्वामी वहां से निकल गए। वह 6 साल का बच्चा भी उनके साथ उन्हें छोड़ने निकल गया। साथ चलते चलते उस बच्चे ने कहा कि आप इस पात्र को मुझे दे दीजिए आपको भार पड़ रहा होगा। गौतम स्वामी ने कहा यहां पात्र हम किसी को नहीं दे सकते हैं। यह पात्र वही उठा सकता है जो संयम की राह पर चलता हो, उसके लिए तुम्हें हमारे साथ आना होगा लेकिन तुम जाकर खेल खेलो। वह बच्चा जिद करने लगा तो गौतम स्वामी ने कहा कि तुम ऐसे नहीं आ सकते हो, तुम्हें अपने माता पिता से इसकी आज्ञा लेनी होगी। वह दौड़ता हुआ वापस अपनी मां के पास है और उनसे कहा कि मुझे दीक्षा लेनी है, मुझे आज्ञा दीजिए। मैंने कहा तू अभी बहुत छोटा है, थोड़ा बड़ा हो जा तो मैं तुझे आज्ञा दे दूंगी। वह कहने लगा कि मैं इतना भी छोटा नहीं की यह समझ नहीं पाऊं। जिद करके वह बच्चा अपनी मां से आज्ञा लेता है। 6 साल का वह बच्चा दीक्षा लेकर 9 वर्ष की उम्र में कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। वह बच्चा कोई और नहीं गौतम गंधर्व होते हैं।
संकल्प मजबूत रखे तो आप सब जीत जाएंगे
आपके मन से मजबूत कोई ताकत नहीं, संकल्प लेकर काम करें तो कोई आपको हरा नहीं पाएगा: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी
रायपुर। एक बच्चा मैदान में खेल रहा था। वहां से बिहार करते हुए गुरु भगवान जा रहे थे। उन्होंने बच्चे को देखा और उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। बच्चा उन्हें पहचान नहीं पाया और वह भी उनके साथ खेलने लगा। थोड़ी देर बाद उसे अहसास हुआ कि वे गुरु भगवंत है। वह उन्हें अपने घर चलने का आग्रह करने लगा और गुरु तैयार हो गए। जबकि आज के बच्चे मोबाइल से बाहर नहीं निकलते हैं। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान बुधवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
साध्वीजी ने कहा कि वह घर के सामने पहुंचा और अपनी मां को आवाज दिया। उसने कहा कि मां देखो कौन आया है जल्दी बाहर आओ। मां ने सोचा कि कोई दोस्त होगा। वह जब नीचे आई तो गुरु भगवंत को देखकर वह आनंदित हो गई। वह गुरु भगवान कोई और नहीं गौतम स्वामी थे। आहार लेकर गौतम स्वामी वहां से निकल गए। वह 6 साल का बच्चा भी उनके साथ उन्हें छोड़ने निकल गया। साथ चलते चलते उस बच्चे ने कहा कि आप इस पात्र को मुझे दे दीजिए आपको भार पड़ रहा होगा। गौतम स्वामी ने कहा यहां पात्र हम किसी को नहीं दे सकते हैं। यह पात्र वही उठा सकता है जो संयम की राह पर चलता हो, उसके लिए तुम्हें हमारे साथ आना होगा लेकिन तुम जाकर खेल खेलो। वह बच्चा जिद करने लगा तो गौतम स्वामी ने कहा कि तुम ऐसे नहीं आ सकते हो, तुम्हें अपने माता पिता से इसकी आज्ञा लेनी होगी। वह दौड़ता हुआ वापस अपनी मां के पास है और उनसे कहा कि मुझे दीक्षा लेनी है, मुझे आज्ञा दीजिए। मैंने कहा तू अभी बहुत छोटा है, थोड़ा बड़ा हो जा तो मैं तुझे आज्ञा दे दूंगी। वह कहने लगा कि मैं इतना भी छोटा नहीं की यह समझ नहीं पाऊं। जिद करके वह बच्चा अपनी मां से आज्ञा लेता है। 6 साल का वह बच्चा दीक्षा लेकर 9 वर्ष की उम्र में कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। वह बच्चा कोई और नहीं गौतम गंधर्व होते हैं।
संकल्प मजबूत रखे तो आप सब जीत जाएंगे
साध्वी जी कहती है कि उस बच्चे का संकल्प इतना ताकतवर होता है कि वह 6 वर्ष की उम्र में ही दीक्षा ले लेता है। उन लोग उसकी आलोचना भी करते हैं लेकिन आप ही बताइए कि समझदार कौन हैं। वह लोग जिस बच्चे को ना समझ बता रहे हैं अगर वह समझदार हैं तो उन्होंने दीक्षा क्यों नहीं ली। उनके अंदर इतनी समझ आ चुकी है तो वे लोग संयम की राह पर क्यों नहीं चलते हैं। यह विचार करने का विषय है। साध्वी जी कहती है कि एक बार की बात है एक बार घने जंगल के बीच चार साध्वी और चार श्रावक श्राविका चल रहे थे। अचानक जंगल के बीच से निकलकर एक शेर उनके रास्ते में आ जाता हैं। एक साध्वी पूछती है कि अब क्या करना है तो दूसरी कहती हैं कि अब हमें कुछ नहीं करना है जो करेगा वह शेर ही करेगा। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं होता वे आंख बंद करके ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं। आंख बंद करके प्रार्थना करते हैं और शेर वापस जंगल में चला जाता है। जबकि शेर जिस रास्ते से आते हैं वहां से वापस नहीं मुड़ते हैं। अब आप विचार कीजिए कि सच्चे मन से लिया हुआ संकल्प कितना ताकतवर हो सकता है।