कर्म ही हमें सुख और दुख देता है – जैन संत हर्षित मुनि

कर्म ही हमें सुख और दुख देता है – जैन संत हर्षित मुनि

जैन संत ने कहा कि साधना के लिए समय मिलता नहीं,निकालना पड़ता है

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) दो अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि हम किसी व्यक्ति को देखते हैं और हम उससे बात करना चाहते हैं। ऐसा क्या होता है कि हम उसके प्रति इतने आकर्षित हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह पूर्व जन्म के कर्म हैं। उन्होंने कहा कि हम यह सोचे कि जो दुनिया के अनंत जीवों को नहीं मिला है, वह मुझे मिला है। यह सब पिछले जन्म के कर्मों का प्रभाव है।हो सकता है कि हमने पिछले जन्म में नवकार का जाप किया हो या फिर कोई पुण्य कार्य किया है जो इस जन्म में हमें मिला है। इसका साफ अर्थ यह है कि कर्म ही हमें सुख और दुख देता है।
गौरव पथ स्थित समता भवन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज अपने नियमित प्रवचन में कहा कि कई व्यक्ति संपन्न होते हुए भी कुरूप होते हैं। उन्होंने कहा कि यह पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। हम भूतकाल तो बदल नहीं सकते किंतु पास्ट से सीखकर हम अपना वर्तमान और भविष्य सुधार सकते हैं। आप अपने आप पर दया करें। किसी को भी जो मन में जो आए मत बोलें। अपनी भाषा पर संयम रखें। किसी का मन ना दुखाएं। उन्होंने कहा कि साधना के लिए अलग से समय मिलेगा यह जरूरी नहीं है। आपको साधना के लिए समय निकालना होगा। हमें स्वयं ही सुधरना होगा, बाहर से कोई सुधारने आने वाला नहीं है।
श्री हर्षित मुनि ने कहा कि पुण्य एकत्र होने पर व्यक्ति पाप कर्म करने ना लग जाए, बल्कि सदकर्म कर अपने पुण्य को और बढ़ाएं। किसी भी चीज के लिए मन में द्वेष का भाव ना रखें, नहीं तो बाद में यह हमें कष्ट देगी। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने क्रोध को दूसरों पर निकालता है और यदि वह सामने वाले पर क्रोध नहीं निकाल पाता तो स्वयं पर निकालता है। उन्होंने कहा कि चिंतन कर इसे बाहर निकालें। आप समय निकालकर आराधना करें। पाप क्रोध से बचे तो जीवन धन्य हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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