हम जहां सोचना खत्म करते हैं,वहां से महापुरुष सोचना शुरू करते हैं
राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 5 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हर क्षेत्र में बुद्धि बल ही काम आता है। शारीरिक बल से ज्यादा चला नहीं जा सकता, हमें बुद्धि बल का ही हर जगह उपयोग करना पड़ता है। बुद्धि से लिया गया निर्णय सुखदाई होता है। हमारे जीवन में यदि अशांति है तो इसका बहुत बड़ा कारण है कि हमने बुद्धि बल से इसका निर्णय नहीं लिया है।
समता भवन में आज अपने प्रवचन के दौरान जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि निर्णय लेने का काम तो हमारे गर्भ में रहने से ही शुरू हो जाता है। माता-पिता सोचते हैं कि लड़का होगा या लड़की, उसके बाद उसका नाम क्या रखेंगे और फिर उसे किस स्कूल में पढ़ाएंगे? आदि प्रश्नों को लेकर निर्णय लेते हैं। इन छोटे-छोटे निर्णयों में हम अपना कितना समय गवां देते हैं। कई लोग तो छोटे-छोटे निर्णय भी सोच समझ कर लेते हैं। जो जागृत व्यक्ति होता है वह कदम-कदम पर सोच समझकर निर्णय लेता है। कई तो ऐसे भी होते हैं जो निर्णय ही नहीं लेते बल्कि अपने बच्चों पर अपने विचार थोप देते हैं। उनका विचार रहता है कि बड़े भाई के बेटे ने इंजीनियरिंग किया है तो अपने बेटे को भी इंजीनियर बनाएंगे । उनका यह विचार बच्चों पर कितना भारी पड़ता है!
मुनि श्री ने फरमाया कि सोच समझकर बुद्धि बल से निर्णय लेने वाले अपनी पहली जगह तब तक खाली नहीं करते जब तक कि दूसरा कोई विकल्प उनके सामने ना हो। उन्होंने कहा कि निर्णय लेने की यह परंपरा बढ़ती ही रहती है। उन्होंने कहा कि गलत निर्णय हुआ तो दुख ही दुख और सही निर्णय लिया तो सुख ही सुख । सही निर्णय लेने की क्षमता “नमो अरिहंताण” का जाप करने से बढ़ता है। जिन शासन में समता दर्शन व्यवहार से चलता है। उन्होंने कहा कि जहां हम सोचना बंद करते हैं , वहां से महापुरुष सोचना चालू करते हैं। महापुरुषो के मन जो भी विकल्प होता है, वह सही होता है। इसका कारण यह होता है कि हमारा निर्णय राग-द्वेष से लिया गया होता है जबकि महापुरुषों का निर्णय राग-द्वेष से परे होता है। आचार्य स्वयं निर्णय से परिपूर्ण होते हैं। हमें भी “नमो अरिहंताण” की साधना करनी चाहिए ताकि हमारे भीतर यह क्षमता जागे कि हम सही समय पर सही निर्णय ले सके। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।