जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासा आवश्यक है
राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 6 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हममें ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासा बनी रहनी चाहिए। हम यह ठान लें कि किसी भी कार्य की शुरुआत करें तो उसकी निरंतरता बनाकर रखें और जब तक वह काम संपूर्ण ना हो जाए हमारी निरंतरता बनी रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले शिक्षक जीवन जीने की कला सिखाते थे। कमजोर बच्चों की ओर विशेष ध्यान देकर उन्हें सामान्य बच्चों की दौड़ में लाते थे।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि आज ऐसा क्या हो गया है कि शिक्षकों का बच्चों के प्रति रुझान कम है और बच्चे भी अन्य रास्तों से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षक भी वही है और बच्चे भी वही है। आज शिक्षक 80 हजार रुपए पेमेंट पाता है फिर भी बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं। ज्ञान किसी भी माध्यम से मिले किंतु यह जरूरी है कि शुद्ध ज्ञान मिले। इसके लिए आवश्यक है कि हमें अपने बच्चों को कम से कम एक घंटे का समय अवश्य देना चाहिए। साधु होने के साथ-साथ ज्ञान आवश्यक है और ज्ञान होने के साथ सूचक और पुरुषार्थ भी आवश्यक है।
मुनि श्री ने फरमाया कि पढ़ाने वाले और पढ़ने वाले को बचाना आवश्यक है। यह रहेंगे तो यह परंपरा भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि बच्चों को यह पता है कि ज्ञान प्राप्त करने के अन्य रास्ते हैं इसलिए अब गुरु और शिष्य के बीच वह बात नहीं रह गई है जो पहले थी। शिष्यों में भी जिज्ञासा खत्म हो गई है। शुद्ध ज्ञान प्राप्त करने के लिए क्षण भर का भी समय व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि थोड़ा सा पढ़ने में रुचि बढ़ाइए। हमें हर माह या साल में कम से कम चार-पांच किताबें अवश्य पढ़नी चाहिए। पुराने आचार्यों ने शुद्ध ज्ञान की परंपरा ना मिटे इसके लिए प्रयास किए, किंतु हम उन्हें सहेज नहीं पा रहे हैं। मुनिश्री ने कहा कि एक नींद मोहनीकरण की होती है जिसके तहत आदमी किताब पढ़ते हुए सो जाता है और जैसे ही पढ़ने का काम खत्म हो जाता तो नींद गायब हो जाती है। उन्होंने कहा कि हमें भले ही मोहनीकरण की नींद क्यों ना आ जाए , हम यह ठान लें कि उस किताब को पढ़ेंगे और पूरा करके ही दम लेंगे। हमारे भीतर की जमीन तभी सिंचित होगी जब हम शुद्ध ज्ञान से उसे सीचेंगे। कोई भी काम शुरू करने से पहले भगवान अरिहंत का नाम ले और उनका स्मरण करते हुए कार्य शुरू करें तथा उसमें निरंतरता बनाए रखे रहें। आंखों की क्षमता चली जाए , पढ़ने की क्षमता खत्म हो जाए , इससे पहले हम ज्ञान हासिल कर लें अन्यथा बाद में बहुत पछताएंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।