साधना तभी सफल होती है जबमन में मंगल भाव हों – हर्षित मुनि

साधना तभी सफल होती है जबमन में मंगल भाव हों – हर्षित मुनि

साधना में धैर्य की आवश्यकता होती है

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 9 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि साधना तभी सफल होती है जब मन में मंगल भाव हो। साधना के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। नवकार मंत्र का जाप करने पर निश्चित ही मंगल होता है। उन्होंने कहा कि हमारे मन में मंगल भावना रहनी चाहिए। भगवान साधकों का साथ अवश्य देते हैं।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि किसी डॉक्टर का नाम इसलिए चलता है क्योंकि उसने टिपिकल से टिपिकल केस भी हैंडल किया है। इसी तरह हम अरिहंत को भी इसलिए ध्यान करतें हैं क्योंकि वह लाइलाज बीमारी को भी ठीक कर देते हैं। जब तक मन में श्रद्धा नहीं होगी तब तक नवकार पद की साधना काम नहीं आएगी। इसके लिए श्रद्धा होनी चाहिए। जिस तरह राग द्वेष कर्म बंध का कारण है, उसी तरह वितराग भी एक भाव है। साधना के समय वितराग का भाव रहना चाहिए।
मुनि श्री ने कहा कि हमारा मन भाव से भरा है। यदि हम दूर से भी सुन लेते हैं कि सेठ ने हमारे लिए अच्छा बोला है तो हम खुश हो जाते हैं और यदि यह सुन लेते हैं कि सेठ ने हमारे खिलाफ बोला है तो हमारा मन द्वेष से भर जाता है। यह राग द्वेष ही अशांति का कारण है। नवकार मंत्र का भाव मंगल है और इसकी साधना करने से जरूर मंगल होता है। उन्होंने कहा कि जिसका पुण्य ज्यादा होता है उसका शुभ ही शुभ होता है और पुण्य कम होने से अशुभ होता है। सुकून तो पुण्य लाभ और अपशकुन तो पुण्य कमजोर। उन्होंने कहा कि अपशुकुन व्यक्ति को चेतावनी देते हैं। सुकून, अपशगुन, शुभ अशुभ केवल भाव है। उन्होंने कहा कि द्रव्य मंगल, अद्रव्य मंगल इन सब भावों से ऊपर उठते हुए नवकार पद की साधना करें। इसमें इतनी ताकत है कि वह दुर्गति को भी सद्गति में बदल देता है। पाप से ज्यादा धर्म में शक्ति होती है। हमने वचन से, काया से ज्यादा पाप मन से किए हैं और जिस से ज्यादा पाप हुआ है , उसीसे पाप का नाश भी होगा। हम भाव पूर्वक नवकार की साधना करें तो हम अवश्य सफल होंगे और हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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