परिवार संकुचित होने पर सोच भी संकुचित होने लगी है
राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़)17 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि चेतन मन से हम एक ही क्रिया को बार – बार करते रहेंगे तो धीरे-धीरे वह क्रिया अवचेतन मन में चली जाती है और हमारे व्यवहार में आ जाती है। इसके लिए आपको जागृत होना पड़ेगा तो यह आदत में शुमार हो जाएगी। अगर किसी भी चीज को आदत से व्यवहार में लाना है तो इसके लिए मेहनत करनी होगी। छोटे-छोटे नियमों को व्यवहार में लाएं और जीवन को धन्य बनाएं।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि जिस तरह बोलने और चलने का तरीका होता है , वैसे ही सोचने का भी तरीका होता है। सोचने का तरीका बदलना हो तो नया डिजाइन करना होगा और इसे बार-बार करना होगा तो धीरे-धीरे यह व्यवहार में आ जाएगा। सकारात्मक संदेश मन को दें। कुछ नियम तो हमारे व्यवहार में लागू होने ही चाहिए। आज से कुछ समय पहले भारतीय लोगों की सोच थी कि उनके घर में मेहमान आए किंतु अब परिवार संकुचित होने के साथ-साथ हमारी सोच भी संकुचित हो चुकी है। हम सोचते हैं कि हमारे यहां मेहमान ना आए तो ज्यादा अच्छा है।
मुनि श्री ने कहा कि हम गाय के लिए रुखी रोटी रखते हैं,जबकि हमें उसी गाय से घी मिल रहा है। इससे अच्छे तो जानवर हैं कि घास खाते और हमें दूध देते हैं। बादल ने कब आप से चार्ज मांगा है ! वह समुद्र से खारा पानी लेता है और आपको मीठा पानी देता है। प्रकृति से कुछ तो सीख लेनी चाहिए। नियम बनाएं कि रोज कम से कम एक परोपकार तो करें। हमने बहुत सारी चीजें अपना ली किंतु नीति धर्म को नहीं अपनाया इसलिए हम अशांत हैं। उन्होंने कहा कि आशीर्वाद हमारे चित्त/ मन को प्रसन्न कर देता है। मन प्रसन्न रहता है तो आधी बीमारी वैसे ही ठीक हो जाती है।
जैन संत ने कहा कि पहले पुराने परिवार बड़े होते थे और सभी का सब ध्यान रखते थे किंतु आज परिवार संकुचित होने लगा है और लोगों की सोच भी संकुचित होने लगी है। आपके दादा जी में जो आदत थी, उन आदतों को अपनाएं और उसे अपने बच्चों और पोतों तक पहुंचाएं। हमारे अच्छे नियमों में जो गिरावट आई है, उसका स्तर सुधरेगा। हमारा जीवन स्तर सुधरेगा तो हम धन्य हो जाएंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।