मदर्स डे….. मां कभी तारीखों पर प्यार नहीं जताती….. जान हथेली पर रखनी होती है, मां को मां होने में

मदर्स डे….. मां कभी तारीखों पर प्यार नहीं जताती….. जान हथेली पर रखनी होती है, मां को मां होने में

मां वो हस्ती है जो जन्म देती है…. और संकट आने पर अपनी जान भी। जन्मदिन ही आपकी जिंदगी का वह एकमात्र दिन होता है, जब आपके रोने की आवाज़ पर आपकी मां मुस्कुराती है। इसके बाद वो दिन कभी नहीं आता। बच्चे का जन्म ही वह समय होता है जब एक मां भी पैदा होती है। इसके पहले उसका अस्तित्व नहीं होता । एक साथ दो लोग जन्म लेते हैं और ताउम्र साथ होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी उम्र क्या है, दुनिया के सबसे बूढ़े शख्स को भी मां की जरूरत होती है।

स्वामी विवेकानन्द जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया मां की महिमा संसार में क्यों गाई जाती है ? स्वामी जी बोले ‘पांच सेर वजन का पत्थर किसी कपड़े में लपेटकर पेट पर बांध लो और 24 घंटे बाद मेरे पास आना। वह व्यक्ति पत्थर बांधे हुये दिन भर काम करता रहा, लेकिन हर क्षण उसकी परेशानी और थकान बढ़ती गई। वह स्वामी जी के पास आकर बोला ‘इस पत्थर को अब और नहीं रख सकूंगा।’ इस पर वे बोले- ‘पेट पर यह बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया और मां अपने गर्भ में शिशु को पूरे नौ माह तक लिए लिए काम करती रहती है। मां के सिवा कोई दूसरा इतना धीर और सहनशील नहीं है।’ जरा सी डांट में खाना नहीं खाना, कुछ कह देने पर पलटकर जवाब देना, थोड़ी सी विषम परिस्थिति में हमारा धैर्य जवाब दे देता है। जरा अपनी मां के बारे सोचे ।

मां धरती की हरी दूब, मां केसर की क्यारी है –

जब-जब भी हम हारते हैं, हमें मां की याद आती है और ताकत मिलती है। वे सदा हारी हुई परिस्थिति में भी काम करती है। उसमें एक धुन, एक लय एक मुक्ति नजर आती है। वे काम के बदले नाम से गहराई तक मुक्त दिखलाई पड़ती है। असल में वे निचुड़ने की हद तक थक जाने के बावजूद भी इसी कारण से हंस पाती है कि वे हारी हुई हैं – विजय सरीखी तुच्छ लालसाओं पर उन्हें ऐतिहासिक विजय हासिल है। किसी ने भगवान से पूछा गॉड, अल्लाह, ईश्वर और वाहे गुरू में क्या अंतर है ? भगवान मुस्कुरा के बोले वही जो मॉम, अम्मी मां और बेबे में है ।

यही वो मां है, जिसका ध्यान आते ही जीवन के तपते बंजर में शीतल छांव का एहसास होता है। उनके स्पर्श मात्र से ही ममता के पवित्र जल से रूह तक नम हो जाती है। अपनी संतानों के प्रति माताओं का वात्सल्यपूर्ण प्रेम और अनुराग अनादिकाल से निःश्छल, नैसर्गिक और व्यापार-विनिमय विहिन रहा है। एक युवक अपनी प्रेमिका की फरमाईश पुरी करने के लिये अपनी मां के गहने चोरी कर भाग रहा था कि घर की चौखट से टकराकर गिर पड़ा। बिस्तर पर पड़े-पड़े बिमार बूढ़ी मां सब कुछ देख रही थी, समझ रही थी। फिर भी, मां ने आवाज लगाई – “बेटे तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी?” ऐसी मां के पास बैठिये, दो फायदे होंगे आप कभी बड़े नहीं होंगे और मां कभी बूढ़ी या बीमार नहीं होगी। घड़ी भर का उनका सानिध्य आपका बचपन वापस ले आता है।

जान हथेली पर रखनी होती है, मां को मां होने में –

इस संसार में मां ही एक ऐसी देवी है, जिसका कोई नास्तिक नहीं है और

ऐसा कोई भगवान नहीं, जिनकी मां न हो। मातृत्व दिवस एक गलत अवधारणा हैं और संकिर्ण मानसिकता का परिचायक है। भला मां का भी कोई विशेष दिन हो सकता है, बल्कि मां होती है, तो दिन होता है। मां को किसी एक दिन के लिये सिर्फ एक दिन के लिये याद किये जाना संभव नहीं, क्योंकि उन्हें भूलाया जाना ही असंभव है।

मां जब पास होती है तब उतने पास नहीं होती है, जितनी जब वह दूर होती है तब होती है। मां की अहमियत उनसे पुछिये, जिनके पास नहीं होती है मां । इतने तजुर्बे तो नब्ज और नाड़ी देखने वाले हकीमों के पास भी नहीं होते, जितनी सफाई से मांयें सिर्फ आवाज सुनकर हरारत नाप लेती हैं। और फिर, जब दवायें असर नहीं करती, तब दुआओं का सहारा लेती हैं- नज़रे उतारती है, लेकिन कभी हार नहीं मानती । बचपन में चोट लगने पर मां की वो हल्की-हल्की फूंक, और कहना – “चींटी मर गई,चींटी मर गई, बस अभी ठीक हो जायेगा।” वाकई कोई वैसा मरहम आज तक नहीं बना। मां से बड़ा कोई अलार्म नहीं है इस दुनिया में…. 07 बजे उठाना हो तो 06 बजे उठा के कहती है, उठो 08 बज गये। बाजदफे गुस्सा भी आता है लेकिन उनकी मासुमियत, अपनत्व और मंसूबों के आगे नतमस्तक होना होता है।

फना कर दो अपनी सारी ज़िदगी मां के कदमों में, दुनिया में यही एक मोहब्बत है जिसमें बेवफाई नहीं मिलती। तानसेन का मल्हार हो, या बैजू का राग दीपक, डागर का ध्रुपद हो या मियां की तोड़ी, मां की लोरी से अच्छी शायद ही कोई संगीत रचना होगी। मां वेद की ऋचाओं में समाहित मातृत्व की पवित्र अनुभूति है, ‘ओम’ के रोम-रोम में व्याप्त सत्यम् शिवम् की प्रतिमूर्ति हैं, आंचल में जिसके जहां राम का शालीन रूप पलता है। वहीं नटखट कृष्ण का बचपन खिलखिलाता है। ऐसे वात्सल्य से परिपूर्ण ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ और अनमोल रचना को कोटि-कोटि नमन है, वंदन है।

(प्रोफे. डॉ. अरविन्द नेरल)
विभागाध्यक्ष, पैथोलॉजी विभाग,
चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर छ.ग. मो.नं.- 9893098540

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