सिद्धांचल (अमर छत्तीसगढ़)। गणधर श्री इन्द्रभूति-सुधर्मा स्वामिने नम: ॥? ॥ युगप्रधान दादा गुरुदेव मणिधारी श्री जिनचंद सूरिभ्यो नम: ।। ।। गणनायक श्री सुखसागर-जिन आनंद उदय-महोदयसागर सूरिभ्यो नम: ॥ शासन प्रभावक पन्यास प्रवर विनयकुशल मुनि जी म.सा. महानतपस्वी, अप्रमत्त आत्म साधक विराग मुनि जी म.सा. आदि सर्व श्रमण वृन्द अनुवन्दना – सुखशाता आप सर्व की संयम यात्रा अनंत यात्रा को विराम विश्राम में सहचारी होगी। महान तपस्वी आत्मिय विराग मुनि जी म. तप शिखरारुढ के सामाचार ज्ञात हुए। के इन्छ, जब बाह्य और अभ्यन्तर जगत का हो, और वह भी अनादि का हो, तब तो उसे सहना करना ही बड़ा कठिन होता है। उस पर विजय हासिल करना कितना दुष्कर होगा, क्या कहना वह तो विराग जैसा ही वीर साधक कर सकता है। प्रभु वीर के शासन में ऐसे ही वीरता का अद्भूत परचम लहराकर, प्रभु के वीरत्व की एक झलक दिखलाकर हम सब की आत्मा को आह्लादित करने के लिए आपका अन्त:करण पूर्वक धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद पंचम आरे में चतुर्थ. आरक तुल्य, चित्त की चमत्कृत और अंतस को आश्चर्यचकित करने वाले चारित्राचार की अपूर्व आराधना कर हम सब की आत्मा को आनंदित करने के लिए आपका साधुवाद हम सभी को आप पर गौरव है।
खरतरगच्छ के सहस्राव वर्ष को हमें जिस उत्साह से मनाना हैं, उसमें आपने अद्भूत अद्वितीय, अपूर्व पराक्रम से चार चाँद लगाया है। 1. आपने अपना धर्म निभाया है। शरीर के भी अपने कुछ धर्म हैं, दोनों का सामञ्जस्य कर उत्तरोत्तर लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें। आपके प्रचण्ड पुरुषार्थ की अनंत अनुमोरनाएँ जिन महोरय सागर इरिचरण जिन पीपूर्ण सागर।