तप से होता है आत्मकल्याण – समणी वृंद

तप से होता है आत्मकल्याण – समणी वृंद

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 4 अगस्त। सदर बाजार, स्थित तेरापंथ अमोलक भवन में आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्देशिका डॉ. ज्योतिप्रज्ञा जी, समणी डॉ. मानसप्रज्ञा जी का प्रवास गतिमान है जिसके अंतर्गत धर्म की गंगा प्रवाहमान है। तपस्वीयों द्वारा निरंतर तप प्रत्याखान लेकर कर्म निर्जरा की जा रही है। इसी के अंतर्गत समणी वृंद की प्रेरणा से तपस्यारत तपस्वीनी सुश्री प्रिंयजीता दुगड़ 8 की तपस्या के प्रत्याखान के साथ आज दिनांक 04/08/2023 को भिलाई से पधारी।

स्वागत विडियो गीत के साथ तपस्वी का स्वागत करते हुए तेरापंथ महिला मंडल, रायपुर ने मंगलगीत प्रस्तुत किया। श्रीमती सुरभि डागा व श्रीमती सुमन दुगड़ ने शुभकामनाएं व्यक्त की। भिलाई से पधारी श्रीमती आशा दुगड़ ने तप अनेक उपमाओं से श्रृंगारीत व्यक्त करते हुए तप अनुमोदना की। समणी डॉ. मानसप्रज्ञा जी ने तपस्या की अनुमोदना करते हुए कहा कि तपस्वी ने “रसना पर चाबी रुपी कन्ट्रोल लगा कर कर्म निर्जरा की” साथ ही नाम प्रियंजीता अनुरुप प्रिय वस्तु के मोह को जीत कर तपस्या का पूण्यार्जन किया। समणी निर्देशिका डॉ. ज्योतिप्रज्ञा जी ने धर्मसभा को उद्बबोधित करते हुए बताया कि तप क्यों किया जाता है? तप के 2 लाभ है – बाहृय व आंतरिक। प्रत्येक के 3-3 लाभ है जैसे – रोग मुक्ति, कामना पूर्ति, देह पुष्टि, मानसिक समस्याओं का समाधान, तेजो लेश्या का जागरण आदि। तप का अभिनंदन तप के द्वारा आवाहन अंतर्गत तपस्वी सुश्री प्रियंजीता का अभिनंदन श्री योगेश बाफना द्वारा तप प्रत्याखान लेकर किया गया।

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