रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) । लालगंगा पटवा भवन में महावीर गाथा के 59वें दिन उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि हर चेतना में परमात्मा बनने के बीज हैं। अगर उस बीज को पोषण, सहारा और देखभाल करने वाला कोई मिल जाए तो उसका उद्धार हो जाता है। और यह कार्य माँ-बाप करते हैं। एक जीव माँ के गर्भे में अनंत बीज लेकर आता है। उस बीज में से वही बीज पनपता है जिसे माँ-बाप सहारा देते हैं। जैसे बगीचे में बहुत बीज रहते हैं, लेकिन वही बीज पौधा बनता है जिसकी देखभाल माली करता है। विमला के कोख में महावीर का जीव पहुंचा है, और उस जीव की चेतना में मरीचि के जन्म के, विश्वभूति के जीवन के संयम के बीज भी हैं। करुणा भक्ति के बीज हैं। केवल त्रिपुष्ठ के, नारकी के बीज ही नहीं हैं, महावीर की चेतना के स्मृति में भगवान ऋषभदेव भी हैं, आचार्य संभूति विजय भी हैं। लेकिन उन दोनों बीजों में से वही बीज पनपेगा जिसपर माँ प्रतिक्रिया देगी। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि महावीर की चेतना रानी चेलना के गर्भ में पहुंचती है। 33 सागरोपम पूर्ण कर यह चेतना जब गर्भ में आती है तो भूचाल मच जाता है। रानी चेलना अपनी पति राजा श्रेणिक से प्रेम करती है। वह भगवान पार्श्वनाथ की उपासक है, कभी जीवन में मांस नहीं खाया है। लेकिन उसके मन में अपने पति का कलेजा खाने की तीव्र इच्छा जागृत हो गई। उसे चैन नहीं है, वह कुछ बोल नहीं पाती। पति का कलेजा खाना मतलब अपने सुहाग को अपने ही हाथों मार डालना। रानी चेलना अंदर भयंकर द्वन्द चल रहा है, भावना प्रबल है कलेजा खाने की, लेकिन विवेक उसे रोक रहा है। रानी की यह हालत स्मृति के कारण है, गर्भ में आये जीव की समृति। गर्भ में जो जीव आया है वह राजा श्रेणिक का पिछले जन्म का दुश्मन है। उसने यही सोचकर आयुष पूरी की है कि अगले जन्म में मैं तेरी मौत बनूंगा। रानी को चैन नहीं है। राजा ने बहुत पूछा, लकिन नहीं बताया। कैसे बताये कि मुझे आपका कलेजा खाना है? लेकिन एक दिन राजन ने सौगंध दे दी। रानी चेलना ने रोते हुए पूरी बात बता दी। राजन ने कहा कि तुम्हे मेरा कलेजा खाना है, ठीक है, मैं तैयार हूँ।
रानी चेलना ने अपने गर्भ में आये जीव के बीज को बदलने का प्रयास नहीं किया। उसको पनपने का प्रयास किया। उसकी जो इच्छा थी उसे पूरा करने का प्रयास किया। रानी चेलना चाहती तो बीज को बदल सकती थी, क्योंकि बीज को बदलने का सामर्थ्य माँ में होता है। राजा श्रेणिक इस सोच में पड़ा है कि मैं रानी चेलना की यह इच्छा कैसे पूर्ण करूँ? वचन दिया है कलेजा खिलाने का, कैसे पूर्ण करूँ। प्रवीण ऋषि ने कहा कि वचनपूर्ति के रास्ते खोजो, वचन से भागने के रास्ते कभी मत खोजो। जिसने अपने वचन को निभाया है वह सिद्ध हो गया। राजा उलझन में है, कैसे कलेजा खिलाऊँ। तभी अभयकुमार दर्शन के लिए आया। उसने पैर छुए लेकिन राजा श्रेणिक चिंता में डूबा हुआ था, उसे पता नहीं चला। अभयकुमार ने पूछा, कि आपको कौन सी चिंता सताए जा रही है। राजा ने पूरी बात बता दी। अभयकुमार ने कहा कि आप निश्चिन्त हो जाएं, मैं प्रबंध करता हूँ। अभयकुमार ने एक मायाजाल की रचना की, और कहा कि आप रानी चेलना से कहें कि आप तैयार हैं। रानी चेलना को पता चला, वह कमरे में पहुंची तो देखा कि राजा श्रेणिक लेटे हुए हैं। उसने उनका कलेजा चीरकर निकला और खाने लगी। खाने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने भयंकर पाप कर दिया है। वह रोने लगी, कहा मैंने अपने ही सुहाग को अपने हाथों उजाड़ दिया। तभी अभयकुमार ने मायाजाल को हटा लिया और राजा श्रेणिक रानी चेलना के सामने खड़े हो गए। रानी चेलना ने सोचा कि इस जीव के गर्भ में आते ही मैंने अपने पति के प्राण लेने की कोशिश की, इस जीव को समाप्त कर दूं। लेकिन वह कर न सकी। जन्म के बाद उसने कोणिक को फिकवा दिया था, लेकिन राजा श्रेणिक उसे वापस ले आये। और उसी कोणिक ने बड़े होकर अपने पिता को कारावास में बंदी बना कर रखा। यही नहीं वह उसे रोजाना 100 कोड़े भी मारता था। राजा श्रेणिक को अपना सबसे बड़ा दुश्मन सोचता था। लकिन रानी चेलना ने जब अपने पुत्र कोणिक को सच्चाई बताई, तो उसकी ऑंखें खुल गई। वह तलवार लेकर अपने अपने पिता की बेड़ियाँ काटने के लिए भागा। उसे आता देख श्रेणिक को लगा कि यह मेरी हत्या करने आ रहा है, और पितृहत्या के पाप से उसे बचने राजा श्रेणिक ने आत्महत्या कर ली। प्रवीण ऋषि ने कहा कि सवाल इतना है कि कोणिक को बदलने में देर लगी कि माँ को उसे बदलने में देर लगी। किसने देरी की ? माँ ने कोणिक को प्रतिबोध दिया तो वह बदल गया। यह काम वह पहले भी कर सकती थी। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
घर के वातावरण को ऊर्जामय करता है नवकार कलश : श्रीमती प्रभा श्रीश्रीमाल
1 अक्टूबर से शुरू हो रहे नवकार कलश अनुष्ठान के लिए नवकार आर्मी का गठन किया गया है। नवकार आर्मी की श्रीमती प्रभा श्रीश्रीमाल ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब कोई जीव संसार में कदम रखता है तब सबसे पहले उसके कानों में नवकार महामंत्र सुनाया जाता है। जब बच्चा माँ के गर्भ में प्रवेश करता है तब वह सबसे पहले नवकार मंत्र सुनता है। हम सभी उठाते-बैठते, सोते-जागते इस मंत्र का स्मरण करते हैं। लेकिन हम इस मंत्र की जो आपार शक्ति है इसे नहीं जानते हैं। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने बरसों की साधना से इस महामंत्र को अभिभूत किया है। ताकि संसार का सारे जीव जिनसुख, शांति व समृद्धि पा सकें। हम जो नवकार मंत्र का जाप करेंगे, उसकी सारी शक्ति इस नवकार कलश में समाहित होगी, और घर का वातावरण ऊर्जामय होगा। उन्होंने कहा कि हम घर घर नवकार कलश की स्थापना करें।