क्यों और कैसे मनाते हैं पर्युषण, उपाध्याय प्रवर बताएंगे
रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 9 सितंबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि जीवन में ठोकर लगने के बाद जो गिर जाते हैं, वे कभी उठते भी है, और कभी उठ भी नहीं पाते हैं। लेकिन कभी एक ऐसा जीवन भी हो सकता है कि जब शिखर से भी गिरे तो पड़े नहीं। मनुष्य का एक ऐसा चरित्र बनाना चाहिए कि कोई कहीं से भी फेंक दी, वह अपने पांव पर खड़े हो जाए। और ये तब होता है जब हमारा पापों के साथ का रिश्ता टूटता है।
उन्होंने बताया एक बार पाप का रिश्ता टूटा, गिराने वाले आते रहेंगे लेकिन हम गिरेंगे नहीं। और इस पल को पाने के लिए जैसे चण्डकोषी को महावीर मिले, वैसे ही कोई गुरु मिल जाए। चण्डकोषी अपने तीन जन्म के पहले योगी था, क्रोधी नहीं था। एक शिष्य मिला जिसने चण्डकोषी को ऐसा गिराया कि जन्म-जन्म का गुस्सा साथ में बढ़ता चला गया। लेकिन उसी चण्डकोषी को जब महावीर मिले, तो कितने गुस्सा दिलाने वाले आये, उसने गुस्सा नहीं किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
लालगंगा पटवा भवन में महावीर गाथा के 61वें दिन शुक्रवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में दो स्थितियां होती है, एक कोई गुस्सा कराने वाला मिल जाता है, और हम गुस्सा हो जाते हैं। और एक वो स्थिति होती है जब कोई गुस्सा दिलाये और हम गुस्सा नहीं होते हैं। गुस्सा वो नहीं करेगा जिसका गुस्से के साथ रिश्ता छूटा हुआ है। अभी अपना गुस्सा रुका हुआ है, टूटा हुआ नहीं है। हमारा गुस्सा रुका हुआ है। कोई दूसरा बोले तो गुस्सा आता है, वहीं कोई अपना बोले तो नहीं आता है। कुछ कर्म समाप्त हो गए हैं, कुछ कर्म उपशम में है। उनको निमित्त मिल गया तो वे वापस आ जायेंगे। अगर आपने बीज को गोदाम में रखा है तो वह कभी न कभी पनपेगा। अगर आप उसे जला दें तो वह पनपेगा नहीं। वैसे ही गुस्से को नियंत्रण नहीं उसे समाप्त करना आवश्यक है। क्षायिक भाव में अगर किसी ने तय कर लिया कि मुझे प्रेम में जीना है, तो कोई कितना भी गुस्सा कराने वाला आ जाए वो प्रेम ही करता है। प्रवीण ऋषि ने एक प्रसंग सुनाया, एक बार एक बिच्छू पानी में गिरा था, और एक संत उसको उठाकर बाहर रखना चाहता था। संत उस बिच्छू को पानी से उठाता तो वह डंक मारता, और संत के हाथ से छूटकर फिर पानी में गिर जाता। संत फिर उसे उठता और बिच्छू फिर डंक मारता। ऐसा बहुत देर तक चलता रहा। पास एक व्यक्ति खड़ा था, उसने कहा कि कैसे आदमी हो? तुम्हे पता है कि वह डंक मारेगा, फिर भी तुम उसे बार बार क्यों उठा रहा हो। संत ने कहा कि वो डंक मारना नहीं छोड़ता तो मैं इसे बचाना क्यों छोडूं? यदि वह बिच्छू होकर भी अपना स्वाभाव नहीं छोड़ता है, तो मैं संत होकर अपना स्वाभाव क्यों छोडूं? जब हम इस मनोस्थित में पहुँचते हैं तब क्षायिक भाव की यात्रा शुरू होती है।
प्यार और साधना में कोई कंडीशन नहीं रहती : प्रवीण ऋषि
प्रवीण ऋषि ने कहा कि हम कंडीशनल प्यार करते हैं। हमारा प्यार शर्तों पर टिका है। अगर अनकंडीशनल हो गए तो प्यार श्रद्धा में पहुँचता है। माँ विमला ने अपने पुत्र के अंदर से सारी क्रूरता की भावना को समाप्त कर दिया, उसे क्षायिक भाव में पहुंचाया। अब विमल कुमार के गिरने को कोई सवाल ही नहीं है। माँ ने ऐसी कृपा बरसाई कि विमल कुमार का जीवन ‘अनकंडीशनल’ हो गया। महावीर की चेतना ने पहले भी साधना की थी, लेकिन वह सशर्त साधना थी, लेकिन यह विमल कुमार की जो साधना थी इसमें कोई शर्त नहीं थी। माँ विमला ने इसे अनकंडीशनल बना दिया था। राजा ने विमलकुमार का राज्याभिषेक किया, और दोनों माता-पिता दीक्षा लेकर संयम की यात्रा पर निकल गए। विमल कुमार ने अपने राज्य में एक व्यवस्था बनाई कि संपूर्ण राज्य में किसी पशु-पक्षी का वध नहीं होगा, और कोई भी निवासी मांसाहार नहीं करेगा। उसने कहा की प्रजा के साथ पशु-पक्षी भी मेरी शरण में हैं, उन्हें कोई चोट न पहुंचाए। कोई किसी को मारकर न खाये।
प्रवीण ऋषि ने कहा कि पर्युषण पर्व की आराधना का एक ही लक्ष्य सामने रखना है, कि मेरा चरित्र, मेरी माला, मेरा उपवास, मेरी नवकारसी, मेरा स्वाध्याय जो भी मैं धर्म करूंगा वो अनकंडीशनल होगा। चाहे छोटा सा पचकान हो, छोटी सी साधना हो, उसमे कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी आस्था को परखो, अनकंडीशनल बनो। जिसने सुख संसाधन को छोड़ा, उसने दुनिया जीत ली। हम धर्म का काम तो करते हैं, लेकिन धर्म के सदस्य नहीं बनते हैं। किसी दफ्तर का स्थायी कर्मचारी बनाना चाहते हैं, लेकिन परमात्मा का स्थायी कर्मचारी बनने की कोशिश नहीं करते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार पर्युषण पर्व 10 दिनों का होगा। पर्युषण पर्व के पहले प्रवीण ऋषि 10 सितंबर को बताएंगे कि हम पर्युषण पर्व क्यों मनाते है। इसके बाद 11 सितंबर को हमे पर्युषण पर्व कैसे मनाना है, इसके बारे में बताएंगे।