वस्तु कैसे लेना है, यह कला आ गई तो जीवन सम्यक हो जाएगा : प्रवीण ऋषि

वस्तु कैसे लेना है, यह कला आ गई तो जीवन सम्यक हो जाएगा : प्रवीण ऋषि


पर्युषण महापर्व की प्रवचन माला के चौथे दिन उपाध्याय प्रवर ने समझाई आदान निक्षेप समिति

रायुपर(अमर छत्तीसगढ़) 15 सितंबर। लालगंगा पटवा भवन में पर्युषण महापर्व की प्रवचन माला में उपाध्याय प्रवर ने शुक्रवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में अगर आपको कुछ लेना है तो मधुमक्खी की तरह लें, और उस वस्तु को रत्न की तरह सहेज कर रखें। एक मधुमक्खी बिना फूल को बिना कोई पीड़ा पहुंचाए मधु निकालती हैं। फूल पर तो कई जीव मंडराते हैं, लेकिन मधुरस निकालने का हुनर केवल मधुमक्खी में होता है। हुए जिस हुनर से वह मधुरस निकालती हैं उसी हुनर से उसे संभाल कर भी रखती है। उपाध्याय प्रवर आज श्रावकों को आदान निक्षेप समिति का वर्णन कर रहे थे। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

इस पर्युषण महापर्व में उपाध्याय प्रवर 5 समितियों के बारे में बता रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने ईर्या समिति, फिर भाषा और एषना समिति समझाई। आज चौथी समिति आदान निक्षेप समिति का उन्होंने वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जीवन निर्माण की कला में चौथी कला है कि वस्तु कैसे लेनी है, और कैसे रखनी है। सम्यक प्रवत्ति से जीवन सम्यक होता है और असम्यक प्रवत्ति से जीवन असम्यक होता है। बिना प्रवृत्ति के जीवन नहीं चलता, और प्रवृत्ति कैसी करनी है, इसका तरीका सीखने के लिए परमात्मा ने 5 समिति का विधान किया। लेना कैसे, रखना कैसे? बिना जाने, देखे जो वस्तु लेते हैं, तो क्या क्या हो जाता है। इस पर विचार करें कि बिना जांचे देने और बिना जांचे लेने के परिणाम क्या होते हैं। परमात्मा कहते हैं कि कैसे भी लेना, पहले प्रतिलेखन और फिर परमाजर्न। देखना और परमार्जन भी करना है। वस्तु लेनी है तो देखकर, रखना भी है तो देखकर। जिसे यह कला आ गई, उसका जीवन सम्यक बन गया। अगर आप बिना देखे रखेंगे तो आपको याद नहीं रहेगा कि आपने उस वस्तु को कहां रखा था। लेते समय भी ध्यान रखना पड़ता है।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि आदान निक्षेप समिति बहुत सामान्य दिखती है। लेकिन वस्तु आप कैसे रखते हो, कैसे लेते को, यह देखने से पता चल जाता है कि आपके अंदर कला है या नहीं। देने की भी कला आनी चाहिए और लेने की भी। इसलिए साधू को मधुकर कहा गया है। मधुकर अर्थात मधुमक्खी, जो मधु एकत्रित करती है। मधुमक्खी लेने की कला में माहिर है। फूलों पर भौंरे, तितली, चींटी जैसे कई जीव बैठते है, लेकिन इनमे से कोई भी मधु नहीं निकाल सकता है। मधु केवल मधुमक्खी ले सकती है, और फूल को भी कोई पीड़ा नहीं होती है। लेने की कला ऐसी होनी चाहिए कि देने वाले को देने का आनंद आ जाए। कोई भी वस्तु लेनी है, और रखनी है तो उपयोगपूर्वक लेनी है और रखनी है।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि पर्युषण महापर्व के दौरान टैगोर नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में प्रतिदिन की भांति आज भी प्रातः 6 बजे से प्रार्थना (भक्तामर स्त्रोत आराधना), 8.15 बजे सिद्ध स्तुति, 8.30 बजे अंतगड़ सूत्र का मूलपाठ, फिर 10 बजे मंगलपाठ के बाद उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि का प्रवचन हुआ। दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तीर्थेश मुनि ने कल्पसूत्र की आराधना कराई। फिर शाम 6 बजे कल्याणमन्दिर स्त्रोत आराधना और सूर्यास्त के समय प्रतिक्रमण हुआ।

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