पर्युषण महापर्व : लालगंगा पटवा भवन में जारी है अंतगड़ श्रुतदेव आराधना
रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 19 सितंबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि परमात्मा से जुड़ना मतलब समस्या को सौभाग्य में बदलना। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि जख्म होने पर मलहम लगाना उचित है, कि ऐसी परिस्थिति निर्मित करना कि जख्म लगे ही नहीं। अर्जुनमालि के साथ ऐसा ही हुआ था। अर्जुनमाली श्रद्धा से, निर्मल भाव से मुद्गलपाणी यक्ष से जुड़ा था। हम जिसके साथ जुड़ते है, वैसे बनते हैं। हम जिनसे मोहब्बत करते हैं, उनकी सौगात आ ही जाती है। तो चुन लीजिए महावीर को, जो न केवल हमलावर को हमले करने से रोकते हैं, बल्कि हमलावर को भी बदल कर रख देते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।
पर्युषण महापर्व के लिए जारी अंतगड़ श्रुतदेव आराधना के दौरान सोमवार को उपाध्याय प्रवर ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अर्जुनमाली के प्रसंग में न तो गुंडों में परिवर्तन आया, और न ही समस्या का समाधान हुआ। आपके मन में जितने भी धारणाएं हैं, उनके लिए अंतगड़ सूत्र का एक अध्याय, अर्जुनमाली का बहुत है। शस्त्र से कभी समस्या का समाधान नहीं निकलता है। शस्त्र से केवल हिंसा ही होती है। समाधान के लिए संवाद पर आना ही पड़ता है। एक शस्त्र से बढ़कर शस्त्र भी आ सकता है। आज दुनिया में बड़े से बड़े शस्त्र बनाने की होड़ मची है। शस्त्र रखने से हिंसा का भाव बना रहता है। व्यक्ति शस्त्र का उपयोग कभी कभार करता है, लेकिन भाव तो बना रहता है। अर्जुनमाली ने तो गिने चुने लोगों को मारा था, लेकिन कितने जीवों के मन में भय की सृष्टि पैदा पर दी थी। उन्होंने कहा कि तीर्थंकर कभी सजा नहीं देते है, उन्होंने अर्जुनमाली को सजा नहीं दी, उसे सुधारा। दुनिया ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो गलती की सजा न देता हो। सजा देने से नफरत का भाव जागता है। परमात्मा गलती को सुधारते हैं, सजा नहीं देते। अर्जुनमाली इसलिए उलझ गया था क्योंकि उसने मुद्गलपाणी को नहीं छोड़ा था। ऐसे तीर्थंकर से जुड़ें जो तुम्हारी आत्मा को इस जन्म में भी और जन्म-जन्म में भी पवित्र बना दे। ऐसे के साथ मत जुड़ो जो इस जीवन को भी बर्बाद कर दे और भविष्य को भी बर्बाद कर दे। यह मिथ्या प्रतीत्याग का सूत्र है। अर्जुनमाली मुद्गलपाणी के साथ जुड़ा था, और सुदर्शन प्रभु महावीर के साथ। सुदर्शन के संपर्क में आकर अर्जुन माली प्रभु के चरणों में पहुंचता है। प्रभु की शरण पाकर अर्जुनमाली तो सिद्ध हो गया, लेकिन जिन्होंने उसकी आलोचना की, उन्होंने अपने सिद्ध बनने की राह अवरुद्ध कर ली। हमें किसी के इतिहास को देखकर उसकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। बड़प्पन की धुंध में किसी छोटे की अवहेलना मत करो।
उपाध्याय प्रवर ने अंतगड़ सूत्र का दूसरा पन्ना शुरू करते हुए पुलासपुर नगरी का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि एक बच्चा मैदान में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। वहीं से इंद्रभूति गौतम गुजर रहे थे। बच्चा उन्हें देखा है, और दौड़ते हुए उनके पास आता है। वह पूछता है कि आप कौन है, कहां जा रहे हैं? इंद्रभूति गौतम कहते हैं कि मैं मुनि हूं, आहार के लिए घूम रहा हूँ। बच्चे ने कहा कि आप हमारे घर चलिए, माता आपको आहार देंगीं। बच्चा इंद्रभूति गौतम की ऊगली पकड़कर अपने घर ले आया। माता को पता चला तो वे बहुत खुश हुईं, उन्होंने आहार दिया। बच्चे ने कहा कि आप खा क्यों नहीं रहे हैं? इंद्रभूति गौतम ने कहा कि मैं पहले अपने प्रभु के चरणों में अर्पित करूंगा, फिर ग्रहण करूँगा। बच्चे ने पूछा क्या मैं भी चल सकता हूँ? उन्होंने कहा क्यों नहीं। बच्चा उनकी ऊँगली पकड़कर चलने पड़ा। रास्ते भर कहानी सुनते सुनते उसे मजा आया। उसने इंद्रभूति गौतम से कहा कि मैं आपके पास आ रहा हूँ दीक्षा के लिए। बच्चे की माँ ने उसे बहुत मनाया, लेकिन वह नहीं माना। उसने दीक्षा ले ली। एक बार वह अन्य मुनियों के साथ बाहर गया था। बारिश होने लगी, तो उसका बचपन जाग गया। वह पानी में अपनी पत्री बहाने लगा। बाकी मुनि ने देखा तो उन्होंने सोचा कि प्रभु किसी को भी दीक्षा दे देते हैं। इंद्रभूति गौतम के पास पहुंचे और पूछा कि वह बालक मोक्ष में कब जाएगा? उन्होंने कहा कि वह इसी जन्म में मोक्ष में जाने वाला है, उसकी आराधना करो। उन्होंने बालक को अपने पास बुलाया और पानी में पात्री बहाने की आलोचना कराई। आलोचना केवल ज्ञान का सूत्र है।
प्रवचन माला में आज उपाध्याय प्रवर ने वचन गुप्ति की आराधना के बारे में बताया। बोला और काम हो गया, इसे वचन सिद्धि कहते हैं। इस शिखर तक पहुंचने की साधना को वचन गुप्ति कहते हैं। इसके तीन सूत्र हैं। पहला, कभी भी अशुभ शब्दों का उपयोग मत करो। शब्द शस्त्र हैं, वचन गुप्ति की आराधना का मन्त्र है कि जैसी भी स्थिति आये, अपने मुख से अशुभ शब्द न निकले। हम कई बार अशुभ शब्दों का उच्चारण करते हैं, और ये सत्य हो ही जाते हैं। किसी के भविष्य को बदलने का सामर्थ्य होता है वचन गुप्ति में।
मनुष्य के शरीर में वही दुःख आते हैं, जिसे वह झेल सकता है। मैं यह नहीं कर सकता हूँ, हम हमेशा बोलते हैं। इसका मतलब हम उसके लायक नहीं हैं, नालायक हैं। क्यों ऐसा बोलना? न तो अपने लिए और न ही दूसरों के लिए ऐसा बोलें। अशुभ शब्दों का उच्चारण कभी न करें।