जैन धर्म के पर्वाधिराज दशलक्षण महापर्व के तीसरे दिन “उत्तम आर्जव” धर्म दिवस
बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़) 21 सितंबर। जैन धर्म के पर्वाधिराज दशलक्षण महापर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म के अवसर पर धर्म सभा में श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे पंडित आशीष शास्त्री जी ने मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी के प्रवचन के सार को समझाते हुए बताया कि आर्जव का अर्थ है- ऋजुता या सरलता अर्थात बाहर-भीतर एक होना। मन में कुछ, वचन में कुछ तथा प्रकट में कुछ, यह प्रवृत्ति कुटीलता या मायाचारी है। इस माया कषाय को जीतकर मन, वचन और काय में एकरूपता लाना ही उत्तम आर्जव है।
पंडित जी ने इस धर्म के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आर्जव गुण धर्म का उत्तम लक्षण है, वह मन को स्थिर करने वाला है, पाप को नष्ट करने वाला है और सुख का उत्पादक है, इसलिए इस भव में इस आर्जव धर्म को आचरण में लाना चाहिए, उसका पालन करना चाहिए और उसका श्रवण करना चाहिए, क्योंकि वह भव का क्षय करने वाला है।
उन्होंने कहा कि यह आर्जव गुण सुख का संचय कराने वाला है। उन्होंने सभी श्रावकों से अनुरोध किया कि मन से माया शल्य को निकाल दीजिए और पवित्र आर्जव धर्म का विचार करिए, क्योंकि मायावी पुरुष के व्रत और तप सब निरर्थक हैं। यह आर्जव भाव ही मोक्षपुरी का सीधा उत्तम मार्ग है। जहाँ पर कुटिल परिणाम का त्याग कर दिया जाता है, वहीं पर आर्जव धर्म प्रगट होता है। यह अखण्ड दर्शन और ज्ञान स्वरूप है तथा परम अतींद्रिय सुख का पिटारा है। स्वयं आत्मा को भवसमुद्र से पार करने वाला भाव है आर्जव धर्म के होने पर ही प्राप्त होता है।
उन्होंने इस धर्म की विशेषता बतलाते हुए कहा कि सरल भाव से बैरियों का मन भी क्षुब्ध हो जाता है। आर्जव धर्म परमात्म—स्वरूप है, संकल्पों से रहित है, आत्मा का मित्र है, शाश्वत है और अभयरूप है। जो निरन्तर उसका ध्यान करता है, वह संशय का त्याग कर देता है और पुन: अचल पद को प्राप्त कर लेता है। आर्जव धर्म मन को सुमेरु पर्वत की भांति अडिग, दृढ़ और मजबूत बनाता है। मायाचारी व्रतों का खंडन विरोध करता है, वह भाव हिंसा और द्वव्य हिंसा भी ज्यादा करता है, विश्व की सभी बुराइयों का घर है मायाचारी। मायाचारी के व्रत, तप, साधना सभी निष्फल होती है।
मायाचारी त्यागे बिना जीव कभी भी सम्यकदृष्टि नहीं बन सकता। मायाचारी तभी की जाती है जब किसी के चंगुल से छूटना हो या किसी को चंगुल में फंसाना हो। इसके बारे में शास्त्री जी ने बताया गया कि मायाचारी करने वाला नियम से तिर्यंचगति में जाता है, इस भव में की गई थोड़ी सी मायाचारी तिर्यंचगति में अनंत दुखों को प्राप्त कराती है, इसलिए मायाचारी छोड़ मन में सरलता को धारण करो ताकि जीवन का उद्धार हो सके। मन, वचन, काय की सरलता हमें सीधे मोक्ष ले जाती है। आत्मा को पवित्र बनाती है।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम की श्रृंखला में उत्तम मार्दव धर्म के दिन क्रांतिनगर मन्दिर जी के नायक हाल में समाज के प्रसिद्ध गायक-गायिका नीरज मनीषा जैन ने भजन संध्या में अपनी आवाज से सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। भजन के माध्यम से णमोकार मन्त्र की महिमा बताई, इसके साथ ही भगवन जब माँ के गर्भ में आते हैं तो माँ को आने वाले सोलह स्वप्न का विवरण बहुत ही मधुर आवाज में सुनाया। इसके अलावा और भी बहुत मनमोहक भजन प्रस्तुत किए, इसमें प्रमुख रहे – बजे कुण्डलपुर में बधाई, ओ वीर से सबसे बड़ा तेरा नाम।
आत्म शुद्धि के इस महापर्व के अवसर पर सरकण्डा मंदिर जी में दसलक्षण धर्म विधान का आयोजन किया गया, जिसमें महिलाओं ने बढ़ चढ़ क्र हिस्सा लेकर धर्मलाभ लिया।