-स्वस्थ व्यक्ति, समाज, राष्ट्र व विश्व निर्माण का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-ऐसे दिव्य संत के दर्शन मात्र से ही हो जाता है कल्याण : आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत
-राष्ट्र धर्म और अध्यात्म की खूब सेवा करते रहें भागवतजी : आचार्यश्री महाश्रमण
-‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ का अवलोकन कर अभिभूत नजर आए आरएसएस प्रमुख भागवत
21.09.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
मुम्बई महानगर के नन्दनवन में वर्ष 2023 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत पहुंचे। आचार्यश्री के प्रवास कक्ष में पहुंचकर उन्होंने आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री के साथ उनका कुछ समय तक वार्तालाप का भी क्रम रहा। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ श्री भागवत भी मुख्य प्रवचन कार्यक्रम हेतु तीर्थंकर समवसरण में पधारे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सामान्य रूप में आदमी ही नहीं, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े भी जीवन जीते हैं। प्रश्न होता है कि आदमी आदमी जीवन क्यों जीए? अनेक संदर्भों में अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है, लेकिन शास्त्रोक्त दृष्टि से आदमी को अपने पूर्व कर्मों का क्षय कर अपनी आत्मा के कल्याण के जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा शाश्वत है, आत्मा अक्लेद्य, अशोष्य, अदाह्य है। जिस प्रकार आदमी एक वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण कर लेती है। जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसी आत्मा कर्मों से बंधी होती है। आदमी अपने पूर्व कर्मों को क्षय करने तथा अपनी आत्मा के कल्याण के लिए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। भारतीय संत परंपरा में संत व साधु बनकर आत्मकल्याण का प्रयास किया जाता है। अहिंसा, संयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा को निर्मल बनाया जा सकता है।
आदमी साधुओं की तरह महाव्रतों का पालक न बन सके तो गुरुदेव तुलसी द्वारा चलाए गए अणुव्रत आन्दोलन के छोटे-छोटे व्रतों और नियमों को स्वीकार कर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास कर सकता है। अनावश्यक हिंसा से बचने का प्रयास हो। आरम्भजा और प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा तो मानों फिर भी अनिवार्य हो सकती है। देश की सीमा व जनता के सुरक्षा के लिए सैनिक हिंसा तो आवश्यक हो सकती है, किन्तु जहां तक प्रयास हो कि परस्पर मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो। हिंसा, चोरी, झूठ आदि पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आज परम पूज्य कालूगणी की वार्षिकी पुण्यतिथि है। उनके समय में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शुभारम्भ हुआ था।
भारत में ग्रन्थ, पंथ और संत की अच्छी संपदा है। इनका अच्छा उपयोग कर स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र के बाद स्वस्थ विश्व का प्रयास भी किया जा सकता है। आदमी को अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहनजी भागवत का आना हुआ है। ये एक अच्छे व्यक्तित्व हैं। प्रचारक भी मानों कुछ अशों में संन्यासी जैसा होता है। आप खूब राष्ट्र धर्म और अध्यात्म की सेवा करते रहें। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अच्छा संगठन कार्य करते हुए आध्यात्मिक विकास करता रहे।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे राष्ट्रसंत के समक्ष बोलना आवश्यक नहीं समझता, किन्तु आचार्यश्री की आज्ञा है, तो बोलना पड़ेगा। अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने का प्रयास पूज्य आचार्यश्री कर रहे हैं। ऐसे दिव्य संतों का भारत की भूमि पर निरंतर प्रवाह भारत की सनातन परंपरा का कोई सौभाग्य है। आसुरी प्रवृत्तियों से त्रस्त विश्व के लिए आज भारत की संत व सनातन की परंपरा उनका पथदर्शन कर रही है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसे आचार्यश्री से प्रेरणा लेकर हम अपने को उस लायक बनाएं कि हम भी भारत की गुरुता को बनाए रखें। अभद्र और अमंगल शक्तियों के कारण आज अमेरिका और यूरोप लगभग नष्ट हो रहे हैं। उन्हें सही धर्म, सद्भाव और सदाचार भारत सीखा रहा है। पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संत की प्रेरणा के अनुकूल चलकर जब हम तैयार होंगे तो हम अन्य को रास्ता दिखा पाएंगे। भय का निवारण धर्माचरण के द्वारा होता है। मैं आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए आचार्यश्री के पास आता रहता हूं। मेरा मानना है कि ऐसे दिव्य संत के दर्शन मात्र से ही जीवन का कल्याण हो जाता है।
आचार्यश्री ने श्री भागवत को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आज के कार्यक्रम में भागवतजी का भी संभाषण हुआ। ऐसे अच्छे संबोधनों से समाज, राष्ट्र को खूब अच्छी प्रेरणा मिलती रहे। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ ने स्वागत वक्तव्य दिया। मंगल प्रवचन के उपरान्त आरएसएस प्रमुख आचार्यश्री महाश्रमणजी के 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा बने भव्य एग्जिविशन ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ का भी अवलोकन किया। आचार्यश्री के जीवन प्रसंगों को अत्याधुनिक उपकरणों के माध्यम से चित्रित, रखांकित और प्रस्तुति को देखकर श्री भागवत आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता की अनुभूति कर रहे थे। कुछ समय बाद वे पुनः गंतव्य को रवाना हुए।
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*
दिलीप जैन बरमेचा