रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 14 अक्टूबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि संकट के समय अगर धर्म का साथ रहेगा तो सफलता के द्वार खुलते हैं। धर्म का साथ रहता है तो सौभाग्य का उदय होता है। धर्म का साथ छोड़ा तो पाप का उदय होता है। धर्म के प्रति आस्था रहेगी तो मनुष्य कभी अपने आप को लाचार नहीं समझेगा। जैसे श्रीपाल की आस्था थी नवकार महामंत्र के प्रति। उसने कभी अपने आप को अकेला नहीं समझा। वह अकेला ही निकला था अपनी पहचान बनाने। उसके साथ मैनासुन्दरी की तपस्या और धर्म के प्रति आस्था थी। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
शुक्रवार को श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा सुनाते हुए प्रवीणऋषि ने धर्मसभा को कहा की जीवन में संकट नहीं आते, ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन संकट के समय आप क्या सोचते हो? आप यही कहते हो कि यह मेरे पिछले जन्मों का पाप है। यह पाप का उदय नहीं है, धर्म का जागरण है, धर्म के प्रति आस्था जगाने का समय है। जीवन में अगर तीर्थंकर नामकर्म कर बंद हो गया तो पाप कर्मों के रास्ते अपने आप ख़त्म हो जाते हैं। तीर्थंकर से परिचय हो गया तो पाप समाप्त हो जाते हैं। धर्म की प्रतिज्ञा पुण्य है। धर्म की राह पर चलते हुए कोई परिस्थिति आ जाए हुए अगर हम यह सोचें कि पिछले जन्मों का पाप है तो हम धर्म की निंदा करते हैं। प्रतिज्ञा लेकर धर्म करना और इस प्रतिज्ञा का पालन करना पुण्य है। और यही हमें सामर्थ्य देता है उन संकटों को जीतने का। शिखर पर पहुँचने के लिए पुण्य लगता है, शिखर से गिरने के लिए पाप। तपस्या करते समय तकलीफ हो तो कभी मत सोचना कि पाप का उदय है, यह धर्म का उदय है।
कहानी को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कई श्रीपाल उज्जैन में मजे से रह रहा था। सभी सुख सुविधाएँ थीं। एक दिन जब वह वन विहार कर लौट रहा था तो उसके दर्शन के लिए प्रजा रास्ते पर खड़ी थी, सभी उसके रूप को निहार रहे थे। वहीं एक माँ अपने बच्चे को गोद में लेकर खड़ी थी। श्रीपाल को देखकर बच्चे ने अपनी माँ से पूछा कि ये कौन हैं? माँ ने जवाब दिया कि ये हमारे राजा के जवाई हैं। माँ का यह जवाब सुनकर श्रीपाल के दिल को चुभ गई। उसने सोचा कि मेरी यही पहचान है, राजा का जंवाई? क्या मेरी खुद की कोई पहचान नहीं है? घर पहुंचा, माँ ने देखा कि बेटे का चेहरा मुरझाया हुआ है, उसने कारण पूछा। श्रीपाल ने कहा कि मुझे खुद की पहचान बनानी है, और यहां रहूंगा तो केवल घरजँवाई के नाम से जाना जाऊँगा। मैं अपनी पहचान बनने के लिए अनजाने रास्तों पर चलना चाहता हूँ। और अपनी पहचान बनाकर लौटूंगा। माँ ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि कष्ट के बीच कभी धर्म को मत भुलाना। मैनासुन्दरी को भी पता चला, वह साथ जाने की जिद करने लगी। श्रीपाल ने कहा कि मुझे अपना पराक्रम जागृत करना है, तुम साथ रहीं तो मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी। उसने कहा कि मैं 12 वर्ष बाद अष्टमी के दिन पहुंचूंगा। मैनासुन्दरी ने कहा कि मैं अष्टमी तक इन्तजार करूंगी, और नवमी को दीक्षा ग्रहण कर लूंगी। इस दौरान एकासन करूंगी, और धर्म में समय व्यतीत करूंगी। बस आप मुझे मत भूलना। श्रीपाल ने कहा कि तुम्हारे जो मेरे ऊपर इतने उपकार हैं, कभी नहीं भूल सकता हूँ। और श्रीपाल चल पड़ा अपनी पहचान बनाने। उसके साथ मैनासुन्दरी के तप का बल और नवकार महामंत्र की शक्ति थी।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।