ब्रह्मचर्य से बढ़कर कोई तप नहीं : प्रवीण ऋषि
आज के लाभार्थी परिवार : जवरीलालजी बरमेचा परिवार चेन्नई
रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 1 नवंबर। उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के अष्टम दिवस बुधवार को उपाध्याय प्रवर ने कहा कि ब्रह्मचर्य की महिमा गाई जाती है, लेकिन आज का चिकित्सा विज्ञान भारतीय आध्यात्मिक शास्त्र को चुनौती देता है। उनके अनुसार ब्रह्मचर्य अस्वस्थता को, मानसिक व्याधियों को जन्म देता है। महावीर भी कहते हैं कि ब्रह्मचर्य बीमारियों को और पागलपन को जन्म दे सकता है। ब्रह्मचर्य किसी को बेकाबू भी कर सकता है। लेकिन मर्यादाओं के साथ ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए हो व्यक्ति सिद्ध हो जात है। केवल जिनशासन ही है, जो केवल ब्रह्मचर्य की बात नहीं करता है, बल्कि उसके वातावरण की भी बात करता है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के अष्टम दिवस लाभार्थित परिवार श्री दुलीचंदजी भूरचंदजी कर्नावट परिवार तथा सहयोगी लाभार्थी परिवार अनिल कुमार संभव कुचेरिया परिवार ने श्रावकों का तिलक लगाकर उनका स्वागत किया। उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रह्मचर्य से बढ़कर कोई तप नहीं है। जिनशासन में ब्रह्मचर्य के लिए एक अनूठी देशना है, यहां ब्रह्मचर्य के लिए वातावरण की बात की गई है। ब्रह्मचर्य के लिए श्रुतदेव आराधना के सोलहवें अध्याय में महावीर 10 वातावरण की चर्चा करते हैं। जैसे गुस्सा नहीं करना है तो शांत वातावरण की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही ब्रह्मचर्य करना है तो उसे 10 तिजोरियों में रखना पड़ता है। ब्रह्मचर्य साध लिया तो सारी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। जिनशासन ने ब्रह्मचर्य का व्रत और उसकी व्यवस्था था वातावरण भी दिया है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि ब्रह्मचर्य के लिए प्रभु महावीर ने दस मर्यादाओं की बात की है। अगर एक भी मर्यादा टूटी तो आदमी पागल हो जाता है। पहली मर्यादा है आहार, उतना ही ग्रहण करो कि पेट पर जोर न पड़े। जो वासना को जागृत करे ऐसा आहार नहीं करना। केवल मुँह से ही नहीं, आँख, कान, नाक से भी क्या ग्रहण करना है, महावीर उसकी बात करते हैं। उत्तेजना में कभी नहीं रहना, उत्तेजना चेतना को व्यथित कर देती है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि आज का अध्याय केवल साधुओं के लिए नहीं बल्कि सभी वर्गों के लिए है। क्योंकि प्रभु सभी के लिए बोलते हैं। पहली मर्यादा है स्पर्श की, महिला और पुरुष के आसन एक दूसरे से टच नहीं होने चाहिए। स्पर्श इन्द्रियां विवेक को स्वीकार नहीं करती हैं। स्त्री को पुरुष की और पुरुष को स्त्री की करनी चाहिए। इससे दीर्घकालिक भावना जागृत होती है, और यह भावना विकार को जन्म देती है, बीमार भी हो सकते हैं। स्त्री-पुरुष को आसन-शैया साझा नहीं करना चाहिए। किसी को देखना है तो एकटक मत देखो, मन में गया विषाणु ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। स्त्री-पुरुष को एक दूसरे के शब्द छिपकर नहीं सुनने चाहिए। प्रभु कहते हैं कि कान का भोजन सुरक्षित नहीं तो मन भी सुरक्षित नहीं। जो सुनते हैं, वही विचार मन में आते हैं। मुँह से गया भोजन तन को बनाता है और कान से गया भोजन मन को बनाता है। मन को संभालना है तो कान से क्या जा रहा है वह देखो।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सोच का बीज सुनने से जन्म लेता है। आपके मन में वही विचार आएंगे जो अपने सुने हैं, जो नहीं सुना है वह विचार नहीं आएंगे। इसलिए ब्रह्मचर्य में इन्द्रियों पर नियंत्रण बहुत जरुरी है। इन्द्रियों में विवेक नहीं रहता, विवेक मन में रहता है। शब्द से धर्म भी हो सकता है, अधर्म भी। आप यह सोचें कि अपने परिवार के कानों को सुरक्षित रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं। जो हो चुका है, उसे भूल जाओ, बीती बातों को याद करने से पीड़ा ही होती है। प्रभु कहते हैं कि गरिष्ठ आहार नहीं करना चाहिए। रोज सरस आहार नहीं करना चाहिए। गरिष्ठ आहार विकारों को जगाता है, शक्ति को नहीं। अति आहार मत करना, कुछ भी खाओ, लेकिन ज्याद मत खाओ, पेट पर जोर मत दो। सात्विक भोजन हो तो भी ज्याद नहीं खान। रात्रि भोजन मत करो। सौंदर्य प्रसाधनों से दूर रहो। घर का जैसा वतावरण रहेगा, वैसे ही मन में भावना बनेगी।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 2 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं जवरीलालजी बरमेचा परिवार चेन्नई। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।