क्षमा करने से संकट को जीतने का सामर्थ्य आता है : प्रवीण ऋषि

क्षमा करने से संकट को जीतने का सामर्थ्य आता है : प्रवीण ऋषि


लालगंगा पटवा भवन में गूंज रहे प्रभु महावीर के अंतिम वचन

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 8 नवंबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि संसार के समस्त जीव शक्ति संपन्न हैं। और जहां शक्ति होती है, वहां पराक्रम होता है। शक्ति यदि श्रद्धापूर्ण है तो सम्यक पराक्रम होता है। शक्ति यदि संशय, मिथ्यात्व से संपन्न है तो मिथ्या पराक्रम होता है। सम्यक पराक्रम भगवत्ता की ओर ले जाता है, वहीं मिथ्या पराक्रम शैतानियत की ओर ले जाता है। प्रभु महावीर ने अनुत्तर देशना में सम्यक पराक्रम की 72 साधनाएं दी हैं। ये ऐसी अनूठी साधनाएं हैं कि अगर कोई व्यक्ति इनमे से एक साधना भी कर लेता है तो उसके अंदर की भगवत्ता जागृत हो जाती है। और उन्ही साधनाओं का क्रम बुधवार को जारी रहा। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

लालगंगा पटवा भवन में जारी उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 16वें दिवस बुधवार को लाभार्थी परिवार श्रीमती किरण देवी निर्मल कोठारी परिवार (बालाघाट) तथा सहयोगी लाभार्थी परिवार श्रीमती चंद्रकांता-मोतीलाल ओसवाल परिवार, ज्ञान-प्रभा श्रीश्रीमाल परिवार तथा नवरतन निखिल नितिन सुराना परिवार ने श्रावकों का तिलक लगाकर धर्मसभा में स्वागत किया।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने 11वें सूत्र का मूल समझाया। प्रतिक्रमण करने के कारण से स्वयं के भावों, चेतना, प्रतिज्ञा से जो भटक गया हूँ, वापस स्वयं के स्थान पर आना है। जिस समय मैं अतिक्रमण करता हूं, जिस समय कोई चेतना अतिक्रमण में जाती है, उस समय वह अपनी शक्ति-चेतना में छिद्र कर देती है। और जब व्यक्ति प्रतिक्रमण करता है तो वह छिद्र बंद किए जाते हैं। व्रतों, प्रतिज्ञा में, स्वयं के सपनों में जो छिद्र हुए हैं वो जब बंद हो जाते हैं, उस समय व्यक्ति के जीवन में पाप का आश्रव नहीं होता है। उसका चरित्र निर्माण हो जाता है। वो आठ प्रवचनमाताओं में संपन्न होकर अपने मन वचन काय को मंगलमय बनता है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कायसर्ग के कारण से क्या होता है? हमने अतीत-वर्तमान की जो गलतियां हैं, उसको शुद्ध करने के लिए, उस अपराध को समाप्त करने के लिए, वर्तमान में कोई गलती कर रहे हैं, उस गलती को शुद्ध करने के लिए कायसर्ग सर्वश्रेष्ठ साधना है। और कायसर्ग के कारण उसका प्रायश्चित विशुद्ध हो जाता है, दोष चले जाते हैं। इसके कारण व्यक्ति का ह्रदय शांत और परिपूर्ण हो जाता है। परिपूर्ण ह्रदय वाले के मन में किसी भी प्रकार के बोझ नहीं रहता है और वह मंगल ध्यान में सहजता से चलता है।

प्रत्याख्यान से क्या प्राप्त होता है? मैं भविष्य में क्या नहीं करूंगा, यह तय करना। मैं भविष्य में क्या नहीं सोचूंगा, क्या नहीं देखूँगा, क्या नहीं खाऊंगा, कैसे नहीं जीऊंगा यह तय करना प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान भविष्य की रचना करता है, और जो अपने भविष्य की योजना बनता है उस योजना को नष्ट करने वाली ऊर्जा के रास्तों को प्रत्याख्यान बंद कर देता है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि क्षमापना के कारण प्रल्हाद भाव का जन्म होता है। प्रल्हाद भाव का अर्थ है कि प्रतिकूलता में भी ख़ुशी होती है। अपने मन का मिला तो खुश हो जाते हैं, लेकिन प्रल्हाद भाव में मन का नहीं मिला तो भी ख़ुशी होती है। क्षमापना में प्रतिकूलता महसूस नहीं होती है। जैसे अर्जुन माली राजग्रही में जब गोचरी के लिए जाता है, और उसे गलियां मिलती हैं, लेकिन वह खुश होता है। उसे लगता है कि कितनी अनुकूलता परमात्मा मुझपर बरसा रहे हैं। कैसे लोग मुझे स्वीकार कर रहे हैं और मेरे अतीत के पाप को धो रहे हैं। जिसे प्रतिकूलता में भी अनुकूलता की ख़ुशी होती है उसे प्रल्हाद भाव कहते हैं। श्रुत आराधना से जीव को क्या प्राप्त होता है? उपाध्याय प्रवर ने स्वाध्याय और आराधना का अंतर समझाते हुए कहा कि स्वाध्याय का मतलब है कि बौद्धिक स्तर पर शासन का अध्ययन करना। परमात्मा के वचन मेरे लिए वरदान है, परमात्मा की वाणी मेरे लिए अमृत है, इन भावों के साथ जो परमात्मा की भक्ति करता है वह आराधना है। आराधना से व्यक्ति के जीवन में क्लेश नहीं रहता है।

उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा से कहा कि दिवाली तो बहुत मना ली, इस बार महावीर का निर्वाण कल्याणक मनाएं। जिन पलों को मनाने इंद्र धरती पर थे, उन पलों को मनाएं, आओ महावीर का निर्वाण कल्याणक मनाएं। ऐसा कुछ करें कि पूरी दुनिया में वीर निर्वाण संवत शुरू हो जाए। इस साल 2550वां निर्वाण संवत है। और यह एक अनूठा अवसर है, भक्ति जगाने का। उपाध्याय प्रवर ने 3 दिवस 11, 12 और 13 नवंबर को तेल करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि आहार का प्रत्याख्यान करना है, 3 दिन तक भोजन नहीं करना है। आहार का प्रत्याख्यान करने से जीवन की आसक्ति समाप्त हो जाती है। कल्पना करना है कि 3 दिनों तक बिना आहार के मैं मस्ती में हूँ, मेरे अंदर की शक्ति का जागरण हो रहा है। यह उपवास की प्रक्रिया है। इस प्रकार से कोई प्रत्याख्यान करता है तो परमात्मा कहते हैं कि बिना आहार के भी उसे किसी प्रकार का कष्ट या दुःख नहीं होता है। ये परमात्मा के शब्द हैं।

आज के लाभार्थी परिवार :
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 9 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं श्रीमती पुष्पादेवी-भीखमचंद कविता-मनोज कोठारी परिवार तथा सहयोगी परिवार हैं श्रीमती पारस-विजय कोचर परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।

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