लालगंगा पटवा भवन में महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव का भव्य समापन

लालगंगा पटवा भवन में महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव का भव्य समापन


धर्मसभा में निर्मित हुआ प्रभु महवीर का परम व चरम समोशरण

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 13 नवंबर । लालगंगा पटवा भवन में 13 नवंबर को प्रातः 5.25 बजे महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव की शिखर आराधना प्रारंभ हुई। धर्मसभा ऐसी प्रतीत हो रही थी, मानो राजा हस्तिपाल की रजुकसभा, जहां प्रभु महावीर का परम और चरम समोशरण निर्मित हुआ था। भगवान महावीर ने अपने निर्वाण से पहले पावापुरी के राजा हस्तिपाल की रजुकसभा में 48 घंटों तक अपने अमृत वचनों की वर्षा की थी। परमात्मा की अंतिम देशना सुनने के लिए देवताओं के साथ इंद्र भी धरती पर उतरे थे। 18 राजा, हजारों साधु-साध्वियां और संसार के समस्त प्राणी इस सभा में उपस्थित थे। महावीर के निर्वाण के बाद इंद्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था और सुधर्मा स्वामी का पट्टारोहण। सोमवार को लालगंगा पटवा भवन में महावीर निर्वाण कल्याण महोत्सव के साथ गौतम स्वामी केवलज्ञान महोत्सव तथा सुधर्मा स्वामी के पट्टारोहण के साथ 21 दिवसीय उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना और महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव का भव्य समापन हुआ। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने निर्वाण कल्याणक महोत्सव के शिखर दिवस धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों से कहा कि कल्पना करें कि यह लालगंगा पटवा भवन पावापुरी के राजा हस्तिपाल की रजुकसभा है, जो अब प्रभु महावीर का चरम-परम समोशरण है, तीर्थ भूमि है। न फूलों की वर्षा है, नजर केवल प्रभु पर है। उस प्रभु के चरणों में वंदन करते हुए प्रभु की अनुत्तरदेशन का वरदान ग्रहण करते हुए प्रभु की परिनिर्वाण कल्याणक की अनुभूति करने के लिए उनसे आज्ञा ग्रहण करें कि प्रभु अपने सानिध्य में रहते हुए जो अनुभव भविजीवों ने किया, वही अनुभव आपके तीर्थंकर नामपुण्य से हमें हो। आपके परिनिर्वाण कल्याणक की आराधना करते हुए जैसे अनंत जीव मोक्ष को प्राप्त हुए, वैसे ही मार्गदर्शन हमें प्रदान करें। आपकी कृपा से अनंत जीव मोक्ष मार्ग पर चल रहे हैं, हमें भी चलने की कृपा बरसाएं। स्वर्ग और मोक्ष का परम तत्व का मंगलकारी प्रकाशन करती प्रभु की दिव्या वाणी चल रही है। पूरा समोशरण पशु-पक्षी, देव-देवेंद्र, नर-नरेंद्र, श्रमण-श्रमणेन्द्र, प्रभु की दिव्या ध्वनि की समाधी में तन्मय हैं। आँख मुंदी हुई है सब की। केवल प्रभु के उस अमृत रस को पीते जा रहे हैं।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि इंद्रभूति गौतम अश्वथ वृक्ष के नीचे देवशर्मा को लेकर आए, प्रभु चरणों में समर्पित करना है। राह में सूर्यास्त हो गया, पेड़ के नीचे आसन लगा लिया। अपने दिव्यज्ञान से इंद्रभूति गौतम निरंतर प्रभु के उन अनुत्तर स्पंदनों के साथ जुड़ रहे हैं, और उनकी अनुभूति कर रहे हैं। वाणी बरस रही है, प्रभु परम ध्यान में हैं, प्रभु ने अपने स्थूल मन के स्पंदनों को स्तब्ध कर दिया। इंद्रभूति गौतम स्पंदनों को महसूस करने का प्रयास कर रहे हैं, प्रभु ने अपनी वाणी के स्पंदनों को रोक दिया। वे प्रभु के मन को भी नहीं देखा पा रहे हैं। प्रभु की चेतना सिद्ध शिला पर पहुंच गई। सभा में सुधर्मा स्वामी ने आंख खोलकर देखा कि वाणी निरुद्ध क्यों है? प्रभु के तेजस और कर्मण शरीर पूरे विश्व में व्याप्त हो गए। औदारिक शरीर देखा सुधर्मा स्वामी ने, और नमन किया। इंद्रभूति गौतम तड़प उठे। और उसी समय उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। वे सभा में पहुंचे। सुधर्मा स्वामी इंद्रभूति गौतम की ओर बढ़ते हैं और कहते हैं कि प्रभु के स्थान पर आप विराजो, अब तुम ही कल्याण स्वरुप हो, अब तुम ही परमात्मा स्वरुप हो। इंद्रभूति गौतम ने परिषद् में कहा कि प्रभु के इस कार्य को कौन करेगा? सुधर्मा प्रभु के सूर्य प्रकाश को तुम विश्व में पहुंचाओगे, उनकी वाणी को संसार के समस्त प्राणियों तक पहुंचाओगे। तुम्हारे द्वारा ही विश्व प्रभु से जुड़ेगा। जहां महावीर का सिंहासन लगा हुआ था, सुधर्मा स्वामी जैसे ही उसके पास बैठने का प्रयास करते हैं, देवता उनके लिए एक सिंहासन बनाते हैं, उनके ऊपर चक्र धारण करते हैं इंद्र के उत्तराधिकारी के रूप में, और सुधर्मा स्वामी का अभिषेक करते हैं।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने अपने संबोधन में कहा आज के लाभार्थी स्वयं महावीर हैं। धर्मसभा में, परमात्मा के आँगन में स्थापित गौतमलब्धि पात्र में जो मेवे है, यही गुरुप्रसादि है और इससे कोई भी वंचित नहीं रहेगा। उन्होंने महावीर निर्वाण कल्याणक समिति के सदस्यों का आभार व्यक्त किया, जिनकी सहभागिता के चलते यह आयोजन इतना भव्य और ऐतिहासिक हुआ। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आयोजन से जुड़ने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने अर्हम विज्जा की सोशल मीडिया टीम को भी धन्यवाद दिया। आज तेला का भी पारणा हुआ। शिखर दिवस के लाभार्थी श्री हुकमचंदजी पटवा परिवार रहे।

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