लालगंगा पटवा भवन में जारी है पुच्छिंसुणं आराधना
रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 18 नवंबर। जंबूस्वामी की जिज्ञासा के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने एक अनूठे स्तोत्र पुच्छिंसुणं (वीर स्तुति) की रचना की, जिसकी आराधना लालगंगा पटवा भवन में जारी है। उपाध्याय प्रवर ने शनिवार को कहा कि पुच्छिंसुणं की 6 गाथा (स्तोत्र 9 से 14) के मूल सूत्र को ध्यान में रखोगे तो जीवन में नई यात्रा के लिए पथ खुलेगा। ये स्तोत्र हमारे अंदर के महावीर को जगाने के स्तोत्र है। और हम अपने अंदर के महावीर को क्यों नहीं जगा पा रहे हैं उसका उत्तर है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि वीर्य है तो ख़ुशी है और ख़ुशी है तो वीर्य है। जिस काम को करने में आनंद आता है उस काम को करने से शक्ति का जागरण होता है। जिस काम को करने से आनंद नहीं आता है, उसमे शक्ति कम होती जाती है। जिस काम को करना है उसमे पूरी शक्ति लगा दो। परमात्मा जो भी कार्य करते थे उसमे अपनी पूरी शक्ति लगा देते थे। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि प्रभु महावीर जो भी कार्य करते थे उसमे अपनी पूरी शक्ति लगा देते थे। जब महावीर अपनी साधना काल में थे, तब उन्होंने एक रात्रि की प्रतिमा धारण की और मन में एक विचार आया कि आज मुझे रात भर एक छोटे से कंकर को देखना है, बिना पलक झपकाए। इस प्रतिमा की जैसे शुरुआत हुई उनके अंदर शक्ति का विस्फोट हुआ। और इस शक्ति का स्पंदन स्वर्ग में बैठे शक्रेन्द्र को हुआ। उन्हें साधना के स्पंदन महसूस हुए। शक्रेन्द्र ने इस स्पंदन की ओर ध्यान दिया तो उसने देखा कि परमात्मा ने अद्भुत साधना शुरू की है, और वह उनकी भक्ति में लीन हो गया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कुछ लोग भक्ति में खुश होते है, कुछ स्वयं भक्ति नहीं कर पाते लेकिन दूसरों की भक्ति देखकर उन्हें आनंद आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो भक्ति भी नहीं करते हैं और दूसरों की भक्ति भी उन्हें नहीं सुहाती है। शक्रेन्द्र की सभा में भी कुछ देव थे जिन्हे महावीर की प्रशंसा नहीं सुहाती थी। एक ने कहा कि आप क्या कर रहे हैं? शक्रेन्द्र तो भक्ति में डूबा हुआ था, उसने कहा कि मेरे परमात्मा ने आज अनूठी साधना शुरू की है, रात भर एक कंकर को बिना पलक झपकाए देखने की साधना शुरू की है। देव ने कहा कि यह सोचना अलग बात है, कोई बिना पलक झपकाए नहीं रह सकता। शक्रेन्द्र ने कहा कि परमात्मा की पलक कोई झपका नहीं सकता। देव ने कहा कि मैं झपका के बताता हूँ। उसने कई प्रयास किए, चक्रवात चलाया, धूल भारी आंधी चलाई, एक रात में अनेक उपक्रम किए, लेकिन महावीर की पलक नहीं झपका पाया। इसे कहते हैं पडिपूर्ण वीर्य।
जब आपकी शक्ति जागृत होती है तो देवता भी आपसे प्रेम करते हैं
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जब हमारे रास्ते में कोई बाधा आती है तो हम काम छोड़ देते हैं। यह इसलिए क्योंकि हम पूरी ताकत से काम शुरू नहीं करते हैं। जिस समय आप पूरी शक्ति लगते हैं, उस समय पूरी शक्ति चेतन मन में जाती है। शक्ति सभी के अंदर है, लेकिन हमने अपने अंदर के सभी रास्तों को खुला रखा है। अपने मन और शक्ति को एक रास्ते पर लगाओ। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जैन आगम में चेतन, अवचेतन और अचेतन की अवधारणा नहीं है। जैन आगम में अवधारणा है तो केवल वीर्य की। दो प्रकार के वीर्य है : आभोगवीर्य और अनाभोगवीर्य। एक ऐसा वीर्य जो जागृत है और दूसरा जो हमारी जानकारी के बिना काम कर रहा है। यदि अनाभोगवीर्य ज्ञान में आ गया तो या पडिपूर्णवीर्य हो गया। परमात्मा ने जो साधना दी है वह इतनी दी है कि उसमे अनाभोगवीर्य नहीं रहे। जितना रहे जागृत वीर्य रहे। जजब आपकी शक्ति जागृत होती है तो देवता भी आपसे प्रेम करते हैं। जो शक्तिशाली हैं उन्हें सम्मान मिलता है। हम प्रायः अपनी शक्ति को छुपा कर रखते हैं। जिस समय हम अपनी पूरी शक्ति लगते हैं, उस समय हम जीतते हैं। परमात्मा की शक्ति सुमेरु पर्वत के समान है, उसे कोई नहीं हिला सकता। सूर्य उनकी परिक्रमा करता है, शक्रेन्द्र को वहां आनंद की अनुभूति होती है, स्वर्ग से ज्यादा आनंद आता है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि क्यों तपस्वियों के पास देवता आते हैं? क्योंकि वहां शक्ति का जागरण है। सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि जहाँ आनंद की अनुभूति होती है वहां देवता भी जाते हैं। जंबूस्वामी ने ज्ञान दर्शन और शील की बात की, लेकिन सुधर्मा स्वामी ने इन सब को छोड़कर धर्म और शक्ति की बात की। वीर्य होगा तभी ज्ञान श्रध्दा और तप होगा। जैन दर्शन के अनूठे सिद्धांत हैं। महावीर ने कहीं नहीं लिखा कि धर्म की जीत होती है। एक बार इंद्रभूति गौतम ने महावीर से पूछा कि दो पहलवान लड़ रहे हैं, दोनों एक ही कद-काठी के हैं, दोनों में बराबर का बल है, लेकिन एक जीतता है और दूसरा हारता है, ऐसा क्यों? हम प्रायः यह उत्तर देंगे कि वह धर्म, सत्य के लिए लड़ रहा था। लेकिन परमात्मा ने कहा कि जिसने अपना बल पराक्रम वीर्य जागृत रखा, वह जीत गया। ताकत जहां लगती है, वहीं जीत हासिल होती है। महात्मा गांधी ने अहिंसा पर अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, इसलिए उनकी जीत हुई। सत्य के पीछे शक्ति लगा दी तो सत्य की विजय होगी।