पूरी दुनिया में राजनांदगांव की एकमात्र ऐसी दंपत्ति जो प्रतिवर्ष 21 जनवरी को शमशान में मनाते हैं जन्मदिन…

पूरी दुनिया में राजनांदगांव की एकमात्र ऐसी दंपत्ति जो प्रतिवर्ष 21 जनवरी को शमशान में मनाते हैं जन्मदिन…

  राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 23 जनवरी ।

  • मानव जगत में अगर सम्पूर्ण विश्व की बात करें तो इस संसार में रहने व जन्म लेने वाला प्रत्येक इंसान अपना या अपने बच्चों का जन्मदिन दिन मनाने के लिए किसी ऐसे स्थान को चुनता है जहाँ स्वयं भी और आने वाले लोग भी सुविधाजनक व सुरक्षित महसूस करें किन्तु छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में एक ऐसा परिवार है जिन्होंने मानव समाज में अंधविश्वास व रूढ़िवादी परमपराओं से फैले भय को दूर करने के उद्देश्य से अपने बच्चे का नामकरण जन्म के चार दिन बाद मुक्तिधाम शमशान में किये थे जो विश्व की पहली और ऐतिहासिक घटना है जहाँ दिन में भी जाने से डरते हैं लोग, जहाँ दिनभर जलती रहती हैं चिताएं, एक ओर जहाँ समाज में शमशान के नाम पर अनेकों अंधविश्वास व भय का जाल फैला हुआ है वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में रहने वाले संदीप-पूनम कोल्हाटकर इस दंपत्ति ने मानव समाज के भीतर फैली अनेकों भय और भ्रातियों को दूर करने के लिए सकारात्मक सोच के साथ अंधविश्वास पर गहरा चोट पहुंचाते हुये समाज में सकारात्मक बदलाव की दृष्टिकोण से लोगों में जागरूकता लाने के लिए सार्थक कदम उठाया है। बड़ी बात यह है कि यह दंपत्ति अपने पुत्र यथार्थ सम्राट भारतीय के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष मुक्तिधाम जाकर शमशान के भीतर स्थापित तथागत बुद्ध जी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर जन्मदिन मनाकर यह संदेश देना चाहते हैं कि भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसी कोई भी चीज इस संसार में नहीं है बल्कि यह भ्रम एक मानव के द्वारा दूसरे मानव को डराने के लिए पैदा की गई एक काल्पनिक कहानी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है जो कि आज के समय में इस तरह की और भी अनेक अंधविश्वास बातें समाज में एक गंभीर बीमारी का रूप ले
  • चुकी है जिसे दूर करना और लोगों को जागरूक करके अंधविश्वास, भय मुक्त समाज का निर्माण करना बहुत ही आवश्यक है। दंपत्ति ने प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी 21 जनवरी को मुक्तिधाम शमशाम जाकर अपने बच्चे का छठवां जन्मदिन मनाया और इनका मानना यह भी है कि जहाँ संसार में जन्मे मनुष्य को एक ना एक दिन जाना ही है ऐसे जगह में जाने से डरना या घबराना क्यों जबकि दूसरों के मृत्यु पर इंसान उसे जलाने व दफ़नाने में बड़ी फुर्ती दिखाता है। शमशान दुनिया का यथार्थ रूप है जो हमें वास्तविक सत्य से रूबरू करवाता है जिसे संसार के प्रत्येक मनुष्य को सरल और सहज भाव से स्वीकार करना चाहिये तभी वह शांति व संतुष्टि भरा जीवन जी सकता है अन्यथा भय व अंधविश्वास के जाल में रहकर कोई भी इंसान अंधकार से प्रकाश की ओर नहीं बढ़ सकता इसलिए सुख, शांति, समृद्धि व संतुष्टि भरा जीवन जीने के लिए अंधविश्वास मुक्त समाज का निर्माण करना बहुत ही आवश्यक है जो सिर्फ और सिर्फ तथागत बुध्द जी के बताये हुये मार्ग पर चलकर ही प्राप्त किया जा सकता है। शमशान में जन्मदिन के अवसर पर बौध्द धम्मगुरु पूज्य भदंत धम्मतप जी की उपस्थिति में उनके द्वारा त्रिसरण-पंचशील प्रदान कर परित्राण पाठ किया गया एवं बच्चे व दंपत्ति के सुखमय जीवन के लिए मंगल कामनाएं की गई। इस अवसर पर दंपत्ति के अतिरिक्त संजय हुमने जी, कुणाल बोरकर जी, लक्की रामटेके जी एवं सागर रामटेके जी उपस्थित थे।
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