आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024
रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 12 जुलाई। हम केवल चातुर्मास के दौरान साधना करते हैं और जब इन 4 महीनों में हमें कोई कार्यक्रम या भजन संध्या करानी होती है तो हम संडे का दिन देखते हैं, उसका इंतजार करते हैं ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा आए। अब आप खुद विचार कर लीजिए की आप मोक्ष से कितनी दूर हो और मोक्ष आपके जीवन में सिर्फ बातों के बीच कहीं छिप गई है।
साधना में भी आपने अपने सहूलियत का दिन चुनने का फैसला लिया है तो आप किस दिशा में जा रहे हैं इसका चिंतन आपको करना होगा। यह बातें राजधानी के सदर बाजार स्थित जैन मंदिर में चल रहे प्रवचन श्रृंखला “जिनवाणी की वर्षा” के दौरान शुक्रवार को दिर्घ तपस्वी प.पू. श्री विरागमुनि जी म.सा. ने कही।
मुनिश्री ने आगे कहा कि हम जो कर्म करते हैं वह अच्छा है या बुरा हमें पता होता है और हम यह भी जानते हैं कि उसका परिणाम क्या होने वाला है। वैसे ही हम यह भी जान चुके हैं कि यह संसार असार हैं पर फिर भी हम यहां सार ढूंढ रहे हैं। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि तन, परिवार, रिश्तेदार या इस संसार के लिए ज्यादा जीना है कि अपनी आत्मा के लिए। जो चिंता आपको आज अपने सम्मान प्रतिष्ठा की है वह आत्मा के लिए नहीं है। मोक्ष प्राप्त करने के बाद आपके पास ना कोई मोबाइल होगा, ना आप कहीं रेस्टोरेंट या रिसॉर्ट जा पाएंगे, ना टीवी देख पाएंगे और ना ही रिश्तेदारों से मिल पाएंगे फिर भी आप सबसे ज्यादा आनंदित रहेंगे।
जीवन का हर क्षण सार्थक करने मिला मनुष्य का जन्म
मुनिश्री ने आगे कहा कि मनुष्य का जन्म जीवन के हर क्षण को सार्थक करने के लिए हुआ है। परन्तु वह ऐसा करता नहीं है। मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं होता। इस जन्म को पाने में हमारी आत्मा ने कितना पुरुषार्थ किया, कितना परिश्रम किया है। वर्तमान में शायद कोई कर नहीं सकता। आज यह हमें मिला है तो इसके हर क्षण का उपयोग करना है।
मुनिश्री ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि इसी बात का सार ज्ञानी भगवन के कहने और आपके कहने में बहुत अंतर है। आप के अनुसार जो ऐशोआराम मनुष्य जीवन में मिला है वह फिर नहीं मिलेगा। जो खाने पीने का स्वाद इस जीवन में मिला है वह कहीं नहीं मिलेगा। होटल में खाना खाना, एसी-कूलर की हवा लेना और गद्देदार बिस्तर में सोना और कौन से जीवन में मिलेगा। यह सिर्फ मनुष्य जीवन में मिलेगा।
मनुष्य जीवन में यह सब करना है तो जप-तप, साधना-आराधना और पूजा पाठ कौन से जीवन में करोगे। नरक गति में तो खाने के लाले पड़ते है। वहां रहने वाले भूख से व्याकुल और कष्ट में रहते है, वहां ऐसे ऐशोआराम नहीं होता। उनको समझ नहीं आता कि साधना-आराधना करें या नहीं।
थोड़ा सा दुख हमारे जीवन में आ जाए तो हम किसे भूलते है। हमें अगर थोड़ा सा भी सिरदर्द होता है, तो हम भगवान को भूल जाते है। पूजा-पाठ करने मंदिर नहीं जाते है। जबकि उस दिन हम नहाने गए, खाना खाए, काम पर चले गए पर मंदिर नहीं गए। संसार जगत का कोई भी काम नहीं छोड़े और छोड़े तो कौन सा काम, पूजा-अर्चना का, धर्म का काम।
थोड़ा सा सिर दर्द हुआ तो धर्म का काम छोड़ दिया तो सोचो जो नरक गति में रहते है वो कैसे करते होंगे, क्या उन्हें धर्म याद आएगा। व्यक्ति को जब सुख के साधन भी ज्यादा मिल जाए तो वह धर्म-कर्म नहीं करता। अगर करना भी चाहे तो वह नियमानुसार नहीं कर सकते है। एक मनुष्य गति ही ऐसा जीवन है जहां हम तप कर सकते है, साधना कर सकते है, आराधना कर सकते है।
आत्मस्पर्शी चातुर्मास समिति 2024 के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि मुनिश्री का मंगल प्रवेश 15 जुलाई को होना सुनिश्चित हुआ है। मंगल प्रवेश के दिन सुबह 7.30 बजे सदर जैन मंदिर से दादाबाड़ी तक भव्य शोभायात्रा निकलेगी। वहीं, जिनवाणी की वर्षा के क्रम में सदर बाजार जैन मंदिर में सुबह 8.45 से 9.45 बजे मुनिश्री के प्रवचन की श्रृंखला जारी है। आप सभी से निवेदन है जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।