अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 20 जुलाई। चातुर्मास में जिनवाणी श्रवण का सुअवसर भाग्यशालियों को ही मिलता है। जो धर्म के पास होते है उन्हें ही चातुर्मास मिलता है। चातुर्मास की अवधि तप, त्याग व आराधना का समय होता है। कर्मो की निर्जरा करने के साथ पुण्यबंध का अवसर चातुर्मास प्रदान करता है।
इस चातुर्मास की धर्म गंगा में डूबकी लगा हम सभी अपना आत्मकल्याण कर सकते है। ये विचार शनिवार को चातुर्मासिक पक्खी के अवसर पर पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।
उन्होंने चातुर्मास की महिमा बताते हुए कहा कि जिनवाणी श्रवण करके व्यक्ति आत्मशुद्धि के साथ अपनी आत्मा को निर्मल बना जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है। सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास का समय हमारे के लिए आत्मचिंतन का अवसर भी है। चातुर्मास में हम अपने जीवन की दिशा सकारात्मक कार्यो की तरफ मोड़ सकते है।
धर्म आराधना त्याग, तप और साधना पापों का बोझ कम करने के साथ हमे दुर्गति से भी बचाती है। इसीलिए कभी भी धर्म पथ से विमुख नहीं होना चाहिए। युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मासिक पक्खी हमारे लिए बहुत महत्व का दिन है। इसदिन से चातुर्मास की आराधना विधिवत शुरू हो जाती है। हमे समझना चाहिए कि हमारे जीवन में चातुर्मास का क्या महत्व है। चातुर्मास आराधना करके हमे आत्मा से परमात्मा बनने का अवसर मिलता है।
मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास का अर्थ चरित्र सम्पन्न होना, तप की उपलब्धि होना, मद व माया से दूर रहना ओर समभाव में विचरण करना है। चातुर्मास हमे संतो के सानिध्य में जिनवाणी श्रवण का अवसर देता है। उन्होंने कहा कि चातुर्मास में आप ज्यादा नहीं तो केवल पांच दिन यानि 120 घंटे का समय प्रदान करे यानि 120 दिन के चातुर्मास में प्रतिदिन एक घंटे जिनवाणी श्रवण करने का समय अवश्य निकाले। जितना तप त्याग संभव हो अवश्य करना चाहिए। प्रार्थनार्थी श्री सचिन मुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास आत्मसाधना में लीन होने की प्रेरणा देता है। वहीं जप तप, त्याग तपस्या ओर समभाव से अपने कर्मो की निर्जरा करने का सुअवसर भी प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि चातुर्मास की सार्थकता तभी है जब हम अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते हुए ज्ञान रूपी प्रकाश से आत्मा को आलोकित करें।
कई श्रावक-श्राविकाओं ने लिए तप त्याग के प्रत्याख्यान
चातुर्मासिक पक्खी पर्व पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। एक बालिका ने तेला तप के प्रत्याख्यान लिए। मुनिवृन्द के दर्शनों के लिए नाथद्वारा से लक्ष्मीलाल बड़ाला, मोलेला से बाबूलाल सांकला, वड़ाली से महावीर सूरिया आदि श्रावकगण भी पधारे। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया।चातुर्मासकाल में नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक होंगे।
गुरूपूर्णिमा पर होगी गुरू के महत्व पर चर्चा
गुरू पूर्णिमा के अवसर पर 21 जुलाई के प्रवचन में गुरू के महत्व पर चर्चा होगी। इसमें बताया जाएगा कि जीवन में किस तरह गुरू हमारे कल्याण की राह प्रशस्त करता है। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए रहेगा। सूर्यास्त के बाद प्रतिक्रमण होगा। भाईयों के लिए रात्रि धर्म चर्चा का समय रात 8 से 9 बजे तक रहेगा। प्रत्येक रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन होगा।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627