गुरु शिष्य को ब्रह्म का साक्षात्कार कराते है
राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 22 जुलाई। गुरु पूर्णिमा महोत्सव के पावन अवसर पर गुरुदेव भक्त मंडल द्वारा आयोजित गुरु पूजन कार्यक्रम श्री अग्रसेन भवन में हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ । श्रीमत परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोणित ब्रह्मनिष्ठ अनंत विभूषित श्री 1008 आनंद कृष्णधाम हरिद्वार के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी आनंद चैतन्य सरस्वती जी ने गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि व्यक्ति का गुरु के बिना भवसागर से पार पाना असंभव है ।
गुरु व्यक्ति को मनुष्य बनाता है , जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को आकार देकर घड़ा इत्यादि का स्वरूप देता है , सुनार सोने को आकार देता है अथवा लोहार लोहे को आकार देता है , उसी प्रकार गुरु व्यक्ति को गुरु मंत्र देकर नया जीवन देते है । व्यक्ति के हर क्रिया में उठने से लेकर सोने तक एवम जन्म से लेकर मृत्यु तक गुरु का महत्व होता है ।
गुरु पुनः मृत्यु से छुटकारा दिलाकर मोक्ष प्रदान करने का मार्ग प्रसस्त करते है । गुरु मंत्र के माध्यम से गुरु व्यक्ति को परमेश्वर के प्रति लगन जागरण करके भजन , सत्संग , उपासना की ओर मोड़ देते है , जिससे व्यक्ति परमेश्वर का साक्षात्कार कर मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है ।
गुरुदेव भक्त मंडल के अशोक लोहिया द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पूज्य स्वामी जी ने आगे कहा कि जीवन में पैसा सबकुछ नहीं है , पैसे से जीवन नहीं खरीदा जा सकता । इसे हमने पिछले कोरेना काल के समय अनुभव किया है । एक उदाहरण के माध्यम से स्वामी जी ने कहा कि जिस प्रकार गीले कपड़े को उतारने में श्रम अधिक लगता है , किंतु सूखे कपड़े को उतरना सरल होता है क्योंकि सुखा कपड़ा उपासना , साधना है जिससे उसका वजन हल्का हो जाता है ।
मानस के दृष्टांत को बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि बिना गुरु के जीवन का कोई महत्व नहीं है। व्यक्ति को भवसागर के पार पहुंचने के लिए गुरु दीक्षा लेना आवश्यक है । सदगुरु सच्चा वैद्य होता है । जिस प्रकार वैद्य दवा के द्वारा व्यक्ति को स्वस्थ करता है , उसी प्रकार गुरु सूक्ष्म शरीर के मन , चित्त एवम वृति को ठीक कर देते है । गुरुमंत्र से अज्ञानता दूर हो जाती है । गुरु निष्ठा औषधि का कार्य करती है ।
पूज्य स्वामी जी ने आगे कहा कि व्यक्ति के जीवन में कितने भी असंभव कार्य क्यो ना हो , गुरु शरण में जाने से संभव हो जाते है । पूज्य स्वामी जी ने कहा कि वेदव्यास जी ने वेद की रचना की तब वेद पूर्ण होने पर कुछ स्याही बच गई । मां सरस्वती ने व्यास से पूछा कि इस स्याही का क्या करें , तब व्यास जी ने कहा कि बचत स्याही संत , महात्माओं को दे देवे । ऐसे संत – महात्मा उक्त स्याही से दिक्षित शिष्य के भाग्य में लिखे कष्ट , दुख , परेशानियों को दूर करने भाग्य के लिखे को संशोधित कर सकते है ।
भगवान कहते है कि उन्होंने व्यक्ति के भाग्य में जो लिख दिया उसे वे बदल नहीं सकते , किंतु एक गुरु ही है जो मां सरस्वती से मिली स्याही से भाग्य को संशोधित करने की ताकत रखते है । इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु का होना आवश्यक है ।
गुरुदेव भक्त मंडल द्वारा आयोजित गुरु पूजन समारोह गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ , गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालने के पश्चात पूज्य स्वामी जी द्वारा आदिगुरु शंकराचार्य जी एवम सदगुरुदेव भगवान का विधि विधान से पूजन किया गया ।
नन्ही सी बच्ची काव्या निरंजन नाथ शर्मा ने निर्भीक होकर मंच पर गुरु भक्ति का भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया , तत्पश्चात लगभग 270 शिष्यों ने एक एक कर पूज्य गुरुदेव भगवान का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया एवम गुरु प्रसादी ग्रहण की । आभार गौरीशंकर शर्मा ने व्यक्त किया ।