जिस देश में माता-पिता को भगवान का रूप माना गया, उस देश में वृद्धाश्रम बनना दुखद बात है: श्री विरागमुनि जी

जिस देश में माता-पिता को भगवान का रूप माना गया, उस देश में वृद्धाश्रम बनना दुखद बात है: श्री विरागमुनि जी

आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 1 अगस्त । दादाबाड़ी में चल रहे आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024 के प्रवचन श्रृंखला में गुरूवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनि जी ने कहा कि आज गुरु की कृपा से चातुर्मास के दौरान सभी तप-उपवास पूरे हो जाते हैं। किसी को उपवास करते देख, उपवास की बात सुनकर तप-जप बहुत ही मुश्किल काम लगता है लेकिन ऐसा नहीं है। भगवान के प्रति आस्था हो और मन में विश्वास हो तो आप कुछ भी कर जाएंगे।

मुनिश्री ने कहा कि आज सब उपवास करते हैं और कब पारणा हो इसका इंतजार करते हैं तो वह उपवास नहीं है वह सिर्फ व्यक्ति का भूखा रहना कहा जा सकता है। पारणे में लोग अपने घर से व्यंजन बना कर लाते हैं लेकिन आपको अपना मनपसंद व्यंजन नहीं बनाना है कि उपवास किया और मनपसंद व्यंजन खाकर पारणा कर लिया।

आप केवल अपने लिए नहीं सबके लिए कुछ ना कुछ व्यंजन लाइए और जो सारे लोग लाएंगे वह थोड़ा सा आप भी खा लेंगे तो यह असल पारणा होगी कि जो मिला उससे पारणा कर लिया। पारणे की वैसे तो श्री संघ की ओर से व्यवस्था रहती है लेकिन श्रावक का भी कर्तव्य है कि वह अपने साथ सबके लिए कुछ ना कुछ लेकर आए।

मुनिश्री कहते हैं कि जीवन में जितनी कम से कम हिंसा हो सके प्रयास कीजिए। इस विषय में आपको आत्म जागृति होनी चाहिए और आपको दूसरों की पीड़ा भी महसूस होनी चाहिए। आप 45 डिग्री की गर्मी सहन कर लो लेकिन ऐसी चालू करके हजारों जीवन की हत्या मत करो। अपने शरीर को ऐसा ढाल लो कि वह हर परिस्थिति में आपको अनुकूलता दे सके। अगर यह अभ्यास अपने कर लिया तो जीवन में आप कभी भी दुख-तकलीफ महसूस नहीं होगी।

एक प्रसंग के माध्यम से मुनिश्री ने बताया कि जब भारत में अंग्रेजों का कब्जा था उस समय की बात है, एक ब्रिटिश अधिकारी बहुत दिनों के बाद अपने घर वापस इंग्लैंड लौटा था। जब वह अपने घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि भारत में ऐसा क्या है कि आपको सालों-साल घर की याद नहीं आती है।

उस अधिकारी ने जवाब दिया कि भारत में जंगल में जानवर रहते हैं और शहर में संतों का आना-जाना रहता है। भारत में लगभग सभी लोग संत के ही समान है। मुनिश्री ने कहा कि एक समय भारत ऐसा था और आज का समय देख लो आज तो संत भी संत नहीं है।

आज स्वयं को सिद्ध करने की होड़ मची हुई है, मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः सब केवल कहने को रह गए हैं। माता-पिता को भगवान मानने वाले तो बहुत कम ही है, आज लोग केवल सुख साधनों के पीछे भागते हैं और माता-पिता इसके बीच ना आए इसलिए उन्हें वृद्धाश्रम भेज देते हैं। भारत देश के लिए वृद्धाश्रम कलंक है। भगवान के रूप में पूजे जाने वाले माता-पिता, आज आश्रम में रह रहे हैं यह बहुत ही दुख की बात है।

आत्मस्पर्शी चातुर्मास समिति 2024 के प्रचार प्रसार संयोजक तरुण कोचर और निलेश गोलछा ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि दादाबाड़ी में प्रतिदिन सुबह 8.45 से 9.45 बजे मुनिश्री की प्रवचन श्रृंखला जारी है, आप सभी धर्म बंधुओं से निवेदन है कि जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।

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