हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ), 1 अगस्त। जीवन में जब पाप का उदय आता है तो साहूकार भी कर्जदार हो जाते है। जमाना ऐसा है कि लोग रूपयों पर रिश्तो की किश्ते जोड़ देते है यदि जेब हो खाली हर रिश्ता तोड़ देते है। गृहस्थ के पास पैसा होने पर ही उसका सम्मान है। दुनिया की फितरत ऐसी है कि पैसा होने पर सभी पैसा देने को तैयार रहते पर जिसके पास पैसा नहीं हो उसे देने वाला कोई नहीं होता। पैसा होने पर ही व्यक्ति दान पुण्य ओर किसी की सहायता कर पाएगा। हमारे पैसे का घड़ा भरा रहे इसके लिए पुण्य की आराधना करनी होगी। अपना पुण्य प्रबल है तो सब कुछ अपने पास होगा।
पुण्य की आराधना कब तक करते रहे जब तक कर्म निर्जरा नहीं हो जाए। ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में गुरूवार को चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि कभी इस भ्रम में मत रहना कि तकलीफ होने पर कोई हमारे काम आएगा। कोई कष्ट में हमारे काम नहीं आए तो गलती उसकी नहीं होती हमारे पुण्य हमसे मुंह मोड़ लेते है। जब पुण्य मुंह मोड़ेंगे तो दुनिया तो पलटी मारेगी ही। पुण्य हमसे मंुह नहीं फेरे ऐसे कार्य करो। पुण्य खुश रहेगा तो दुनिया भी खुश रहेगी।
मुनिश्री ने कहा कि कई बार ऐसा लगता है कि जो पाप कर्म कर रहा है वह भी खूब पैसे कमा रहा है तो यह उसके पूर्व जन्मों के पुण्यों का फल है लेकिन वह जो पाप कर रहा उसके फल भी आगे भोगने ही पड़ेंगे। इसी तरह कई बार पुण्य करने वाला भी परेशानी में होता है तो इसका कारण उसके पहले किए गए जबरदस्त पापकर्म होते है जिस कारण उसे पुण्य करने पर जो मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता।
श्रमण संस्कृति में तीर्थ बनाए नहीं जाते तीर्थ बन जाते है
प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी ने कहा कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां कोई आत्मा सिद्ध नहीं हुई हो। ऐसे में हर स्थान सिद्ध क्षेत्र है। श्रमण संस्कृति में तीर्थ बनाए नहीं जाते तीर्थ बन जाते है। जहां गुरू के चरण पड़ते है वह क्षेत्र तीर्थ बन जाता है। जो खुद तीर्थ है उन्हें तीर्थ बनाने की जरूरत ही नहीं है। श्रमण संस्कृति में साधु,साध्वी,श्रावक,श्राविका चारों को तीर्थ कहा गया है।
उन्होंने कहा कि जिनवाणी सुनकर हम खुद तीर्थ बन गए हकीकत में किसी ओर तीर्थ की जरूरत नहीं होनी चाहिए पर उन तीर्थो का आलंबन मन की शांति व पॉजिटिव एनर्जी पाने के लिए लिया जाता है। इस जिनशासन के अंदर जहां तक हो सके पूजा, आराधना, साधना उनकी करे जिनके साथ-साथ कर्म निर्जरा भी होती चली जाए।
प्रवचन में प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. एवं गायनकुशल जयवन्त मुनिजी म.सा. का सानिध्य भी रहा। धर्मसभा का संचालन ग्रेटर हैदराबाद श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रवचन सुबह 8.40 से 9.40 बजे तक हो रहा है।
भक्तामर स्रोत की 19 वीं गाथा का विधिपूर्वक विधान
प्रवचन के शुरू में आदिनाथ भगवान की स्तुति स्वरूप महामंगलकारी भक्तामर स्रोत की 19 वीं गाथा का विधिपूर्वक विधान कराया गया। चार राउण्ड में प्रत्येक बार गाथा का छह-छह बार सामूहिक उच्चारण किया गया। समकितमुनिजी ने कहा कि जिसके मन में तपस्या करने की भावना तो है पर कर नहीं पा रहे है वह अगले गुरूवार को होने वाले भक्तामर गाथा के विधान में अवश्य शामिल हो इससे उन्हें तप के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता मिलेगी। चातुर्मास के तहत हर गुरूवार को प्रवचन के शुरू में भक्तामर स्रोत की गाथाओं की आराधना एवं विधान होगा।
पुण्यकलश आराधक बढ़ गए तप की राह पर आगे
पूज्य समकितमुनिजी म.सा. आदि ठाणा की प्रेरणा से चातुर्मास में तपस्या की बहार छाई हुई है। एक दिन उपवास एक दिन बियासना के साथ 18 दिवसीय पुण्यकलश आराधना में लगे कई आराधक तपस्या के मार्ग पर आगे बढ़ गए है। पूना से आई चार श्राविकाओं ने गुरूवार को पांच-पांच उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कुछ आराधक गुप्त तपस्या भी कर रहे है। आराधक ऐसी तपस्या आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर समर्पित करने की भावना भी रखे हुए है।
पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास को तप त्याग की दृष्टि से एतिहासिक बनाने के लिए वह हर घर से कम से कम एक अठाई तप चाहते है। चातुर्मास के दौरान 13 वर्ष तक के बच्चों के लिए 3 से 17 अगस्त तक अखिल भारतीय स्तर पर चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप का आयोजन होगा।
शनिवार एवं रविवार को अनंतकाल के पापों का प्रक्षालन करने के लिए ‘आईएम सॉरी’ विषय पर विशेष प्रवचन होगा। चातुर्मास में प्रतिदिन रात 8 से 9 बजे तक चौमुखी जाप का आयोजन भी किया जा रहा है। चातुर्मास के तहत 15 से 18 अगस्त तक प्रवचन में श्रवण कुमार कथानक चलेगा।
निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627