-अभय रहने को आचार्यश्री ने आयारो आगम के माध्यम से दी पावन प्रेरणा
-कच्छ-भुज की बेटियों ने दी अपने गीत को प्रस्तुति
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 4 अगस्त।
महावीर समवसरण के विशाल व भव्य प्रवचन पण्डाल रविवार होने के कारण उपस्थित श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण नजर आ रहा था। जनोद्धार के लिए निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी नित्य की अपेक्षा समय से पूर्व ही प्रवचन पण्डाल में पधार गए। आचार्यश्री के पधारते ही पूरा प्रवचन पण्डाल जयनिंनादों से गुंजायमान हो उठा।
उपस्थित जनता को सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से मंगल मंत्र प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है। सामान्यतया आदमी में अभय रहने की भावना अथवा आकांक्षा रहती है। प्रश्न हो सकता है कि आदमी को भय किस चीज का लगता है? इसका उत्तर दिया गया कि आदमी के भय का मूल कारण दुःख होता है। आदमी स्वयं के लिए कष्ट नहीं चाहता। बीमारी, अपमान, चोरी, डकैती और कभी अपनी जान की रक्षा को लेकर भयभीत होता है। आदमी मुख्य रूप से दुःख से डरता है।
आगम में बताया गया कि जीवों को अभय की कामना होती है तो आदमी को प्रयास करना चाहिए कि वह स्वयं न किसी से डरे और किसी दूसरे को डराने का प्रयास करें। अहिंसा की अनुपालना के लिए आदमी न स्वयं डरे और दूसरों को डराए। कोई भी स्थिति आ जाए, आदमी को डरे नहीं तो वह बहुत बड़ी बात होती है। जिनेश्वर भगवान भय को जीतकर अभय में रहने वाले होते हैं।
दुनिया का वह सबसे सुखी आदमी होता है, जिसने भय को जीत लिया हो। आदमी यह प्रयास करे कि ना वह स्वयं डरे और न ही किसी दूसरे को डराए। उत्पीड़न कार्य करने वाला प्राणी असातवेदनीय कर्म का बंध कर लेता है। इसलिए आदमी को सभी प्रकार के प्राणियों को अभय प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी स्वयं में मनोबल, समता और शांति का भाव रखें ताकि आदमी स्वयं भी किसी से न डरे।
बीमारी, कष्ट अथवा कभी मृत्यु की स्थिति सामने आए तो आदमी को समता और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। प्राणियों को अभय का दान दे देना धर्मदान का एक प्रकार है। आगम में बताया गया कि सभी जीव अभय चाहते हैं तो आदमी को किसी भी प्रकार के प्राणियों की हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा के साधक को भी किसी नहीं डरना चाहिए, यह बहुत ऊंची बात होती है। सात्विक भय और न्यायपालिका भय तो मानों आदमी को सही रास्ते पर चलने को प्रेरित किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने ‘परस्परोपग्रहोजीवानाम्’ को विवेचित करते हुए कहा कि सामुदायिक जीवन का महत्त्वपूर्ण सूत्र बन सकता है। आदमी को परस्पर सहयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को परस्पर सहयोग की भावना के जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। ‘बेटी तेरापंथ की’ के द्वितीय सम्मेलन के दूसरे दिन आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि कुमारश्रमणजी ने दुःख की घड़ी से सुख को निकालने की प्रेरणा प्रदान की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमारजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ प्रकल्प के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित संभागियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि चतुर्मास के दौरान अनेक संस्थाओं के सम्मेलन होते हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के द्वारा ‘बेटी तेरापंथ की’ का यह नया उन्मेष आया है।
जैसा कि मैंने बताया कि बेटियों के साथ दामाद भी आए हैं, यह और भी अच्छी बात है। बेटी के दामाद और फिर दोयता व दोयती भी जुड़े होते हैं। इस सम्मेलन का दूसरा और अंतिम दिन है। बेटी व दामाद धार्मिक दृष्टि से फलते-फूलते रहें, सुखी रहें। आध्यात्मिक सुख और शांति का भाव बना रहे। जहां कहीं रहें, धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का प्रयास हो, परिवारों में शांति रहे, किसी प्रकार के कलह को अवसर न मिले, नशामुक्तता रहे।
तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत व तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के पृथक्-पृथक् गीतों को प्रस्तुति दी। ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन में कच्छ-भुज से संभागी बनी बेटियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने गीत को प्रस्तुति दी।