काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ़) 5 अगस्त।
ज्ञान का दीप हर घट में प्रज्वलित होना चाहिए। ज्ञान की ज्योति से ही अज्ञान का , मोह का और मिथ्यात्व का अंधकार दूर होता है। इसलिए ज्ञान की ज्योति जलाने का प्रयास होना चाहिए। जैन दर्शन में तीन अमूल्य रत्न माने गये हैं उनमें एक सम्यक् ज्ञान । सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति से ही अज्ञान आदि का अंधेरा दूर होता है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने आज तेरापंथ कक्ष के महाश्रमण सभागार में चल रहे “उपासक सप्ताह के अंतर्गत “जगायें ज्ञान की ज्योति” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये।
आपने सम्यक् ज्ञान के मह्त्व को समझाते हुए बताया कि ज्ञानार्जन में जो जितना विनम्र होता है उसका ज्ञान फलदाई बनता है। जैन दर्शन में पांच प्रकार के ज्ञान का उल्लेख मिलता है उसे समझना चाहिए।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल