जो गुण है, वह गुणकारी बने, संयम में सहयोग देने वाले बनें – युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

जो गुण है, वह गुणकारी बने, संयम में सहयोग देने वाले बनें – युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-आयारो के माध्यम से विशेष प्रेरणा प्रदान कर रहे शांतिदूत

-उपासक श्रेणी के सेमिनार को आचार्यश्री से मिला आशीर्वाद

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 5 अगस्त ।

महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि हमारी दुनिया में भौतिक जगत भी है। शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श- ये भौतिक जगत के अंग हैं। यह भौतिक जगत पुद्गल के रूप में होता है। दूसरी ओर होता है अध्यात्म का जगत।

भौतिकता से मुक्त होकर जीवन जीना मुश्किल बात है। चौदहवें गुणस्थान में स्थित अयोगी केवली भौतिकता से पूर्णतया विरक्त हैं। शेष तेरह गुणस्थान तक वाले केवली तो भौतिकता से किसी न किसी रूप में जुड़े ही रहते हैं। जो गुण हैं वह आवर्त है और जो आवर्त है, वह गुण है। शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श को गुण कहा गया है।

जो विषय हैं, वे नाना प्रकार के भावों के संक्रमण के हेतु बन जाते हैं। सिद्ध भगवान एक ही समय में ज्ञाता और द्रष्टा भाव नहीं रखते हैं, वे एक समय में केवल ज्ञान से जाना और दूसरे समय में जाना अथवा एक समय में देखा और दूसरे समय में जाना। एक समय में ज्ञाता और द्रष्टा नहीं होते। इसलिए जिस समय सिद्ध द्रष्टा हैं, तब ज्ञाता नहीं और जब ज्ञाता हैं तब द्रष्टा नहीं।

हम साधना की दृष्टि से ज्ञाता और द्रष्टा भाव की बात करते हैं। सिद्ध भगवान भी एक समय में ज्ञाता और द्रष्टा नहीं होते। सिद्ध सब कुछ देखने और जानने वाले होते हैं। वे शब्द आदि का प्रयोग नहीं करते। इसलिए जो गुण है, वह आवर्त है और जो आवर्त है और वह गुण है। इसलिए आयारों में बताया गया कि जो पांचों विषय हैं, नाना प्रकार के भावों के संक्रमण हैं।

जिस प्रकार आदमी मित्र को देखे तो क्या भाव आता है और एक अपने शत्रु और दुश्मन को देखे तो क्या भाव आता है। आदमी अपने भावों के आधार पर गुण प्रकट होता है, इसलिए दोनों में संबंध भी देखा जा सकता है। किसी फूल से सुगंध आती है, वह वनस्पति है, आदमी कुछ खाता है, वह भी वनस्पति से प्राप्त है।

जैसे काष्ठ जीवमुक्त शरीर प्रयोग में आता है और पुष्प जीवयुक्त शरीर प्रयोग में होता है। पदार्थ आसक्ति के कारण बन सकते हैं। इसके कारण आदमी उसे प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है। आदमी को यह प्रयास करना चाहिए। इसलिए आदमी पदार्थों के आवर्त न फसने का यथोचित प्रयास करें। जो गुण है, वह गुणकारी बने, संयम में सहयोग देने वाले बनें, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाते हुए उसका संगान और व्याख्यान किया। तदुपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्याओं का आचार्यश्री से प्रत्याख्यान किया। प्रवक्ता उपासक श्री सुरेश बाफना ने पैंतीस की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज उपासक सेमिनार का मंचीय उपक्रम रहा। इस संदर्भ में उपासक श्रेणी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक सूर्यप्रकाश सामसुखा व विनोद बांठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी ने गीत का संगान किया।

आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय जन्मी उपासक श्रेणी आज बहुत आगे बढ़ गयी है। सेमिनार भी एक प्रशिक्षण का अच्छा माध्यम बन सकता है। उपासक-उपासिकाओं में खूब तत्त्वज्ञान का विकास होता रहे। श्री दिनेश द्वारा रचित अपनी पुस्तक ‘जरा विचार करें’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया।

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