रसना पर विजय प्राप्त करने के तप का नाम है आयंबिल…. साध्वी सुमंगल प्रभा जी ने कहा गुरु की महिमा अपरंपार

रसना पर विजय प्राप्त करने के तप का नाम है आयंबिल…. साध्वी सुमंगल प्रभा जी ने कहा गुरु की महिमा अपरंपार

दुर्ग(अमर छत्तीसगढ) आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी महाराज की 124वीं जन्म जयंती पूरे भारतवर्ष में आज एक साथ मनाई गई उसी क्रम में जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्ग में भी गुणानुवाद सभा का आयोजन साध्वी सुमंगल प्रभा जी के सानिध्य में आयोजित था। पूज्य गुरुदेव आनंद ऋषि जी महाराज का प्रमुख तप जिसकी नियमित आराधना और साधना किया करते थे और यह तप करने की हमेशा प्रेरणा दिया करते थे 90 वर्ष की उम्र में भी प्राकृत भाषा का ज्ञान लेते थे हमेशा गुलाब की तरह खिलता हुआ चेहरा गुरु भक्तों को एक नई ऊर्जा देता था।
जय आनंद मधुकर रतन भवन की धर्म सभा को संबोधित करते हुए गुरु आनंद के गुणों का बखान करते हुए साध्वी सुमंगल प्रभा जी ने कहा गुरु की महिमा अपरंपार होती है और गुरु कृपा चार प्रकार की होती है, स्मरण शक्ति, दृष्टि, शब्द और स्पर्श के रूप में गुरु की कृपा हमेशा बनी रहती है, हमें सिर्फ पावन पवित्र पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है।
चाहे सुबह हो चाहे शाम हो मेरे होठों पर सदैव गुरु का नाम हो युग पुरुष आनंद ऋषि जी महाराज महाराष्ट्र अहमदनगर के पास छोटे से गांव की चिचोडी में हुआ था ।

कठोर सड़क रत्न ऋषि जी महाराज का आशीर्वाद और सानिध्य पाकर एक महान साधक के रूप में पूरे भारत भर में अपनी एक अलग पहचान बनाई आज भारत देश के अंदर गुरुदेव आनंद ऋषि को मानने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है । इन्हें महाराष्ट्र का भगवान भी माना जाता है । आनंद बाबा के नाम से प्रसिद्ध जैन संत श्री आनंद ऋषि जी का सानिध्य एवं दर्शन पाने लोग हमेशा अशावान एवं लालायित रहते थे।
साध्वी श्री क,ख,ग, ध,के संदर्भ में चर्चा करते हुए आगे कहा पूर्व में लोग के से कमाना ख से खाना ग से गहना बनाना ध से धर बनाने की योजना के तहत व्यापार और कार्य करते थे अभी वर्तमान में के से कर्जा लो ख से खा जाओ जी से गायब हो जाओ ध से धमकी दो लोग आज इसी निती के तहत कार्य और व्यापार कर रहे हैं ।
साध्वी शुभ वृद्धि श्री एवं साध्वी प्रांजल श्री ने भी ने भी धर्म सभा में आनंद बाबा के गुणों का बखान किया ।

श्रमण संघ महिला मंडल ने गाया गुरु को समर्पित गीत
धर्म सभा के आयोजन में श्रवण संघ महिला मंडल के सदस्य सदस्यों ने गुरु पर समर्पित शानदार भक्ति गीत प्रस्तुत किया। जिनमें रचना श्रीश्रीमाल, रुचिता बाघमार परिधी मोदी कविता रतन बोहरा पायल पारख चंचल श्रीश्रीमाल ने हृदय स्पर्शी मंत्र मुग्ध कर देने वाले शानदार गीत की प्रस्तुति दी ।

वंदना मास खमण, सिद्धि तप एवं आयंबिल तप की नियमित आराधना

साध्वी मंडल के पावन सानिध्य एवं मार्गदर्शन में आज आचार्य सम्राट आनंद ऋषि जी महाराज के जन्म महोत्सव पर 70 लोगों ने‌ आयंबिल तप की आराधना
की

क्या होता है आयंबिल जाने…..

रसना पर विजय प्राप्त करने के तप का नाम है आयंबिल
भगवान महावीर ने हमें तपस्या के कई मार्ग बताए
हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना,
उपवास आदि। आयंबिल उन्हीं में से एक है।
आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल,
शक्कर आदि सभी का त्याग किया जाता है।
आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल
की तपस्या रसनेद्रिय पर विजय प्राप्त करने के लिए
करते हैं।

अपना पेट भरने के लिए एक स्थान पर
बैठकर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार
करना। समभाव की साधना करना यही आयंबिल
ओली का हेतू है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र
शुक्ल पूर्णिमा तक आयंबिल ओली की जाती है।
श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह
आयंबिल ओली प्रारंभ हुई।
जैन धर्म में बताए गए आयम्बिल तपस्या के बारे में शायद ज़्यादातर लोगों को जानकारी नहीं होगी। आयम्बिल की पूरी जानकारी को संक्षेप में जानें तो दिन में एक ही बार खाना होता है, उसमें भी 6 विगह यानी दूध, दही, घी, तेल, गुड़, फरसान (तली हुई चीज़ें), शक्कर, मिर्च, फल-सब्जी के बगैर की कुछ चीज़ें ही खाई जा सकती हैं।

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