काठमाण्डौ नेपाल(अमर छत्तीसगढ) 14 अगस्त।
।।परिवार सप्ताह का आयोजन।।
सेवा मानवता की अद्भुत रेखा है। सेवा दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है। सेवा वशीकरण मंत्र है। सेवा के साथ मन की निर्मलता, दूसरों के अधिकार का अहनन और परस्परता। ये तीन बातें जुङने से सेवाभावी व्यक्ति अपने आप को निखार सकता है। सेवा धर्म परम गहन होने के कारण योगियों के लिए भी अगम्य है। सेवा के समान कोई धर्म नहीं है कोई तप भी नहीं है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी तेरापंथ कक्ष स्थित महाश्रमण सभागार में आयोजित हुआ “परिवार सप्ताह” के अंतर्गत आज “वशीकरण मंत्र सेवा” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये व्यक्त किये।
मुनि रमेश कुमार जी ने सेवा के मह्त्व को समझाते हुए आगे कहा- ” जे गिलाणं पडिसेवई, ते मम पडिसेवई” जो ग्लानि की सेवा करता है वह मेरी सेवा करता है। इस महावीर वाणी से हम सेवा धर्म का महत्व समझ सकते हैं। जैन धर्म में सेवा को बहुत महत्व दिया गया है। निर्जरा के बारह भेदों में नौवां भेज वैयावृत्य है। वैयावृत्य के चार कारण बतायें है। 1- समाधि पैदा करना, 2- विचिकित्सा के भाव को दूर करना, 3- प्रवचन वात्सल्य प्रकट करना, 4- सनाथता या निराधारता की अनुभूति न होने देना।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल