मोक्ष प्राप्त करना है तो गुरू के सामने कोई विकल्प न रखें, उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आगे बढ़ेः श्री श्रमणतिलक विजय जी

मोक्ष प्राप्त करना है तो गुरू के सामने कोई विकल्प न रखें, उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आगे बढ़ेः श्री श्रमणतिलक विजय जी

आत्मकल्याण वर्षावास 2024

वर्धमान जैन मंदिर में अक्षयनिधि, समवसरण व कषायविजय तप की शुरूआत आज से

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 22 अगस्त। मोक्ष जाना है तो गुरु के सामने आपको कोई विकल्प नहीं रखना चाहिए। गुरु की आज्ञा को प्राथमिकता देकर अगर आप आगे बढ़ते हैं तो आपका कल्याण निश्चित है। गुरु की आज्ञा का पालन करने से पहले आपके मन में यह संकल्प लेना होगा की जो गुरु कहेंगे वह मैं करूंगा। जैसे उपवास करने से पहले आप खुद तैयार होते हैं उसके बाद गुरु की आज्ञा लेते हैं, वैसे ही दीक्षा लेने से पहले आप अपने मन से तैयार हो जाते हैं फिर गुरुवर की आज्ञा प्राप्त करते हैं। हमारा लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना है और इसके लिए हमें धर्म करना होगा।

आपको लगता है कि दीक्षा ले लिया तो मोक्ष को प्राप्त कर ही लेंगे तो ऐसा नहीं है, दीक्षा लेने के बाद भी यह कंफर्म नहीं होता है। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर स्थित वर्धमान जैन मंदिर के मेघ-सीता भवन में चल रहे आत्मकल्याण वर्षावास 2024 की प्रवचन श्रृंखला के दौरान परम पूज्य श्रमणतिलक विजय जी ने आश्रितगण हितचिंतक जिनचंद्र सुरीश्वर जी महाराज की चौथी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए उन्हें याद करते हुए कही।

मुनिश्री ने कहा कि केवल शादी कर लेने से जीवन नहीं चलता है उसके बाद हमें जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। बच्चे पैदा कर उन्हें कोई छोड़ नहीं सकता, बच्चों का लालन-पालन करना पड़ता है। वैसे ही गुरु दीक्षा देकर अपने शिष्यों को भूल नहीं जाते, उनकी देखभाल करते हैं। हमारे गुरु महाराज के एक समय पर 80 शिष्य थे और उन्हें उनमें से हर एक का नाम याद था। उनकी देखभाल वे एक परिवार की तरह करते थे और हर पल उन्हें यह पता होता था कि उनके शिष्य क्या कर रहे है। आज तो लोग अपने परिजनों का नाम भी ढंग से याद नहीं रख पाते हैं, देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है।

मुनिश्री ने पिछले प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्म के नाम पर लोग केवल पूजन और अनुष्ठान करते है, बड़ी मात्रा में दान देते हैं, भूखे को खाना खिलाने के लिए दान देते हैं। लेकिन यह दान वे रिश्वत के रूप में देते हैं ताकि कुछ हजार रुपए दान करके वे लखपति बन जाए। इसी कामना के साथ आज भगवान के नाम पर लोग खूब दान कर रहे हैं। जबकि दान का मतलब अब तक लोगों ने समझा ही नहीं है।

दान का मतलब धन का त्याग करना या किसी धार्मिक व सामाजिक कार्य के लिए धन देना होता है। जब धन देखकर ऐसा लगे कि यह दुख का कारण है और उस धन को लोगों की भलाई के काम में लगा दे, वह असली दान होता है। जबकि वर्तमान समय में जबकि ऐसा नहीं है, लोग दान पेटी में 500 रुपए डाल कर भगवान से खुद को लखपति बनाने की कामना करते हैं। यह भगवान को रिश्वत देने के समान है।

अक्षयनिधि, समवसरण व कषायविजय तप आज से, कलश की होगी स्थापना
आत्मकल्याण वर्षावास समिति 2024 के अध्यक्ष अजय कानूगा ने बताया कि न्यू राजेंद्र नगर स्थित वर्धमान जैन मंदिर में अक्षयनिधि, समवसरण और कषाय विजय तप की शुरूआत 23 अगस्त, शुक्रवार से होने जा रही है। वहीं, अक्षयनिधि तप करने वाले तपस्वियों के कलश की स्थापना सुबह मंदिर में की जाएगी। तपस्वियों के एकासने एवं क्रिया संबंधी समस्त व्यवस्था समिति की ओर से की जाएगी।

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