-ज्ञानार्थियों को साध्वीवर्याजी ने भी किया उद्बोधित
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 25 अगस्त।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में डायमण्ड सिटि सूरत में भगवान महावीर युनिवर्सिटि में बने संयम विहार रविवार को ज्ञानशाला दिवस के अवसर पर तेरापंथ ज्ञानशाला के नन्हें ज्ञानार्थियों की विशाल उपस्थिति गुंजायमान हो उठा। विभिन्न वेशों में सजे में नन्हें ज्ञानार्थियों की बटालियन अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावात्मक प्रस्तुति देने को आतुर दिखाई दे रहे थे। भगवान महावीर समवसरण में नित्य की भांति जब युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पावन प्रवचन हेतु उपस्थित हुए तो उपस्थित विशाल जनमेदिनी ने बुलंद जयघोष किया। तदुपरान्त आरम्भ ज्ञानशाला दिवस पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की भावपूर्ण प्र्रस्तुति का क्रम।
यह इस प्रकार समायोजित था मानों आज महावीर समवसरण भारत का राजपथ बन गया हो। जिस प्रकार 26 जनवरी को भारत की शौर्यगाथा जिस प्रकार भारतीय सेना तथा भारत के लोग प्रस्तुत करते हैं, उसी प्रकार तेरापंथ अनुशास्ता के समक्ष तेरापंथ के वैभवपूर्ण विशालता को ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी प्रस्तुत कर रहे थे।
अनेकानेक बटालियन के रूप में अपने आराध्य के समक्ष उपस्थित होते ज्ञानार्थी तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के एक-एक आयाम को बखूबी प्रस्तुत कर रहे थे। ज्ञानार्थियों का उपक्रम जन-जन को मंत्रमुग्ध बनाने वाला था। लगभग एक घंटे चला यह उपक्रम जन-जन को मानों सम्मोहित-सा कर लिया था।
एक घंटे की अनवरत मोहक प्रस्तुति के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को अभिप्रेरित करते हुए ज्ञानशाला और ज्ञानार्थियों के प्रति मंगलकामना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदितकुमारजी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर पर उपस्थित विशाल जनमेदिनी और ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को आयारो आगम के आधार पर पावन देशना प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अहिंसा भी जीवित है तो हिंसा भी विद्यमान है। अहिंसा कभी भी पूर्णतया समाप्त नहीं होती और हिंसा भी पूर्णतया समाप्त हो जाए, यह भी संभव नहीं है।
कहीं हिंसा ज्यादा दिखाई दे सकता है तो कहीं अहिंसा व शांति का साम्राज्य भी दिखाई दे सकता है। हिंसा है तो अहिंसा का दीप जलाने का प्रयास हो। अंधकार है तो दीपक से प्रकाश फैलाने का प्रयास किया जा सकता है। आदमी को झटपट निराश नहीं होना चाहिए।
कोई व्यक्ति अपने विचार से हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है तो कोई भय के कारण हिंसा में संलग्न हो सकता है। अपनी रक्षा के संदर्भ में भी आदमी हिंसा में जा सकता है। बच्चों में अच्छे संस्कार कैसे उजागर हों और गलत संस्कार क्षीण हों, इसका प्रयास करना चाहिए। विद्यालयों के माध्यम से बच्चों में अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं।
परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और आचार्यश्री तुलसी द्वारा जीवनविज्ञान की बात बताई गई। विद्या संस्थान विद्यार्थियों व बच्चों में अच्छे संस्कार पुष्पित और पल्लवित करने के लिए सशक्त माध्यम हैं। माता-पिता व परिवार के लोग भी बच्चों को सुन्दर संस्कारों के निर्माण में अच्छे सहायक बनते हैं।
दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता व अन्य परिजन बच्चों पर संस्कारों की बरसात करते रहें। जिस प्रकार बरसात से खेत की फसल अच्छी होती है, उसी प्रकार चारों ओर से बच्चों पर संस्कारों की बरसात हो तो बच्चे संस्कारी बन सकते हैं। मीडिया, सोश्यल मीडिया, अखबार आदि के द्वारा भी अच्छे संस्कार आ सकते हैं तो साधु-साध्वियां व समणियां भी अच्छे संस्कार देने में सहायक बन सकती हैं।
ज्ञानशाला एक धर्म-संप्रदाय से जुड़ा हुआ उपक्रम है। गुरुदेव तुलसी के समय से ज्ञानशाला का बीज वपन हुआ था। महासभा के तत्त्वावधान में चलने वाला एक उपक्रम है। इसमें सभा और अन्य संस्थाएं भी सहयोगी के रूप में अपना योगदान देने वाली हो सकती हैं। ज्ञानशाला का उपक्रम बच्चों के लिए बहुत अच्छा विकास किया है। छोटे-छोटे बच्चे भी धार्मिक गतिविधि से जुड़ते हैं, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों के द्वारा अनेक प्रस्तुतियां होती हैं, अपने प्रदर्शनी आदि के द्वारा अपने अनेक ज्ञानों को प्रदर्शित करते हैं। बच्चे उसकी व्याख्या भी करते हैं।
भाद्रव महीने का पहला रविवार ज्ञानशाला दिवस के रूप में आज का यह कार्यक्रम हो रहा है। धार्मिक ज्ञान इन्हें मिलता रहे तो बच्चे बुराइयों से बच सकते हैं। ज्ञानशाला एक सुंदर कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से कितने-कितने बच्चों को धर्म से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। पहले बच्चों को स्कूल व बाद में ज्ञानशाला के उपक्रम का अध्ययन करना भी बहुत अच्छी बात है।
ज्ञानशाला में सेवा देने वाली प्रशिक्षिकाएं भी अपना कितना अच्छा योगदान देती हैं। बच्चे समाज व देश का भविष्य होते हैं। बच्चों में अच्छे संस्कार मजबूती से आ जाएं और उनका अच्छा विकास हो जाए तो वे आगे जाकर समाज की अच्छी सेवा कर सकते हैं और देश की अच्छी सेवा भी कर सकते हैं और उनमें अच्छी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा भी कर सकते हैं।
ये संकल्प बच्चों का अच्छा निर्माण करने में योगदायी बन सकते हैं। गुरुदेव तुलसी के समय इसका क्रम प्रारम्भ हुआ, बाद में इसने अपना बहुत अच्छा विकास किया। एक-एक ज्ञानशाला में कितने-कितने प्रशिक्षण देने वाले और कितने-कितने व्यवस्थातंत्र में अपनी सेवा देने वाले होते हैं। अभिभावकों का भी योगदान होता है और कई चीजें मिलती हैं, तब यह ज्ञानशाला का सुन्दर रूप सामने आता है।
माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास करते रहें। ज्ञानशाला के बच्चे संस्थाओं के अध्यक्ष बनें या अथवा न बनें, कोई पद अथवा न पाएं, किन्तु तेरापंथ समाज के अच्छे श्रावक-श्राविका अथवा साधु, साध्वी समण-समणियां अवश्य बनें। हमारे अनेक ज्ञानशाला से जुड़े लोग धर्मसंघ में चारित्रात्माओं के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सूरत जैसे शहर की ज्ञानशाला और ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक भी सूरत में हैं तो फिर कहना ही क्या।
ज्ञानशाला के बच्चों का अच्छा रूप सामने आया है। प्रशिक्षण देने वाले अपनी सेवा देते रहें, व्यवस्थातंत्र के लिए तेरापंथी सभाएं ध्यान देती हैं, नियोजन करती रहें, ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़ती रहे। ज्ञानशाला खूब अच्छा विकास करती रहे और बच्चों के लिए वरदान साबित हो, मंगलकामना।
ज्ञानशाला के गुजरात के आंचलिक संयोजक प्रवीण मेड़तवाल, महासभा के ज्ञानशाला प्रकोष्ठ के संयोजक श्री सोहनराज चौपड़ा तथा चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में शासनपक्ष नेता श्रीमती शशिबेन त्रिपाठी, सूरत के डिप्युटी मेयर नरेन्द्र भाई पाटिल, चेयरमेन विक्रम भाई पटेल, जितो के जेटीएफ के प्रेसिडेंट विनोद दुगड़, श्रमण आरोग्यम् के प्रेसिडेंट प्रकाश संघवी, जितो एपेक्स के वाइस चेयरमेन राजेन्द्र जैन ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किए