रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 27 अगस्त। मुनि श्री शीतल राज मसा ने पुजारी पार्क स्थित मानस भवन में अपने प्रवचन में कहा पंच परमेष्ठी देव एवं वर्तमान शासनपति चरम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी एवं परम आचार्य भगवंतो ने अनंत उपकार कर भव्य जीवो के कल्याण हेतु द्वादशवांगी की आराधना की। साधु वंदना का पाठ जो आपने किया उसमें आप मोक्ष में जाने वाले सहित आदि अनेक अंगों से महापुरुषों का जीवन गुन गाथा गई है । उन महापुरुषों का स्मरण तो गुरु वंदना से किया जाता है।
अभी त्यौहार आएगा दिवाली की सफाई में लग जाएंगे उन दिन हम आत्मा की चिंता नहीं करते, सफाई करते सांस निकल जाएगी । आपको पता नहीं चलेगा आत्मा है तो शरीर है मकान है अगर आत्मा ही नहीं है तो कुछ नहीं । महापुरुषों ने आत्म शुद्धि के लिए कुछ ना कुछ कहा है। हम इतने लीन हो जाते हैं की आत्मा के बारे में भी नहीं सोचते। शरीर का महत्व नहीं है महत्व है इसमें रहने वाली आत्मा का।
मुनि श्री ने कहा हमको सोचना है की आत्मा के लिए क्या करें, तीन बातों में हमको ध्यान देना चाहिए शरीर, परिवार, मकान इसमें हम मन काया वचन को लगा दिया तो पाप होता रहेगा । हमको जो चिंता दुख मुक्ति की है पाप मुक्ति की नहीं। हमको पाप से मुक्त होना है तो दुख से मुक्ति मिल जाएगी दुख से मुक्ति हो जाएगी थोड़ी देर के लिए लेकिन फिर से दुख आ जाएगा। दुख से जकड़े हुए महापुरुष सनत कुमार चक्रवर्ती ने दुख से मुक्ति के लिए पाप छोड़ने का काम किया । धर्म का सहारा लेते तो दुख से मुक्ति मिल जाएगी।
जीव अगर बस में हो जाए तो बड़े-बड़े दुख खत्म हो जाएंगे डॉक्टर की बात मानना मंजूर है लेकिन भगवान की बात मंजूर नहीं । नहीं मानने का नतीजा हम डॉक्टर के चक्कर लगाते हैं। महापुरुषों ने 700 वर्षों तक समता भाव से करते हुए सदा के लिए रोगों से मुक्त हुए।
गुरुदेव ने कहा अब हमारे पास चार दिन बाद आत्मा को पवित्र बनाने के लिए पर्यूषण महापर्व आ रहा है, साधक के लिए संवत्सरी का पर्व दीपावली है। आत्मा पर लगे हुए कर्मों को साफ करने के लिए 8 दिन का अवसर आ रहा है । हम इन दिनों अपने आप को लीन करेंगे जैसा दीपावली के सफाई करते हैं वैसे ही अपने कर्मों की सफाई करेंगे ।
शीतल राज मसा ने कहा शरीर को कष्ट देने से महाफल की प्राप्ति होती है, सभी जगह एयर कंडीशन जैसी दुर्लभ सुविधाओं के इस्तेमाल से अनेक जीवो का नुकसान होता है। आत्मा पर लगे कर्म मेल को दूर करना है तो सर्दी गर्मी बर्दाश्त करना होगा। आत्म कल्याण के लिए संवर, प्रतिक्रमण, पोसा करना चाहिए। 23 तीर्थंकर के कष्ट एक तरफ और भगवान महावीर के कष्ट एक तरफ है। तपना तो पड़ेगा सारे सुख तो मोक्ष में ही मिलेंगे । इसलिए हम भगवान महावीर के पद चिन्हो में चलने का प्रयास करें जो भी कर्म करें शुद्ध पवित्र करें ताकि हमारी आत्मा शुद्ध हो सके ।
मुनिश्री ने कहा केवल बाहर का त्याग करने से कुछ नहीं होना है सब की बातों को समता भाव से सुनते सुनते खाते भी केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई। इस पर्व में बाहर के त्याग के साथ-साथ चार प्रकार का भोजन आत्मा को शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करना होगा। हमारी आत्मा को मोह दशा के कारण यह चार कषाय आत्मा को डूबाने वाली है और इस कषाय का त्याग कर दें तो तारने वाला हो जाएगा।
गुरुदेव ने कहा इन आठ दिनों में शरीर की वस्तु को छोड़ना होगा हमको नम्रता सरलता के साथ आत्म कल्याण के लिए प्रयास करना होगा। हम आठ दिन तक क्रोध, मान, माया, लोभ को छोड़ने का प्रयास करें।