प्रमाद से बचने और शुभ भाव रखने को आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा…. प्रमाद के कारण अनेकानेक योनियों में भ्रमण करती है आत्मा :  आचार्यश्री महाश्रमण

प्रमाद से बचने और शुभ भाव रखने को आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा…. प्रमाद के कारण अनेकानेक योनियों में भ्रमण करती है आत्मा : आचार्यश्री महाश्रमण

-आचार्यश्री ने गजसुकुमाल मुनि के आख्यान का किया वाचन

-तेरापंथ कन्या मण्डल के 20वें अधिवेश का हुआ शुभारम्भ

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 27 अगस्त।

सम्पूर्ण भारत ही नहीं, पूरे विश्व में अपनी समृद्धि के लिए विख्यात गुजरात राज्य का सबसे प्राचीन तथा हीरे और कपड़े के व्यवसाय से सुप्रसिद्ध सूरत नगरी वर्तमान में अध्यात्म नगरी के रूप में अपनी छटा बिखेर रही है। सूरत की बदलती इस सूरत का कारण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का इस नगरी में पावन चतुर्मास। ऐसे महागुरु की सन्निधि में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालुओं के पहुंचने से व्यापारिक नगरी अध्यात्म प्रेमियों की नगरी भी बन रही है।

प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु मानवता के मसीहा के दर्शन व मंगल प्रवचन से जीवन अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। इतना ही तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ी संस्थाओं व संगठनों के अधिवेशन आदि के कार्यक्रमों का भी अनवत क्रम बना हुआ है। मंगलवार को भी अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल का 20 अधिवेशन भी शुभारम्भ हुआ।

महावीर समवसरण में मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।

तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी अनेक योनियों में जाता है और नाना प्रकार के आघातों का प्रतिसंवेदन करता है, कष्ट भी भोगता है। प्रश्न हो सकता है कि अलग-अलग योनियों में जीवन को कौन ले जाता है? आगम में उत्तर प्रदान किया गया कि प्राणी अपने प्रमाद के कारण अनेक रूप वाली योनियों में जाता है और आघातों का अनुभव भी करता है। जैन आगमों में बताया गया है कि सुख और दुःख की कर्ता-धर्ता स्वयं उस प्राणी की आत्मा ही होती है। जैसा कर्म आत्मा करती है, प्राणी उसी प्रकार सुख अथवा दुःख को प्राप्त करता है। प्राणी के कर्म ही उसे कष्ट देने वाले होते हैं।

पाप का आचरण करने वाला यथा चोरी, हिंसा, हत्या, लूट, किसी को कष्ट देने वाला अपने लिए स्वयं दुःख का प्रबन्ध कर लेता है। दुःख, कष्ट को दूर करने लिए प्राणी को अधिक से अधिक प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रमाद से बचने के लिए प्राणी को प्रमाद से बचते हुए आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो तो संभव है, कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। आदमी को अपने कर्म पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के अपने भीतर में उत्पन्न हो रहे प्रमाद से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया।

कार्यक्रम में गुजरात की धरा से संबद्ध मुनि निकुंजकुमारजी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। ‘रश्मियां रश्मिरथ की, गाथा महाश्रमण की’ विशेषांक को श्रीमती प्रभा जैन, श्री विनोद मरोठी आदि ने पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया। इस संदर्भ में श्रीमती प्रभा जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

Chhattisgarh