अंतगडदसांग सूत्र चौथे दिन कहा वाचक ने-दीक्षार्थियों का महोत्सव भी श्रीकृष्ण स्वयं मनाए…. शीतलराज मसा ने कहा सेवा के साथ पहले क्षमा, सहनशीलता हो तब क्षमा की सार्थकता

अंतगडदसांग सूत्र चौथे दिन कहा वाचक ने-दीक्षार्थियों का महोत्सव भी श्रीकृष्ण स्वयं मनाए…. शीतलराज मसा ने कहा सेवा के साथ पहले क्षमा, सहनशीलता हो तब क्षमा की सार्थकता

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 4 सितंबर। जैन मुनि शीतलराज ने आज पर्युषण पर्व के चौथे दिन कहा सेवा करना सरल काम नहीं, सेवा के साथ पहले क्षमा हो सहनशीलता हो, सहनशीलता का गुण नहीं तो सेवा करना मुश्किल है। सेवा करने वाले साधक तीर्थंकर नामकरण को जानता है। तीर्थंकर नामकरण इतना आसान नहीं है तीर्थंकरों ने पुण्य संग्रहित किया, भाग्यशाली, पुण्यशाली चक्रवर्ती का पद भी भोगा।

उन्होंने कहा तुमने बच्चों के साथ जो व्यवहार किया तुम्हारे साथ भी वैसा व्यवहार करेगा। क्योंकि आज बच्चों को अपने पास रखते नहीं संस्कार धर्म ध्यान से उनकी दूरी फिर विदेश गया वहीं रम गया। वापस नहीं आया, पढ़ाने में लाखों खर्च किया तुम्हारे काम नहीं आया। बिना धर्म सारी पढ़ाई व्यर्थ है उन्होंने कहा हम जिन महापुरुषों का नाम सुना वे महापुरुष के 12 प्रकार के तपस्या के साथ ब्रम्हचर्य की आराधना में दृढ़ रहते थे।

अपनी आराधना करते हिंसा का आरोप नहीं लगा किसी ने कलंक लगा दिया पर अपने धर्म पर अडिग रहे। हम ऐसी आराधना करे तो देवता को दीप अगरबत्ती की जरुरत नहीं। जब तक हमारे जीवन में सरलता नम्रता हो, छल कपट का त्याग न करें आते हुए कर्मों को रोके वैसे देवता भी खाली नहीं बैठे है। राग वेष का त्याग करें जो ईश्वर से ज्यादा है। संयम के पाठ की पालना करें,तुम्हारी साधना आराधना इतनी दृढ़ हो कि त्याग तपस्या को देखकर देवता भी ध्यान रखें। देवता त्याग तप देखते है रंग रुप धन नहीं देखते। मात्र हाथ जोडऩे प्रसाद से कुछ नहीं होगा। चाहे कहीं भी जाओ व्हीआईपी में रुपये लेकर जाओ, रुपया पाप बढ़ाएगा धर्म नहीं।


मुनि श्री ने कहा आज भी भारत के मंदिर देवालयों में सोने की कमी नहीं है। भारत में गरीबी नहीं। मोह माया त्याग तपस्या से ही सब कुछ संभव है। कार्यों को याद कर इतनी आलोचना करें, प्रायश्चित जैसा तप करें। हमारा प्रायश्चित करने में मन गया तो केवल ज्ञान मिलने में देर नहीं होगा।

दुख किसी को प्यारा नहीं, 24 घंटे में एक बार भी किए गए पापों का प्रायश्चित हो पुण्य होगा। उन्होंने कहा सामायिक करना इतना सरल नहीं संवर करना भी मुश्किल, घर का त्याग भी नहीं होता। भगवान महावीर के साढ़े बारह बरस को याद करें संयम की आराधना करते आगे बढ़े। संवर घर पर कर लो,त्याग तो करो आप स्वयं आत्मचिंतन करो।

पाप का क्षय हो तप तपस्या करो आप तीर्थंकर का जीवन लो मार्गदर्शन लो,तपस्या करो, प्रेरणा लो हम लोग तप के साथ अधिक से अधिक आराधना करें। महारपुरुषों के मार्गदर्शन में चले, किए हुए पाप कटेंगे। रोग मुक्त हो जाएगा हम लोग तप को समझकर विधि पूर्वक तपस्या करें तो होगा वरना पापों से भरा रहेगा।

आप लोग 8 दिन महापुरुषों की जीवनी की श्रवण करेंगे तप करते रहे। जल्दी-जल्दी पारणा की मत सोचे तप को विधि पूर्वक करें। राजा-रानियों की संयम के प्रति रुचि जागेगी।
पर्युषण पर्व के चौथे दिन आज अंतगडदसांग सूत्र के चौथे वर्ग के अध्ययनों पर बोलते हुए इंदौर से पधारे सुश्रावक वाचक शिखरचंद छाजेड, विमलचंद तातेड ने कहा श्रमण यावत मुक्ति प्राप्त प्रभु ने अंतगडदसांग सूत्र के चौथे वर्ग के 10 अध्ययन पर बोले तथा अध्ययन श्रमण यावत मुक्ति प्राप्त प्रभु ने बताया गौतम कुमार से समान उसके पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम जालि कुमार रखा जो युवा अवस्था को प्राप्त हुआ।

उसका विवाह 50 कन्याओं के साथ किया। 50-50 करोड़ सोनैया का प्रीति दान किया। उन्हें सभी अध्ययनों की विस्तृत जानकारी देते हुए उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने प्रश्नोत्तरी के माध्यम से इसे जाना वाचक ने पंचम वर्ग के 10 अध्ययन को भी साझा किया। द्वारिका के विनाश का कारण सुरा अग्नि एवं द्वैपापन ऋषि रहे फिर द्वैपापन ऋषि अग्नि कुमार देव बनकर द्वारिका नगरी को अग्नि दग्ध किया। याचक ने श्रमण यावत मुक्ति प्राप्त प्रभु के पंचम वर्ग के 10 अध्ययनों पर भी चर्चा जारी रखी।

शिक्षा सार पर कहा वैराग्य तो अपने आप में शुद्ध है उत्तम है ज्ञान गर्भित वैराग्य ही सर्वोत्तम है। ऐसा वैराग्य प्रद्युम्न कुमार रहा वैसा वैराग्य प्राप्त करें। याचक ने मन वचन काया पर भी महत्वपूर्ण जानकारी दी।
सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने आज भी तप तपस्या से जुड़े उपवास एकासना व्यासना पोरसी बेला तेला अठाई का पचखान कराया। नियमित रुप से रात्रि संवर में महिला-पुरुष भाग ले रहे है।

रोज नियमित नवकार मंत्र का पाठ भी जारी है मध्यप्रदेश, राजस्थान से पधारे 50 से अधिक श्रावक-श्राविका बच्चे नियमित रुप से सामायिक प्रतिक्रमण संवर दया में भाग ले रहे है। लाभार्थी संचेती परिवार प्रमुख दीपेश संचेती, प्रियंका संचेती सभी का आकर्षक स्मृति चिन्ह भेंटकर नियमित सम्मान बहुमान कर रहे है तथा प्रवचन स्थल पर स्थापित भोजन शाला का लाभ भी तप तपस्या करने वाले नियमित ले रहे है। वहीं दूसरी ओर आज तपस्वी कुमारी काव्या संचेती के लिए प्रभु भक्ति मानस भवन में शीतलराज मुनि व उपस्थितजनों के मध्य किया गया।

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