अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ),10 सितम्बर। तप जीवन का श्रृंगार होकर आत्मा की मुक्ति के द्धार खोलता है। तप शरीर को निर्मल व पावन बना देता है। जैन धर्म में दान,शील, भावना के साथ तप का विशेष महत्व बताया गया है। हमारे तीर्थंकर भगवन्त ओर महापुरूषों ने तप के माध्यम से ही केवल ज्ञान प्राप्त किया था। तप करने से जीवन की शुद्धि होकर भावनाएं पवित्र हो जाती है। तपस्या की अनुमोदना भी पुण्यदायी होती है।
ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा. ने मंगलवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद भी धर्मनगरी अंबाजी में तपस्याओं का ठाठ लगा हुआ है।
तपस्वियों के सम्मान में मंगलवार को वरघोड़ा निकाला गया। इसमें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुए ओर तपस्वियों की अनुमोदना की। धर्मसभा में सुश्राविका अनिता धर्मेशजी माण्डावत ने 31 उपवास एवं सुश्री डिंपल सुनील मादेरचा ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए तो हर्ष-हर्ष के जयकारे गूंजायमान हो उठे।
वरघोड़ा में जो तपस्वी शामिल हुए उनमें 15 उपवास करने वाली सुश्राविका दिलखुश राजेन्द्रजी सियाल, 9 उपवास करने वाली शिल्पा कमलेशजी बागरेचा, आयुषी केवलजी सियाल, रेखा दिनेशजी लोढ़ा, प्रीति विनोदजी लोढ़ा, सीमा नरेशजी मादेरचा भी शामिल थे। तपस्या पूर्ण करने वाले तपस्वियों के सामूहिक पारणे भी श्रीसंघ के तत्वावधान में कराए गए।
धर्मसभा में तपस्वियों की अनुमोदना करते हुए सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि तपस्या करने से आत्मा हल्की, निर्मल,पावन व पवित्र बन जाती है। जीवन में तपस्या करने का लक्ष्य अवश्य रहना चाहिए ओर जितनी सामर्थ्य हो उतना तप अवश्य करना चाहिए। तपस्या से जीवन में आत्मकल्याण होने के साथ आत्मा निखरती है ओर धर्म के मार्ग से जुड़ते है।
तपस्या कर्मो की निर्जरा करने का श्रेष्ठ माध्यम है। बिना तपस्या के कर्म निर्जरा नहीं हो सकती। शरीर को तपाने से आत्मा निखर उठती है। धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि तप करने से तन ओर मन दोनों शुद्ध व निर्मल रहते है। तपस्या करने से भावों की भी विशुद्धि होती है ओर जीवन में कल्याण का मार्ग खुलता है। मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि तप, त्याग, साधना आत्मा को अपने मूल गुण में लाने का माध्यम है। क्रोध, राग, द्वेष, तेरा-मेरा की भावना ये सभी विभाव है।
आत्मा को अपने मूल स्वभाव में लाने के लिए हमे कषाय मुक्त होना होगा। शुद्ध भावों के साथ की जाने वाली तपस्या जीवन को कषाय मुक्त करने का माध्यम है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि तपस्या करना सहज नहीं है, तप करने के लिए तन को तपाना पड़ता है। जो तन को तपाते है वहीं तपस्वी बन पाते है। जो तपस्या नहीं कर सकते वह भी तपस्वियों की अनुमोदना कर पुण्य प्राप्त कर सकते है।
अंबाजी में जो माहौल त्याग तपस्या का बना है वह प्रेरणादायी है। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। धर्मसभा में विभिन्न स्थानों से आए श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627