रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 15 सितंबर। मुनि श्री शीतल राज मसा ने आज आचार्य देव जयमल मसा के 317 वीं जन्म जयंती पर बोलते हुए अपने नियमित प्रवचन में कहा तीर्थंकर भगवान महावीर जन्म से भौतिक सुखों तन-धन परिवार का त्याग कर नियमित सामायिक स्वाध्याय के साथ आए, महापुरुष बने । हमें उनकी प्रेरणा लेकर उनके बताएं मार्गदर्शन में चलना होगा। सभी तीर्थंकर दृढ़संकल्प कर संवर की ओर बढ़े । महापुरुष जानते हैं बिना सामायिक स्वाध्याय के मुक्ति नहीं होगी। सारे सुखों को छोड़कर सबसे पहले मोह छोड़ना होगा। जिनका पुण्य प्रबल होता है धन परिवार सब छोड़ जाते हैं।
उन्होंने कहा तन-धन परिवार का मोह छोड़ दे, त्याग तपस्या से जुड़े । सब कुछ भौतिक सुखों को एक सपना की तरह समझे। 1 घंटे के लिए पूरा ममत्व हटा दें। सामायिक की साधना के आते ही पाप रुकते हैं कर्म निर्जरा भी होती है। धर्म की आराधना करते हुए समता भाव की साधना करते हुए, अपने आप पुण्य होगा। जिसका लाभ पूर्व भव में किया मिल गया। लेकिन नया एकत्रित नहीं किया तो डंडे पड़ेंगे। यहां का थानेदार तो पैसा लेकर छोड़ देगा, लेकिन कर्म का थानेदार नहीं छोड़ेगा।
महापुरुषों का जन्म दिवस तो निमित्त है, उनकी वाणी को श्रवण करो, वाणी से भाव उमड़ेगा तन-धन परिवार नाशवान है । कोई साथ नहीं जाएगा। शुभ कार्य में देरी न करें।
आज के श्रावक को भी चिंतन मनन करना होगा, महापुरुषों के जीवन उनके बताएं मार्गदर्शन पर हमें चलना होगा। मुनि श्री ने कहा नियम लेने से आप घबराते हैं, उसका पालन नहीं करते । महात्मा गांधी भी जैन संतों के पास सात दुव्यसनो को छोड़ने का त्याग कराया। नियम बंधन नहीं नियम रक्षक है। साधक को स्वाध्याय करना होगा, ज्ञान प्राप्त करना है। केवल भक्ति के नाम पर भक्तांबर, माला जाप से कुछ नहीं होगा । 18 पापों के त्याग के साथ सामायिक स्वाध्याय से पूरी तरह जुड़ना होगा। वैसे भी ज्ञानी अज्ञानी का रात दिन का अंतर है एक कर्म बंधन करता है एक बंधन मुक्त करता है।
एकाग्रता साधना के बिना कोई भी जीव मोक्ष में नहीं जावेगा मुनि श्री शीतल राज ने आचार्य देव जयमल महाराज की 317 वे जन्म जयंती पर बोलते हुए बताया कि 22 वर्ष की उम्र में पत्नी का त्याग कर दीक्षा ली आजीवन एकांतर उपवास के साथ पांच तिथियां में पांचो विगय का त्याग किया । 65 वर्ष की दीक्षा पर्याय में 40 वर्ष तक आचार्य पद पर रहे। अंतिम समय 31 दिन संथारा आया। आचार्य जयमल की धर्म पत्नी श्रीमती लक्ष्मीबाई ने दीक्षा ग्रहण की उन्होंने 17 शास्त्रों का दोहन करके बड़ी साधु वंदना की रचना की । उन्होंने उपस्थित जनों से कहा दया दिवस पर दया में भाग ले आकर्षक पुरस्कार से सम्मानित हो l
आज के शुभ अवसर पर प्रतिक्रमण, । संवर से जुड़े पूरे मन से करें। बच्चों को संस्कार दे, जन्म देना सरल पालना कठिन है । माॅ को समय बच्चों को देना होगा । महापुरुषों की वाणी सुनो पूणवानी होगी । एक दिन में ज्ञानी हो जाओगे आचार्य जयमल मसा के जन्म दिवस पर उनका मार्गदर्शन स्वीकारे । मुनि श्री ने पुन कहा 23 सितंबर से वह मौन रहेंगे । 29 सितंबर को सामायिक स्वाध्याय सम्मेलन में रहेंगे। उत्तराध्यान के माध्यम से भगवान महावीर स्वामी को याद करेंगे। सम्मेलन में सभी को सामायिक स्वाध्याय वेशभूषा में सुबह 9:00 बजे भाग लेना है । दिन भर सामायिक चलेगा।
आज कार्यक्रम में बालाघाट के गौतम कोठारी, रोहित कोठारी, उषा कोठारी के साथ में लगभग 60 से भी अधिक महिला पुरुष बच्चे पहुंचे। अधिकांश आज दया में भाग ले रहे हैं। प्रारंभ में बालक विराट कोठारी जिनका जन्मदिन है स्वयं प्रतिक्रमण मेरी भावना सहित अधिकांश कंठस्थ की प्रस्तुति दी । अभय कोठारी के सुपुत्र विराग की शानदार धर्म भक्ति की प्रस्तुत दी। वहीं नन्ही बालिका आराध्या लुणावत ने भी भक्ति प्रस्तुत की । दया दिवस पर श्रीमती निशा कोठारी, दुर्गा जैन ने भी भाव प्रस्तुति दी । सुश्रावक अजय संचेती ने सम्मेलन सहित अन्य जानकारी दी । सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने पचखान लेने वालों की प्रस्तुति कराई। आज दया दिवस में बालाघाट, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर के साधक ने भाग लिया । सभी की भोजन की व्यवस्था भोजशाला में की गई ।