रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 28 अक्टूबर। आड़ा आसान त्यागी सामायिक स्वाध्याय के प्रणेता शीतल राज मसा का उत्तराध्यान सूत्र वाचन सामूहिक पठन के साथ उपस्थित जनों को भावार्थ के साथ नित्य प्रति भगवान महावीर स्वामी देशना पर समझाया।
तीर्थंकर महावीर स्वामी के पूर्व भवों का अध्ययन इस दृष्टि से भी उपयोगी होगा कि सामान्य आत्मा किस प्रकार परमात्मा बनता है तथा परमात्मा बनने की सम्यक प्रक्रिया के ना समझने के कारण वह किस प्रकार भव चक्र में घूमता रहता है, दुखी होता रहता है। तीर्थंकर भगवान महावीर के पूर्व भवों की चर्चा से जैन दर्शन की यह विशेषता विशेष रूप से उजागर होती है कि जैन दर्शन का मार्ग नर से नारायण बनने तक का ही नहीं आत्मा से परमात्मा बनने का शेर से भगवान बनने का है।
भगवान महावीर के उपदेशों का केंद्र बिंदु आत्मा है शीतल राज मुनि ने अध्ययन सूत्र के विभिन्न तथ्यों में बोलते हुए कई दृष्टांत का उल्लेख किया। जिसमें साधु, तपस्वी की धारणा गुस्से पर नियंत्रण आत्म कल्याण के मार्ग प्रस्तुति की बात कही। उन्होंने साधक के साधु तपस्वी बनने की स्थिति पर भी जानकारी दी। 6 काया से जीवन की रक्षा कर त्याग तपस्या की आराधना करने संतों की वाणी सुनकर शुभ कार्य करने लगे । संतों से प्रभावित उनके मार्ग पर चलने का निर्णय लेते हैं।
उन्होंने कहा संत महात्मा रंग रूप की डील डौल की काया को नहीं उनकी आत्मा को देखते हैं। पाप से घृणा करो, पापी से नहीं । वैसे भी ब्राह्मण एवं जैन सिद्धांत अलग-अलग है । जैन साधु किसी जीव को नहीं मारते। उन्होंने 12 वें, 13 वें अध्ययन की संक्षिप्त जानकारी दी। कहा साधना तप तपस्या, त्याग, दर्शन चारित्र की आराधना एकमात्र कर्म निर्जरा के लिए किया जाए । उन्होंने घृणा पर भी कहा घृणा दूसरों से नहीं अपने आप से करें ।
आगामी 30, 31 अक्टूबर एवं 1 नवंबर को तेला करें । सम्मान प्राप्त करें । बड़ी संख्या में इसमें भाग लेने बाहर से भी साधक आ रहे हैं। संयम तप, तपस्या का बहुत महत्व है।