बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) 13 नवंबर। विश्व शांति और सर्वकल्याण की मंगल भावना से श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, क्रांतिनगर बिलासपुर में आयोजित हो रहे श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान के छठवें दिन धर्मानुरागियों ने विधानाचार्य मनोज भैया के मार्गदर्शन में श्रीजी के समक्ष मण्डल पर 256 अर्घ्य चढ़ाएं, साथ ही उन्होंने भगवान की विशेष पूजा-अर्चना की।
प्रतिदिन की भांति आज के दिन की भी शुरुआत भगवान के अभिषेक और शांतिधारा से हुई, उसके पश्चात पूजन और विधान प्रारंभ हुआ।
जैसा कि विदित है कि इस धार्मिक अनुष्ठान में पहले दिन आठ अर्घ एवं उसके बाद प्रतिदिन द्विगुणित क्रम में मंत्रोच्चार के साथ अर्घ चढ़ाए जाते हैं, इस तरह आज विधान के छठवें दिन मंत्रोच्चार के साथ 256 अर्घ विधान मण्डल पर चढ़ाए गए।
विधान के दौरान विधानाचार्य जी ने कहा कि माता-पिता और गुरु की सेवा एवं सम्मान करने पर दीर्घायुभव, आयुष्मान भव, खुश रहो आदि आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। वृद्धजनों का आशीर्वाद हृदय से मिलता है। कहा गया है कि जिस तरह वनस्पतियों में सूर्य से जीवन प्राप्त होता है, वैसे ही माता-पिता आदि वृद्धजनों के आशीर्वाद से जीवन संचारित होता है।
मनुष्य पर्याय के सर्वप्रथम भगवान हैं तो माता-पिता। विधानचार्य जी ने यह भी कहा कि शास्त्रों में आता है कि जिसने माता – पिता तथा गुरू का आदर कर लिया, उसके द्वारा संपूर्ण लोकों का आदर हो गया और जिसने इनका अनादर कर दिया उसके संपूर्ण शुभ कर्म निष्फल हो गये । वे बड़े ही भाग्यशाली हैं, जिन्होंने माता – पिता और गुरू की सेवा के महत्व को समझा तथा उनकी सेवा में अपना जीवन सफल किया ।
इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए अगर आपकी वजह से आपके माता पिता के आंखों से आंसू आए, उनको दुख पहुंचे तो जान लीजिएगा आप बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं। जिसके कारण आप इस धरती पर आए हैं खून पसीना एक करके आपको इतना बड़ा किया, वही आपके लिए सर्वप्रथम ईश्वर हैं ।
सांध्यकालीन भक्ति में सभी श्रद्धालु संगीतमय भजन पर बड़े भक्तिभाव और उल्लास के साथ झूमते नज़र आए।
सांध्यकालीन भक्ति के पश्चात विधानाचार्य जी ने शास्त्र प्रवचन में बताया कि संसार में प्रत्येक प्राणी लोभ के वशीभूत पाप कर्म कर रहे हैं। चोरी, हिंसा, झूठ, परिग्रह जैसे कई पाप के काम आज मानव कर रहा है, और यही कारक मनुष्य को पतन की ओर ले जा रहा है।
जब तक मानव में सरलता नहीं होगी, तब तक उसमें धर्म प्रविष्टि नहीं होगी। यदि मनुष्य में क्षमाभाव नहीं है तो वह मनुष्य ईश्वर को कभी प्राप्त नहीं कर सकता।
इस अवसर पर आज गुजराती जैन समाज अध्यक्ष भगवान दास सुतारिया, गोपाल वेलाणी सहित सकल जैन समाज से पधारे सदस्यों का स्वागत सम्मान भी किया जा रहा।
सायंकालीन आरती के पश्चात् आयोजित धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में श्रीपाल – मैनासुंदरी के जीवन को बहुत ही मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया गया। विदित है कि मैना सुंदरी ने सिद्धचक्र विधान से ही अपने पति का कोढ दूर किया था।