दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान में हवन यज्ञ संपन्न…. श्री जी को लेकर क्रांति नगर जैन मंदिर से जैन धर्म की ध्वज लहराते निकली “शोभा यात्रा”

दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान में हवन यज्ञ संपन्न…. श्री जी को लेकर क्रांति नगर जैन मंदिर से जैन धर्म की ध्वज लहराते निकली “शोभा यात्रा”

बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) 16 नवंबर। विश्व शांति तथा प्राणीमात्र की सुख-समृद्धि व कल्याण की मंगल कामना के साथ श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर बिलासपुर में प्रारम्भ हुआ श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान हवन यज्ञ के साथ संपन्न हुआ।

जैन मंदिर में सुबह छह बजे सर्वप्रथम श्री जी अभिषेक और शांति धारा की गयी की गई। चूंकि विधान का आखिरी दिन था इसलिए विशेष विशेष रूप से सरस्वती पूजन किया गया। हवन समाप्ति के पश्चात बिलासपुर जैन समाज द्वारा ललितपुर से पधारे विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी मनोज भैया एवं पंडित मधुर जैन जी का सम्मान किया गया, जिनके सानिध्य में यह अनुष्ठान निर्विध्न एवं सानंद संपन्न हुआ।

विधान प्रारम्भ होने के पूर्व विधानाचार्य जी द्वारा आठ दिवसीय विधान के दौरान एक विशेष जाप करने का संकल्प दिलवाया गया था, इन आठ दिनों में समाज के लोगों में भक्ति एवं उत्साह की ऐसी बयार बही कि विधान में शामिल धर्मानुरागियों ने दो हजार से ऊपर जाप की माला पूर्ण कर ली। बिलासपुर जैन समाज द्वारा विधानाचार्य जी के सम्मान के साथ-साथ विधान में सम्मिलित हुए उन समस्त धर्मानुरागियों के सम्मान किया जो पूरे अनुष्ठान में शामिल हुए।

बड़े ही हर्ष एवं सौभाग्य का विषय है कि श्री 1008 भगवान आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, क्रांतिनगर बिलासपुर में 08 नवंबर 2024 ( शुक्रवार) से प्रारंभ अष्टान्हिका पर्व में “अष्टदिवसीय सिद्ध चक्र महामण्डल विधान “ का समापन दिनाँक 16.11.2024 दिन शनिवार को भव्य कार्यक्रम के साथ संपन्न हुवा।


कार्यक्रम प्रातः06.15 से मंगलाष्टक प्रारंभ हुवा तत्पश्चात् अभिषेक, शांतिधारा पूजन के पश्चात् विधि विधान के साथ विश्वशांति के लिए सामूहिक “हवन” किया गया।तत्पश्चात् भव्य “विमानयात्रा” जो कि इतिहास में पहली बार श्री जी को लेकर शोभा यात्रा क्रांति नगर जैन मंदिर से निकली विमान यात्रा के सामने दो अश्व चलें जो की जैन धर्म की ध्वज लहराते हुए आगे बढ़ें उसके पीछे बैंड बाजे रहा।

हवन प्रारम्भ करने के पूर्व विधानाचार्य जी ने कहा कि जैन परंपरा में पूजा, उपासना का विशेष महत्व है, जिनमें से सिद्धचक्र महामंडल विधान की और भी अधिक महिमा है। आठ दिवसीय अनुष्ठान में सिद्धचक्र मंडल पर 2040 अर्घ चढ़ाए गए। उन्होंने इस विधान की महिमा बताते हुए कहा कि यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो हमारी जीवन के समस्त पाप-ताप और संताप को नष्ट कर देता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को हमेशा समता भाव से कर्म पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, लड़ झगड़ कर नहीं। जब भी मुनि और जिनवाणी का सानिध्य मिले तो देरी न करें, तत्काल उनकी वाणी को ग्रहण करें।

मुनिराज के दर्शन व आशीर्वाद से जीवन में काफी परिवर्तन आता है। वही मनुष्य अपने जीवन को धन्य बना सकता है, जो जीवन में निष्कपट भाव से गुरु की सेवा करता है । गुरु के चरण दबाना जरूरी नहीं है, गुरु भक्ति जीवन में सदैव बनी रहे उसके लिए गुरु के गुणों का विस्तार करना जरूरी है। जिन गुरु के सान्निध्य में उन्नति का मार्ग मिलता है, उसकी महिमा करना ही श्रेष्ठ गुरु भक्ति मानी गई है। बिना गुरु की कृपा के मोक्ष मार्ग भी संभव नहीं होता है।

इस अवसर पर आचार्य विद्यासागरजी के चरणों में कोटिश वंदन करते हुए भजनों के माध्यम से श्रावक-श्राविकाओं ने अपनी भक्ति भावना प्रस्तुत की। आठ दिवसीय आयोजन में भक्ति की बयार बही और आचार्यश्री विद्यासागर के बताए मार्ग पर चलते हुए समग्र समाज के महिला और पुरुषों ने बड़ी संख्या में भाग लेकर कार्यक्रम को सफल बनाया।

विधान संपन्न होने के उपरान्त विधानाचार्य जी ने सभी श्रद्धालुओं से कहा कि सभी को नियम दिलवाया कि चाहे जीवन में कितनी भी विषम परिस्थिति आ जाए, कोई भी आत्महत्या का विचार मन में नहीं लाएगा।

इस अनुष्ठान का आयोजन श्रीमंत सेठ विनोद रंजना जैन, डॉक्टर विशाल डॉक्टर रेशु जैन, विकास अंकित जैन, अभिषेक वर्षा जैन, विवान, रियाना, अबीर अबीरा एवं समस्त कोयला परिवार द्वारा किया गया।

पंडित मधुर भैया ने कहा कि जीवन में काम से काम एक बार जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थस्थलों में से एक सम्मेद शिखरजी की वंदना जरूर करनी चाहिए। जैन शास्त्र अनुसार 24 में से 20 तीर्थंकर परमात्मा सम्मेद शिखरजी की विभिन्न चोटियों से निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। यह पवित्र स्थल ‘सिद्धिक्षेत्र’ भी कहलाता है, इस महान एवं पवित्र भूमि के दर्शन मात्र से ही कर्मो का क्षय होता है। इस पवित्र तीर्थस्थल पार्श्वनाथ पर्वत की सबसे खास बात यह है कि यहां शेर जैसे हिंसक प्राणी भी स्वतंत्र होकर घूमते हैं, और किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं, जो कि इस तीर्थराज की महिमा का प्रत्य़क्ष प्रमाण है।

ऐसा माना जाता है कि जैनधर्म को मानने वाला जो भी अनुयायी अपने जीवन में सम्मेद शिखरजी की तीर्थयात्रा पूरी आस्था, निष्ठा और सच्चे भाव से करता है और जैन तीर्थकरों द्धारा बताए गए उपदेशों और सिद्धान्तों का नियमपूर्वक पालन करता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दुनिया के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक वह मुक्त रहता है।

विधान संपन्न होने के बाद चांदी के रथ में भगवान जी की प्रतिमा रख कर शोभा यात्रा निकाली गई, जो क्रांतिनगर, व्यापार विहार, रामा मैग्नेटो मॉल, विनोबा नगर होते हुए वापस क्रांति नगर जैन मंदिर पहुंची। इस शोभा यात्रा में दिगम्बर जैन समाज बिलासपुर के अलावा श्वेतांबर समाज, गुजराती जैन समाज, तेरापंथ समाज के साथ साथ अन्य समाज के सैकड़ो लोग सम्मिलित हुए।

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