नगपुरा दुर्ग (अमर छत्तीसगढ) 18 नवंबर।
श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा परिसर में मानवीय सेवा को समर्पित प्राकृतिक एवं योगोपचार संस्थान आरोग्यम् नगपुरा में 18 नवम्बर अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर निःशुल्क परामर्श शिविर एवं स्वास्थ्य जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. संवेग शाह मुम्बई ने प्राकृतिक एवं योग विशेषज्ञ डॉ. अरुण शाह अहमदाबाद की अध्यक्षता में दीप प्रज्ज्वलित कर शिविर काशुभारंभ किया। नगपुरा – पीपरछेड़ी- गनिवारी- बोरई-खुरसुल रसमडा के ग्रामीणों ने परामर्श प्राप्त कर प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली अपनाने का संकल्प लिया।
प्राकृतिक चिकित्सक एवं वर्धमान गुरुकुल के विद्यार्थीयो ने स्वास्थ्य जागरूकता संगोष्ठी में भाग लेकर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. दानेश्वर टंडन ने कहा कि सत्य एवं अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अनुसार प्राकृतिक चिकित्सा में जीवन परिर्वतन की बात आती है, उनका यह कथन व्यक्ति को अपना आरोग्य अपने हाथ के नजदीक लाता है।
प्राकृतिक उपचार सम्पूर्ण एवं समग्र जीवन शैली का पोषक है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निर्माण होता है। स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से देखा जाय तो जीने के लिए खाना चाहिए न कि खाने के लिए जीना । पश्चिमी जीवन शैली के अंधानुकरण के कारण आज हम अनेको स्वास्थ्यगत विसंगतियों वर्तमान से जूझ रहे हैं।
खान-पान, रहन-सहन की विकृति अब सेहत के नजरिये से नुकसानदेह से साबित हो रहा है। वर्तमान समय में बाल्य अवस्था में हो मोटापादि का शिकार होना सामान्य हो गया है। युवाओं को हृदयाघात जैसे बिमारी गिरफ्त में ले रहा है। प्राकृतिक चिकित्सा जीवन जीने की शैली है।
प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-साथ योग एक अन्य महत्त्वपूर्ण चिकित्सा विज्ञान है, जो औषधिरहित और प्राकृतिक है। लेकिन कुछ पहलुओं को लोग सही ढंग से नहीं समझ पाए है इसलिए इसकी गलत व्याख्या की जाती है।योग के अनेक रूप है लेकिन हमारा तात्पर्य केवल यहां शारीरिक क्रियाओं से है। नेती, कपालभाति, कुंजल, लघु शंख प्रक्षालन ,धोती नेति, वमन, आदि यौगिक क्रियाएँ शरीर का शुद्धिकरण करने की प्रक्रियाएँ है जो योगाभ्यास से पहले की जाती हैं और जिनसे शरीर में जमा विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है।
प्राकृतिक चिकित्सा शरीर का उपचार करती है, जबकि योग इसके बाद शरीर का रख रखाव करता है। ये दोनो मिलकर व्यक्ति को जीवन भर रोगमुक्त रहने में मदद करते है । योग- शरीर के सातों चक्रों की शुद्धि की,, अनन्त गुना शक्ति बढ़ाने की आराधना है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रकृति के अनुरूप जीने की राह बताती है। हर व्यक्ति के शरीर की संरचना भी भिन्न भिन्न प्रकार की होती है।
प्रकृति भेद के अनुसार एक ही वस्तु, एक व्यक्ति के लिए पथ्य का काम करती है तो वहीं वस्तु दूसरे व्यक्ति के लिए अपथ्य रूप भी बन जाती है। जो भोजन स्वयं की प्रकृति के अनुकूल हो, उसी प्रकार का अन्न जल लेना चाहिए।
संगोष्ठी में लोचन पटेल, दीपांशु शुक्ला, देवजी गुर्जर, कुंदकुंद शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। पुरुषोत्तम साहू. दुमन देशमुख ने अतिथियो का सम्मान एवं शिक्षाविद रिखलेश साहू ने कार्यक्रम का संचालन किया।