श्री हनुमान श्याम मंदिर में शिव महापुराण कथा प्रारंभ…. सूप धान्य एवं कंकर को अलग-अलग कर देता है : पंडित दिग्विजय शर्मा

श्री हनुमान श्याम मंदिर में शिव महापुराण कथा प्रारंभ…. सूप धान्य एवं कंकर को अलग-अलग कर देता है : पंडित दिग्विजय शर्मा

राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 29 दिसम्बर। मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसमें विवेक होता है। अध्यात्म मार्ग से विवेक की प्राप्ति होती है तथा विवेक से क्या करना, क्या नहीं करना, क्या त्याज्य है, क्या ग्राहय है, का बोध होता है निरंतर आध्यात्मिक अभ्यास से व्यक्ति उच्चतर स्तर को प्राप्त कर सकता है।

उक्त उद्गार आज यहां श्री हनुमान श्याम मंदिर में 18 दिवसीय संत समागम एवं श्री सुंदरकांड महोत्सव महाकुंभ के दूसरे दिन श्री शिव महापुराण कथा के प्रथम दिवस अरजकुंड निवासी सुप्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित दिग्विजय शर्मा ने व्यक्त किए।


श्री श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से अशोक लोहिया, सोहन देवांगन एवं किशन देवांगन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संत श्री ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में परेशानियां आए, समस्याएं आए तो उसे अपने माता-पिता, सास ससुर, गुरु के चरणों में जाकर बैठ जाना चाहिए। परेशानियां, समस्याएं अपने आप दूर हो जाएगी।

श्री शिव महापुराण की कथा के माध्यम से संत श्री ने कहा कि मनुष्य का स्वभाव है कि वह स्वतंत्र रहना चाहता है, लंबे समय तक या अत्यधिक स्वतंत्रता से व्यक्ति बहिर्मुखी हो जाता है, वह स्वच्छंद हो जाता है। जो उसके लिए घातक है। घोड़े को लगाम से, हाथी को लोहे की कील से, बैलों को रज्जू से नियंत्रित किया जाता है।

इसी प्रकार मनुष्य को आध्यात्मिक चेतना से नियंत्रित किया जा सकता है। पिता को पुत्र से, बेटी को मां से, बहू को सास से एवं भक्तों को भगवान से हमेशा बंधे रहना चाहिए, तभी जीवन की गाड़ी सुचारू रूप से चल सकती है।
संत श्री ने कहा कि आध्यात्मिक आहार साधना की प्रथम सीढ़ी है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपना, परिवार, समाज एवं राष्ट्र का कल्याण कर सकता है। जिस प्रकार सुपा को चलाने से अन्न के कण एवं कंकर के कण अलग-अलग हो जाते हैं उसी प्रकार आध्यात्मिक कथा – प्रवचन सुनने से व्यक्ति के जीवन में आए हुए कंकड़ रूपी दोष अलग हो जाते हैं और वह शुद्ध अन्न की तरह आध्यात्मिक व्यक्ति बन जाता है।


प्रत्येक व्यक्ति से संतश्री ने आग्रह किया कि वह अपने बच्चों को पंचदेव एवं अपनी पांच पीढ़ियों का ज्ञान अवश्य कराए। संत श्री ने अनेक प्रसंगों के माध्यम से कहा कि श्रीमद् भागवत कथा केवल लड़ाई की व्याख्या नहीं है बल्कि उसमें गृहस्थ की चर्चा है। जिस दिन व्यक्ति के जीवन में असहाय के प्रति श्रद्धा, भूखे के प्रति दया एवं उपेक्षित – पीड़ित को देखकर आंखों में आंसू आ जाए, समझ लेना उसका कथा श्रवण करना सार्थक हो गया है।

उसे ईश्वर की ( शिव की ) प्राप्ति का बोध हो गया है। संत श्री ने कहा कि व्यक्ति को बलवान होना चाहिए किंतु बल का अहंकार ना करें, बल्कि बल लोगों की सुरक्षा के लिए उपयोग करें। ज्ञान लोगों के हित में हो, धन वंचित के सहयोग के लिए हो। धन बहन – बेटियों की सुरक्षा के लिए होगा तो जीवन धन्य हो जाएगा, कथा सुनना सार्थक हो जाएगा।

देवी के अस्त्र-शस्त्र से हमें भय नहीं लगता बल्कि सुरक्षा लगती है। व्यक्ति में बल नहीं आत्मबल का जागरण होना आवश्यक है। ब्रह्म एक है। श्री शिव महापुराण की कथा की व्याख्या अलग-अलग संत अपनी अपनी शैली में उद्घाटित करते हैं। नदियां कहीं से भी निकले समुद्र में ही जाकर मिलती है। शिव कथा विनम्रता एवं विवेक को जागृत करने का आधार है।

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