दुर्ग(अमर छत्तीसगढ) 5 फरवरी। जैन संत श्री कल्पज्ञ सागर जी महाराज का कल रात्रि 7 बजे निजी चिकित्सालय में देवलोक गमन हो गया वे विगत कुछ माह से अस्वस्थ चल रहे थे ।
आज उनकी महाप्रयाण डोल यात्रा में छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से गुरु भक्त परिवार अंतिम विदाई देने बड़ी संख्या में जैन समाज के अनुयाई पहुंचे थे ।
खतरगक्ष आचार्य श्री जिन मनोज्ञसुरी जी महाराज के शिष्य रत्न दुर्ग जैन संध के गोरव तपस्वी स्वध्यायी वयोवृद्ध संत श्री कल्पज्ञ सागर जी विगत कुछ वर्षों से दुर्ग नगर में विराजमान थे ।
आज शीतलनाथ जैन मंदिर पदमनाभपुर से महाप्रयाण यात्रा प्रारम्भ हूई जो पटेल काम्प्लेक्स सुराणा कालेज रविशंकर स्टेडियम बस स्टेंड फरिसता काम्प्लेक्स होटल मान होते हुए हरना बांधा मुक्ति धाम पहुंची जहां उनके सांसारिक पुत्र निमेश छाजेड़ एवं परिवार जनों ने मुखाग्नि दी ।
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राजेस्थान की भुमि बलेवाजिला बाड़मेर में जन्म लेने वाले श्री किशन लाल जी छाजेड़ की प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान में ही हुई कुशाग्र बुद्धि के धनी श्री किशन लाल जी छाजेड़ अपने परिवार का पालन पोषण करने दुर्ग आ गए और संघर्ष करते हुए ठेकेदारी का व्यवसाय प्रारंभ किया ओर अपने परिवार के सदस्यों को पढ़ाई लिखाई कराकर योग्य बनाया उनके एक पुत्र ओर तीन पुत्री सहित भरा-पुरा परिवार पीछे छोड़ गए हें ।
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उनके पिता प्रताप चंद ओर माता देमीबाई थे
आपके पिता श्री प्रताप सागर जी तथा छोटे भाई श्री मनोज्ञसागर जी महाराज जो वर्तमान में खतरगक्ष आचार्य के रुप में जिनशासन की प्रभावना कर रहें हैं जो वर्तमान में राजेस्थान में विराजमान हैं ।
छत्तीसगढ़ प्रवर्तक संत श्री रतन मुनि जी एवं आचार्य मनोज्ञसागर जी के सानिध्य में विक्रम संवत 2069 में श्री मनोज्ञसागर जी से ऋषभदेव परिसर में दीक्षा ग्रहण की और दीक्षा के बाद सही देश के विभिन्न क्षेत्रों में विचरण किया अभी कुछ वर्षों से स्वास्थ्य में अस्वस्थ के कारण दुर्ग नगर में विराजमान थे ।
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संत श्री कल्पज्ञ सागर जी गुणानुवाद सभा में संत समुदाय ने कहा
उपाध्याय प्रवर श्री महेंद्र सागर जी एवं श्री मनीष सागर जी महाराज के सानिध्य में आज दोपहर 2:30 बजे श्री सुधर्म जैन पोषध शाला में श्रद्धा सुमन अर्पित करने गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया जिसे संत उपाध्याय श्री महेंद्र सागर, श्री मनीष सागर, साध्वी श्री दर्शन प्रभा जी ने धर्म सभा को संबोधित किया ।
संत श्री महेंद्र सागर जी महाराज ने स संबोधित करते हुए कहा अपनी कही बातों पर हमेशा अडिग रहना कल्पज्ञ सागर जी का स्वभाव था पिता एवं छोटे भाई के संयमी जीवन से प्रभावित होकर धर्म कर्म करते हुए त्याग तपस्या का नियमित क्रम संयम जीवन के साथ चला रहा जीवन के अंतिम पड़ाव में भी क्षमता भाव में समाधि में लीन हुए ।
संत मनीष सागर जी महाराज ने कहा मनुष्य के न रहने पर हम उसे याद करते हैं और अपनी आत्मा को भी हम उसके जाने के पश्चात ही महसूस करते हैं संम भाव में में रहते हुए अपनी आत्मा के लिए जीना अपनी आत्मा के लिए कर्म करना जीवन का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए जब मनुष्य जीवन के अंतिम पड़ाव की ओर रहता है तब उसे धर्म की महिमा का मर्म समझ आता है साध्वी दर्शन प्रभा जी ने कहा आज हम संत श्री कल्पज्ञासागर जी महाराज की गुणानुवाद करने यहां उपस्थित हुए हैं हमें गुणानुवाद को गुणानुराग में बदलना हे ।
अपने गुरु की एक अच्छाई और अपनी एक बुराई को का त्याग हमें करना हे ओर वहीं सच्चे अर्थों में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने जैसा होगा।
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एवं जैन समाज के गणमान्य लोगों ने उनके गुणानुवाद करते हुए उनके द्वारा किए गए कार्यों का गुणगान किया।
कार्यक्रम का संचालन का संतोष जैन ने किया ।